देहरादून
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) रुड़की ने महाराष्ट्र की एक निजी कंपनी के साथ मिलकर गेहूं की पराली से पर्यावरण अनुकूल टेबलवेयर (खाने-पीने के बर्तन) तैयार किया है। यह नवाचार पराली जलाने और सिंगल-यूज प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण का समाधान प्रदान कर सकता है।
इस तकनीक के तहत गेहूं की पराली को ढालकर एक ऐसा टिकाऊ, गर्मी-सहिष्णु और खाद्य-सुरक्षित टेबलवेयर तैयार किया गया है जो पूरी तरह से प्राकृतिक रूप से विघटित और खाद में बदलने योग्य है। यह उत्पाद "मिट्टी से मिट्टी तक" की सोच पर आधारित है — जो धरती से आता है और इस्तेमाल के बाद वापस धरती में समा जाता है, बिना किसी पर्यावरणीय निशान के।
यह नवाचार आईआईटी रुड़की के 'इनोपैप लैब' (Innovation in Paper and Packaging) द्वारा परासन मशीनरी प्राइवेट लिमिटेड के सहयोग से विकसित किया गया है।
कागज प्रौद्योगिकी विभाग के प्रोफेसर विभोर के रस्तोगी, जिन्होंने इस परियोजना का नेतृत्व किया, ने कहा,“यह शोध यह दिखाता है कि किस प्रकार कृषि अवशेषों से उच्च गुणवत्ता वाले, पर्यावरण के अनुकूल उत्पाद तैयार किए जा सकते हैं। यह विज्ञान और इंजीनियरिंग की शक्ति को दर्शाता है जो पर्यावरण-सुरक्षित और आर्थिक रूप से व्यवहार्य समाधान दे सकती है।”
भारत में हर साल लगभग 350 मिलियन टन कृषि अपशिष्ट उत्पन्न होता है, जिसमें से बड़ी मात्रा में या तो जलाया जाता है या फेंक दिया जाता है। इस नवाचार से न केवल पर्यावरणीय क्षति रुकेगी बल्कि किसानों को अतिरिक्त आय का स्रोत भी मिलेगा, जिससे ‘वेस्ट टू वेल्थ’ की अवधारणा को बल मिलेगा और सर्कुलर इकॉनमी की ओर बढ़ा जाएगा।
यह पहल स्वच्छ भारत मिशन, आत्मनिर्भर भारत और संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों के अनुरूप भी है।इस शोध में पीएचडी छात्रा जैस्मीन कौर और पोस्टडॉक्टोरल शोधकर्ता राहुल रंजन ने भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।