ऑटिज्म के खिलाफ एक मां, कुलसुमा की लड़ाई

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] • 1 Years ago
ऑटिज्म के खिलाफ एक मां, कुलसुमा की लड़ाई
ऑटिज्म के खिलाफ एक मां, कुलसुमा की लड़ाई

 

गुलाम कादिर/ जम्मू और कश्मीर

कुलसुमा परवेज की जिंदगी बदल गई थी, जब डॉक्टरों ने बताया कि उनके 4साल के बेटे को ऑटिज़्म है. घाटी में एक भी ऑटिज्म केंद्र नहीं है, ऐसे में कुलसुमा ने फैसला लिया कि उनके मातृत्व के भाव का इतना अधिक विस्तार हो जाए कि उसके दायरे में न सिर्फ उनके बेटे की देखभाल हो बल्कि उसके जैसे अन्य विशेष बच्चों की भी देखभाल की जा सके.

ऐसे में कुलसुमा ने विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए एक ऑटिज्म सेंटर 'एक्सेप्शनल माइंड्स' की स्थापना की.

कुलसुमा कहती हैं कि 2011में, उनके बेटे फरमान, जो अब 16साल के हैं, में ऑटिज्म के लक्षण विकसित हो गए थे. मसलन सामान्य रूप से बातचीत करने में नाकामी, बोलने में परेशानी, जोर से रोना और जोर से हंसना.

पेशे से शिक्षिका कुलसमा बताती हैं कि 'ये सब तब सामने आया जब वह चार साल का था.

उन्होंने स्थानीय डॉक्टरों से परामर्श किया, लेकिन जब लक्षण केवल तेज हो गए, तो वह दिल्ली चली गई, जहां एक बाल विकास केंद्र के एक डॉक्टर ने उसे बताया कि उसके बेटे को ऑटिज्म है.

अगले छह वर्षों के लिए, कुलसुमा अक्सर अपने बेटे के इलाज और बेहतर देखभाल के लिए दिल्ली जाती थी. उसने ऑटिज़्म पर कुछ क्रैश कोर्स भी किए, जिसमें व्यावसायिक और भाषण चिकित्सा और घर पर अपने बच्चे की देखभाल करने के लिए विशेष शिक्षा शामिल है.

कुलसुमा परवेज का स्कूल व्यवहार और व्यावसायिक चिकित्सा जैसी सुविधाएं प्रदान करता है इसके बाद वह गुरुग्राम चली गईं और आगे विशेषज्ञता हासिल करने के लिए ऑटिज्म पर कुछ कार्यशालाओं में भाग लिया.

उन्होंने ऑटिस्टिक बच्चों से निपटने का प्रत्यक्ष अनुभव हासिल करने के लिए गुरुग्राम में सनशाइन स्पेशल सेंटर, संकल्प स्पेशल सेंटर और मॉम्स बिलीफ सोच जैसे कुछ ऑटिज्म केंद्रों में काम किया.

कुलसुमा 2019में घाटी लौटी और घर पर अपने बेटे की देखभाल करने के लिए अपने कौशल और उपकरणों का इस्तेमाल किया. उसने एक प्रमाणित पेशेवर को भी काम पर रखा. उन्होंने जुलाई 2019में एक स्कूल शुरू करते हुए एक ऑटिज्म सेंटर भी खोला. श्रीनगर के बेमिना इलाके में 'एक्सेप्शनल माइंड्स - सेंटर फॉर ऑटिज्म एंड अर्ली इंटरवेंशन' शुरू हुआ.

कुलसुमा कहती हैं, "मेरा मिशन विशेष जरूरतों वाले बच्चों को सशक्त बनाना और समावेशी शिक्षा और विशेष जरूरतों वाले बच्चों के पुनर्वास की दिशा में आगे बढ़ना है."

उन्होंने कहा कि विशेष आवश्यकता वाले प्रत्येक बच्चे में महत्वपूर्ण सुधार हो सकता है यदि प्रारंभिक हस्तक्षेप प्रदान किया जाए और विशेष देखभाल के साथ संभाला जाए. उसके केंद्र में 20बच्चे हैं, उनमें से कुछ अन्य तंत्रिका संबंधी विकारों से भी पीड़ित हैं.

'एक्सेप्शनल माइंड्स' व्यवहार और व्यावसायिक चिकित्सा, भाषण और भाषा चिकित्सा, मौखिक नियुक्ति चिकित्सा, विशेष शिक्षा, भौतिक चिकित्सा, भौतिक चिकित्सा, संगीत और कला चिकित्सा, दैनिक जीवन की गतिविधि (एडीएल) प्रदान करता है.

यह बुनियादी स्व-देखभाल कार्यों पर ध्यान केंद्रित करता है जैसे कि स्नान करना, कपड़े पहनना, बिस्तर से कुर्सी पर शिफ्ट करना, शौचालय बनाना, संवारना और खुद को खाना खिलाना.

ऑटिज्म सोसाइटी ऑफ इंडिया की आजीवन सदस्य कुलसुमा कहती हैं कि बच्चों की मासिक फीस से होने वाली कमाई को केंद्र का किराया और कर्मचारियों के वेतन पर खर्च किया जाता है. वह कहती हैं, "मैं स्कूल की कमाई से कोई पैसा नहीं लेती,"

वह कहती हैं कि स्कूल को कोई सरकारी या निजी समर्थन नहीं मिला है. “हम अपने दो पैरों पर खड़े हैं. मेरे पति सेंटर चलाने में मेरी मदद करते हैं.”

वह हर मां-बाप से आग्रह करती हैं कि यदि उनके बच्चों में ऑटिज्म निकले तो इससे कलंकित महसूस न करें. वह कहती हैं कि बच्चे के लिए शुरुआती हस्तक्षेप बेहद मददगार हो सकता है.

वह कहती हैं, "हमें ऑटिज्म के बारे में अधिक जागरूकता पैदा करनी चाहिए ताकि विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को समाज द्वारा स्वीकार किया जा सके. वे विशेष बच्चे हैं और हमें उनकी विशेष देखभाल करनी चाहिए.”