भारी बारिश और भूस्खलन के बाद नवरात्रि पर शुरू हुई वैष्णो देवी यात्रा, कटरा में भाईचारे की मिसाल

Story by  ओनिका माहेश्वरी | Published by  onikamaheshwari | Date 23-09-2025
Katra in Jammu is an example of Hindu-Muslim unity, grand preparations underway for Navratri at Vaishno Devi Yatra
Katra in Jammu is an example of Hindu-Muslim unity, grand preparations underway for Navratri at Vaishno Devi Yatra

 

ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली  

छब्बीस अगस्त को मूसलाधार बारिश के बीच वैष्णो देवी मार्ग पर हुए विनाशकारी लैंडस्लाइड के कारण 22 दिनों तक स्थगित रहने के बाद इस पवित्र तीर्थस्थल की तीर्थयात्रा 17 सितंबर को पुनः शुरू हुई थी. वैष्णो देवी की तीर्थयात्रा दर्शाती है कि कैसे आस्था विभिन्न समुदायों को एक साथ लाती है और कुछ लोगों के लिए आजीविका का स्रोत है. कटरा हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है और यह पवित्र शहर पूरे देश में भाईचारे का एक मजबूत संदेश भेज रहा है. 

जम्मू-कश्मीर के रियासी जिले में 99% मुस्लिम प्रवासी रहते हैं जिन्होनें तीर्थयात्रियों को माता वैष्णो के भवन तक पहुंचाने का बीड़ा लगभग 700 साल पहले से उठाया हुआ है. गौरतलब है कि अगस्त 2025 में जम्मू और कश्मीर में हुई बारिश और भूस्खलन के दौरान विभिन्न धर्मों के बीच एकजुटता और करुणा के कई उदाहरण सामने आए. कठुआ जिले में एक हिंदू परिवार ने अपने मुस्लिम पड़ोसियों को शरण दी, जिनके घर बाढ़ में क्षतिग्रस्त हो गए थे. मुस्लिम नेताओं ने भी वैष्णो देवी मंदिर में भूस्खलन से हुई मौतों पर शोक व्यक्त किया और प्रभावित परिवारों की मदद की. यह घटनाएं 2014 की बाढ़ जैसी सामुदायिक एकता के इतिहास को याद दिलाती हैं, और स्थानीय विधायक ने इसे जम्मू और कश्मीर की असली मानवता की मिसाल बताया.

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जम्मू-कश्मीर राज्य के जम्मू जिले के कटरा में स्थित माता वैष्णो देवी मंदिर भारत का शीर्ष तीर्थस्थल है जो 5,200 फ़ीट की ऊंचाई पर कटरा से लगभग 12 किलोमीटर (7.45 मील) की दूरी पर स्थित है. 

कटरा में माता वैष्णों के भक्त पहाड़ों में बसी मां वैष्णों के दर्शन केवल घोड़ा, बग्गी, पालकी के द्वारा कर पाते हैं जोकी ज्यादातर मुसलमान ही चलाते हैं. ये सभी गुर्जर मुसलमान हैं. पसीनों में लथपथ होकर भी ये मुस्लिम घोड़ा, बग्गी, पालकी चालक हिन्दू तीर्थयात्रियों को पालकी में सवार कर अपने कन्धों पर उठाते हैं और यही उनकी कमाई का साधन है. जिससे उनके घरों में चूल्हा जलता है. 

वैष्णो देवी के मुस्लिम पालकी वाहक

हिंदू तीर्थयात्री मुस्लिम पालकी ढोने वालों के कंधों पर ही वैष्णो देवी तक जाते हैं. मुस्लिम घोड़ा, बग्गी, पालकी चालक 'जय माता दी' कहकर आपका स्वागत करते हैं और 12 किलोमीटर की खड़ी पहाड़ी चढ़ाई पर केवल तीन या चार बार सांस लेने के लिए रुकते हैं. मुस्लिम घोड़ा, बग्गी, पालकी चालक बाकायदा श्री माता वैष्णो देवी श्राइन से रजिस्टर हैं और उनका करैक्टर सर्टिफिकेट भी है.  

मैने वहां टट्टू मालिकों और पालकी उठाने वालों से बात की जो भक्तों को पहाड़ तक ले जाते हैं. जो मुसलमान हैं वे यात्रा के दौरान जय माता दी' भी कहते हैं और काम के दौरान वक़्त मिलने पर नमाज़ भी अदा करते हैं. मैने इनकी तस्वीरें लीं, जिनमें ज्यादातर युवा कश्मीरी पुरुष थे. 

अब्दुल लतीफ़ की घोड़ी 'रोज़ी' कटरा में चढ़ती है माता की पोड़ी-पोड़ी

यहां मैने घोड़ा चालक अब्दुल लतीफ़ से बातचीत की जो भक्तोँ को माता वेष्णो की यात्रा कराते हैं, रियासी के रहने वाले लतीफ़ ने बताया कि यहाँ कोई फर्क नहीं है सब एक स्वर में जयकारा लगाते हैं. लतीफ़ पिछले दस वर्षों से कटरा में एकता की मिसाल पेश कर रहें हैं.

माता वेष्णो की यात्रा के दौरान ही लतीफ़ वक़्त निकालकर नमाज़ अदा करते हैं. अब्दुल लतीफ़ भक्तों को सवारी कराकर ही रोजी-रोटी कमाते हैं. उनका परिवार रियासी में रहता है और काम अच्छा होने पर वे महीने में 40 से 50 हज़ार कमा लेते हैं. लेकिन अब्दुल लतीफ़ यहां कटरा में किराए पर रहते हैं.  

ये सभी श्राइन बोर्ड की देख रेख में चलते हैं. वे इन सेवाओं के लिए जिला प्रशासन, रियासी द्वारा निर्धारित टट्टू, पिट्ठू और पालकी की दरों के अनुसार ही शुल्क लेते हैं. 

इन सभी का तकरीबन अकड़ा 2500 का है जिसमें 60 प्रतीशत मुसलमान हैं और सभी यहां घोडा, पालकी, पिठ्ठू चलाते हैं जो रियासी डिस्ट्रिक्ट से आकर यहां किराए पर रहते हैं और इनका परिवार रियासी में ही है. रियासी जिले में 60 प्रतीशत मुसलमान और 40 प्रतीशत हिन्दू साथ में बसे हुए हैं. 

यहां कटरा बाज़ार में भी मुस्लिम लोगों की व्यापार में भागीदारी है. कटरा बाजार में हजारों स्थानीय मुस्लिम और हिंदू पवित्र शहर कटरा में एक साथ काम कर रहे हैं और पूरे देश में सांप्रदायिक सद्भाव और भाईचारे का एक मजबूत संदेश भेज रहे हैं. "यह एकता कटरा को हिंदी-मुस्लिम भाईचारे का प्रतीक बनाती है."

यहां ट्रेड के काम में ज्यादातर कश्मीरी हैं जो विशेषकर मेवा और शॉल्स में डील करते हैं. वहीँ यहां केरीएज का कार्य मुस्लिम करते हैं. जो घोड़े, खाचरों और अपनी पीठ पर सामान लादकर ऊपर चढ़ाई तक पहुंचाते हैं. 

 

नवरात्रि पर माता वैष्णो देवी मंदिर को फूलों से सजाया गया

इस साल नवरात्री पर मां वैष्णो देवी के दरबार को फुलों से सजाने के लिए करीब 10 देशों से गेंदा, चमेली, गुटा समेत कई तरह के फूल लाए गए. मार्गों पर भव्य प्रवेश द्वार बनाए गए हैं. 

जम्मू कश्मीर के रियासी जिले में त्रिकुटा पहाड़ियों पर स्थित माता वैष्णो देवी मंदिर को रविवार को शारदीय नवरात्र की पूर्व संध्या पर फूलों से सजाया गया है जिससे अगले नौ दिनों में आने वाले हजारों श्रद्धालुओं के लिए उत्सव का माहौल बन गया है. अधिकारियों ने बताया कि श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड (एसएमवीडीएसबी) ने भी तीर्थयात्रियों का मार्गदर्शन करने, भारी भीड़ का प्रबंधन करने और 12 किलोमीटर लंबे यात्रा मार्ग पर सुचारू आवाजाही सुनिश्चित करने के लिए स्वयंसेवकों को तैनात किया है.

बाईस सितंबर से एक अक्टूबर तक चलने वाले नवरात्र, देवी दुर्गा की उपासना के लिए समर्पित है और इसका माता वैष्णो देवी मंदिर में विशेष महत्व है, जहां इस दौरान सबसे अधिक तीर्थयात्री आते हैं. श्रद्धालु भजन गाते और प्रार्थना करते समृद्धि और कल्याण का आशीर्वाद मांगते हुए, चढ़ाई चढ़ते हैं. सुरक्षा समेत सभी इंतजाम पूरे कर लिए गए हैं. श्रद्धालुओं को बेहतर अनुभव प्रदान करने के लिए ‘भवन’ (गर्भगृह) सहित पूरे मार्ग को पहले की तरह अतिरिक्त सीढ़ियों से सजाया गया है.”

वर्ष 2024 में लगभग 94.8 लाख तीर्थयात्री माता वैष्णो देवी मंदिर के दर्शन के लिए आए, जबकि 2023 में यह आंकड़ा 95.22 लाख तक पहुंच गया। ये संख्याएं क्रमशः इन वर्षों के लिए एक दशक में रिकॉर्ड या दूसरी सबसे अधिक संख्या दर्शाती हैं.

माता वैष्णों देवी की कहानी और मान्यता 

उत्तर भारत मे माँ वैष्णो देवी सबसे प्रसिद्ध सिद्धपीठ है. यह उत्तरी भारत में सबसे पूजनीय पवित्र स्थलों में से एक है. मां वैष्णों देवी की महिमा अपार है, कहते हैं मां के दर से कोई खाली नहीं जाता है. इस धार्मिक स्थल की आराध्य देवी, वैष्णो देवी को माता रानी, वैष्णवी, दुर्गा तथा शेरावाली माता जैसे अनेक नामो से भी जाना जाता है. 
 
यहा पर आदिशक्ति स्वरूप महालक्ष्मी, महाकाली तथा महासरस्वती पिंडी रूप मे त्रेता युग से एक गुफा मे विराजमान है और माता वैष्णो देवी स्वयं यहा पर अपने शाश्वत निराकार रूप मे विराजमान है. 
 
 
वेद पुराणो के हिसाब से ये मंदिर 108 शक्ति पीठ मे भी शामिल है. यहा पर लोग 14 किमी की चढ़ाई करके भवन तक पहुँचते है. प्रतिवर्ष, लाखों तीर्थ यात्री, इस मंदिर का दर्शन करते हैं. मंदिर, 5,200 फ़ीट की ऊंचाई पर, कटरा से लगभग 12 किलोमीटर (7.45 मील) की दूरी पर स्थित है.
 
जंबू वर्तमान जम्मू का प्राचीन नाम है. मान्यता है कि पवित्र गुफा में देवी के मूल उपासक पांडव थे. संभवतः पांडवों का प्रतिनिधित्व करने वाली पांच पत्थर की आकृतियाँ पास की पर्वत श्रृंखला में पाई गईं, जो वैष्णो देवी मंदिर से पांडवों के संबंध को कुछ हद तक विश्वसनीयता प्रदान करती हैं.