जुबिन गर्ग: अपने संगीत से परे एक विशाल व्यक्तित्व

Story by  PTI | Published by  [email protected] | Date 23-09-2025
Zubin Garg: A towering personality beyond his music
Zubin Garg: A towering personality beyond his music

 

आवाज द वॉयस/नई दिल्ली

 
 इसमें कोई शक नहीं है कि उनका संगीत लाखों लोगों के दिलों और कल्पनाओं में बसा था और उनके गाए गीत ‘या अली’ ने उन्हें पूरे देश में शोहरत दिलाई लेकिन गायक जुबिन गर्ग के विशाल व्यक्तित्व में कुछ तो आकर्षण था जिससे लोग उनसे जुड़ाव महसूस करते थे तभी तो शुक्रवार को सिंगापुर में उनके निधन के बाद से लाखों लोग शोक में डूब गए.
 
वैसे तो 40 भाषाओं और बोलियों में उनके 38,000 गाने, उनके द्वारा अभिनीत और निर्देशित कई फिल्में और स्टेज शो ने अलग अलग पीढ़ियों के लोगों को मंत्रमुग्ध किया लेकिन बिना किसी लाग लपेट के आम बोलचाल की भाषा में अपनी बात कहने के कारण उनकी बातें लोगों के दिलों को छू जाती थीं जो उन्हें भाषा, धर्म, समुदाय, जाति या पंथ से परे, पीढ़ियों के बीच एक आदर्श बनाती हैं.
 
जुबिन ने स्थापित संस्थाओं के पाखंड के खिलाफ आवाज बुलंद की, अपनी बात को बेबाकी से कहा, जिससे अक्सर विवाद पैदा हो जाते थे. समयसामयिक मुद्दों पर ईमानदार बयान दिए, गरीबों और परेशान लोगों की मदद की, प्रकृति और जानवरों से बेहद प्यार किया - ये सभी और उनके व्यक्तित्व के कई अन्य गुण थे जिसने लाखों लोगों को प्रेरित किया और उन्हें उनका उत्साही प्रशंसक बनाया.
 
मंच पर अक्सर नशे की हालत में उनकी हरकतें उन लोगों को परेशान करती थीं जो एक लोकप्रिय कलाकार से उचित व्यवहार की उम्मीद करते थे. भूपेन हजारिका और असम में संगीत के अन्य दिग्गजों के सामाजिक रूप से प्रासंगिक मधुर संगीत की आदी पुरानी पीढ़ी शुरू में उनके संगीत को स्वीकार करने में हिचक रही थी, लेकिन संगीत के उनके अलग अंदाज से एक नया, ताजा और क्रांतिकारी चलन शुरू हुआ.
 
जुबिन बिना किसी रुकावट के आगे बढ़ते रहे, उनके आलोचकों को मुंह की खानी पड़ी और उन्होंने जुनून, रोमांस, खूबसूरती, गम, उदासी, आशा और बहुत कुछ समेटे हुए गीतों के साथ संगीत रचा, जिससे आलोचक भी उनके प्रशंसक बन गए.
 
प्रतिबंधित संगठन उल्फा ने जब बिहू समारोहों के दौरान हिंदी गाने नहीं गाने का फरमान सुनाया था तो गायक ने इसकी नाफरमानी करते हुए संगठन के आदेश को चुनौती दी थी। पारंपरिक कला, संगीत, नृत्य और साहित्य के संरक्षण के लिए मशहूर असमिया नव-वैष्णव संस्कृति के मठों ‘सत्र’ पर हमला करते हुए उन्होंने कहा था कि इन वैष्णव मठों के प्रमुख को ‘प्रभु ईश्वर’ नहीं कहा जाना चाहिए क्योंकि वे भी केवल मनुष्य हैं.
 
उन्होंने वर्तमान मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा से चुनाव प्रचार के दौरान मंच पर उनकी नृत्य शैली की नकल करने के लिए कॉपीराइट शुल्क देने के लिए कहा था। वह संशोधित नागरिकता अधिनियम (सीएए) के खिलाफ प्रदर्शनों में सबसे आगे रहे। जुबिन के प्रदर्शनों की सूची में ऐसी कई और चीजें हैं जिन्होंने उन्हें जनता के बीच लोकप्रिय बनाया.
 
पिछले चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए उनके गायन को एक वर्ग ने राजनीतिक रंग देने की कोशिश की थी, लेकिन उन्होंने यह कहकर उनका मुंह बंद कर दिया कि उन्होंने कई मौकों पर कांग्रेस के लिए भी गाया है और ‘‘मैं गैर-राजनीतिक हूं। मैं एक गायक हूं, जो भी मुझे पैसे देगा, उसके लिए गाऊंगा’’.
 
उनके शुभचिंतकों ने कई मौकों पर उनसे विवादास्पद बयान नहीं देने का अनुरोध किया, लेकिन उन्होंने कहा कि वह अपनी भावनाओं को व्यक्त करने से खुद को रोक नहीं पाते और उनके सहज स्वभाव- ‘घेंटा, काकोउ खातिर नो कोरु’ (भाड़ में जाए! मुझे किसी को खुश करने की जरूरत नहीं है) ने एक आदर्श की तलाश में निकली युवा पीढ़ी के दिलों को छू लिया.
 
गायक, संगीतकार, फिल्म निर्देशक और अभिनेता- जिनका बचपन में उनके परिवार ने नाम जीबोन बोरठाकुर रखा था-उन्हें आगे चलकर उनकी मां ने प्रसिद्ध संगीतकार जुबिन मेहता के संगीत से प्रेरित होकर उन्हें जुबिन गर्ग नाम दिया, लेकिन ब्राह्मण उपनाम को गायक ने त्याग दिया क्योंकि उनका दावा था कि वे नास्तिक हैं और ‘‘मानवता के धर्म’’ में विश्वास करते हैं.
 
उन्होंने तीन साल की उम्र से गाना शुरू कर दिया था और चाहे लोकप्रिय असमिया हो या पश्चिमी, लोक या शास्त्रीय संगीत पर आधारित गीत, गर्ग ने संगीत की विभिन्न शैलियों को अपनी आवाज दी और सभी में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया तथा बाद के वर्षों के अधिकतर गायकों ने उनकी अनूठी शैली का अनुकरण किया.
 
हिंदी फिल्म संगीत उद्योग ने 1990 के दशक के मध्य में उन्हें अपनी ओर आकर्षित किया और उन्होंने फिल्मों और एल्बमों में कई लोकप्रिय गीत गाए, लेकिन जल्द उनका मोहभंग हो गया और वे असम लौट आए और अपने अनगिनत गीतों से लोकप्रियता की ऊंचाइयों पर पहुंच गए.
 
वह अक्सर कहा करते थे कि वह मुंबई में ही रह सकते थे (वहां अब भी उनका एक घर है) और खूब पैसा कमा सकते थे, लेकिन वे वापस लौट आए क्योंकि उन्हें अपने लोगों के प्रति जिम्मेदारी का एहसास हुआ.