यूनुस अलवी, मेवात/हरियाणा
भारत के कई हिस्सों में धर्म और जाति के नाम पर नफरत की खबरें आम हैं, लेकिन हरियाणा का मेवात क्षेत्र आज भी आपसी भाईचारे और साझा संस्कृति का एक जीवंत उदाहरण पेश करता है. यहाँ की मिट्टी में सदियों पुरानी एकता की खुशबू बसी है, जो हर त्योहार, हर उत्सव और यहाँ तक कि सांस्कृतिक आयोजनों में साफ झलकती है. मेवात के लोग ईद, होली, और दिवाली जैसे त्योहार मिलकर मनाते हैं, लेकिन जो बात इस क्षेत्र को truly unique बनाती है, वह है यहाँ की रामलीलाओं में मुस्लिम समाज की गहरी और अटूट भागीदारी.
यह कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि मेवात की रामलीलाएँ मुस्लिमों के बिना अधूरी हैं. दशकों से, यहाँ के मुस्लिम कलाकार न केवल मंच सजाने और वाद्य यंत्र बजाने का काम करते हैं, बल्कि खुद भी कई महत्वपूर्ण किरदार निभाते हैं और हजारों की संख्या में दर्शक बनकर इस परंपरा का हिस्सा बनते हैं.
यह सिर्फ मंचन नहीं, बल्कि एक ऐसी भावना का प्रदर्शन है, जहाँ धर्म से बढ़कर संस्कृति और मानवता को महत्व दिया जाता है.
मुस्लिम संरक्षकों और कलाकारों से सजी रामलीला
फिरोजपुर झिरका की श्री रामलीला कमेटी इस अनूठी परंपरा का एक बेहतरीन उदाहरण है. 1996 से इस कमेटी के संरक्षक आजाद मोहम्मद हैं, जो मुस्लिम समाज से आते हैं.
उनकी पहचान सिर्फ रामलीला तक सीमित नहीं . वे मेवात क्षेत्र गोशाला समिति के आजीवन सदस्य और अमन कमेटी मेवात के अध्यक्ष भी हैं, जिसमें सभी धर्मों के लोग शामिल हैं. यह कमेटी मेवात के भाईचारे की रक्षा करने और इसे और मजबूत करने के लिए प्रतिबद्ध है.
कमेटी के पूर्व डायरेक्टर नरेश गर्ग, अपनी पुरानी यादें ताजा करते हुए बताते हैं, "जब से मैंने होश संभाला, हमारे मुस्लिम भाई फजरू हारमोनियम और आसू ढोलक जैसे वाद्य यंत्र बजाते आ रहे हैं."
राम बारात के दौरान, मुस्लिम समाज के लोग पूरी गर्मजोशी से फूलों की मालाओं से भगवान राम का स्वागत करते हैं. कई बार तो आजाद मोहम्मद खुद राम बारात के सारथी बनकर इस आयोजन में जान फूंक देते हैं. यह दृश्य बताता है कि मेवात में रामलीला सिर्फ एक धार्मिक नाटक नहीं, बल्कि एक सामुदायिक उत्सव है, जिसमें हर कोई दिल से शामिल होता है.
पिनगवां की रामलीलाएँ भी इसी भाईचारे की मिसाल पेश करती हैं. राधा रमन नाटक मंडल के अध्यक्ष शेखर सिंगला और अन्य सदस्यों के अनुसार, मुस्लिम कलाकार वहीदा, करीम खान और खिल्लू खान दशकों से इस नाटक का अभिन्न हिस्सा रहे हैं. विशेष रूप से, खिल्लू खान पिछले 50 साल से हर आयोजन में सक्रिय हैं, जो उनकी इस परंपरा के प्रति गहरी निष्ठा और प्रेम को दर्शाता है.
पुनहाना निवासी कृष्ण आर्य भी अपनी रामलीला की पुरानी कहानियाँ सुनाते हैं. वे बताते हैं कि उनकी रामलीला में लंबे समय तक हुक्म खान और जाकिर खान ने साज बजाया.
आज भी यासीन खान नगाड़ा बजाकर इस विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं. हालाँकि, वे यह भी स्वीकार करते हैं कि आधुनिक युग में दर्शकों की संख्या कम हुई है. पहले जहाँ हजारों लोग रामलीला देखने आते थे, अब मोबाइल और इंटरनेट की दुनिया ने लोगों को परंपराओं से दूर कर दिया है.
सदियों पुराना भाईचारा और ऐतिहासिक जड़ें
मेवात का यह भाईचारा केवल सांस्कृतिक आयोजनों तक सीमित नहीं है. इसकी जड़ें इस क्षेत्र के सामाजिक और ऐतिहासिक ताने-बाने में गहरी हैं. मेव समाज के लोग खुद को सूर्यवंशी और चंद्रवंशी मानते हैं और भगवान कृष्ण को अपना पूर्वज मानते हैं. यही कारण है कि आज तक मेवात में कोई बड़ा हिंदू-मुस्लिम दंगा नहीं हुआ.
1947 के विभाजन के दौरान, जब पूरे देश में सांप्रदायिक हिंसा चरम पर थी, मेवात पूरी तरह शांत रहा. यहाँ के लोगों ने एक-दूसरे की ढाल बनकर हिफाजत की. यह एक ऐसा ऐतिहासिक तथ्य है जिस पर मेवात के लोग आज भी गर्व करते हैं.
मेव और हिंदू समाज के बीच कई गोत्र भी मिलते हैं—जैसे डागर, तोमर, सहरावत और बड़गुजर—जो दोनों समुदायों में मौजूद हैं. हिंदू समाज की तरह, मेव समाज में भी भात और छुछक जैसी रस्में आज भी निभाई जाती हैं. इसी भाईचारे के चलते हिंदुओं की 52 खाप पालों में से 12 पाल मुस्लिम मेव समाज से आती हैं, जो दोनों समुदायों के बीच के गहरे रिश्ते को दर्शाती हैं.
मेवात के फिरोजपुर झिरका में राम बारात और ट्रैक्टर चलाते आजाद मोहम्मद
आधुनिक चुनौतियाँ और अमन कमेटी की भूमिका
आज, मोबाइल और इंटरनेट के इस दौर में, कुछ परंपराएँ कमजोर पड़ रही हैं. मनोरंजन के नए साधनों ने लोगों को सामुदायिक आयोजनों से दूर कर दिया है. इसके बावजूद, मेवात का भाईचारा मजबूत बना हुआ है.
हरियाणा के पूर्व मंत्री और डिप्टी स्पीकर रह चुके आजाद मोहम्मद इस भाईचारे को एक धरोहर मानते हैं. वे कहते हैं, "मेवात का भाईचारा सदियों पुराना है. कई बार असामाजिक तत्वों ने इसे तोड़ने की कोशिश की, लेकिन वे कभी सफल नहीं हो पाए." वे खुद इस बात का प्रमाण हैं कि धर्म से बढ़कर इंसानियत है.
वे मुस्लिम होते हुए भी 1996 से श्री रामलीला कमेटी के संरक्षक हैं. वे बताते हैं, "जब भी भाईचारे को नुकसान पहुंचाने की कोशिश होती है, अमन कमेटी सबसे आगे खड़ी हो जाती है." उनका मानना है कि मेव समाज का कृष्णवंशी होना और हिंदू-मुस्लिम गोत्रों का मेल ही वो धरोहर है जिसने इस भाईचारे को कभी टूटने नहीं दिया.
मेवात: एकता की धरती
करीब 70 लाख की आबादी वाला मेवात राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली के लगभग आठ जिलों में फैला हुआ है. इसका अधिकांश हिस्सा ब्रज क्षेत्र में आता है. यहाँ के लोग कृष्ण को अपना पूर्वज मानते हैं और धर्म से ऊपर उठकर एक-दूसरे के सुख-दुख में साझेदारी निभाते हैं.
मेवात का इतिहास गवाह है कि यहाँ का भाईचारा केवल शब्दों में नहीं, बल्कि जमीनी हकीकत में मौजूद है। चाहे वह रामलीला का मंचन हो या किसी त्योहार की खुशियाँ, हिंदू-मुस्लिम एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं.
मेवात यह साबित करता है कि सच्ची एकता और भाईचारा केवल आदर्श नहीं, बल्कि व्यवहार और जज़्बे से ही कायम रहती है. यह धरती आज भी प्रेम, सौहार्द और साझा संस्कृति की धड़कन है.