आवाज द वाॅयस /अलीगढ़
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) की सर सैयद अकादमी द्वारा आयोजित एक भव्य समारोह में ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान की जीवनी “द लायन ऑफ नाउशेरा: द लाइफ एंड टाइम्स ऑफ ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान” का लोकार्पण किया गया. पुस्तक का विमोचन विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. नैमा खातून ने किया. इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार जिया उस सलाम, राजनीतिक संपादक आनंद मिश्रा, प्रो. आफ़ताब आलम, प्रो. मोहम्मद मोहिबुल हक़ और अन्य गणमान्य व्यक्ति मौजूद रहे.
कुलपति प्रो. नैमा खातून ने अपने संबोधन में कहा कि ऐसे समय में जब देश की विविध सांस्कृतिक विरासत और इतिहास पर लगातार हमले हो रहे हैं और साझा सांस्कृतिक स्मृतियों को सामाजिक और सार्वजनिक रूप से हाशिए पर डालने की कोशिशें की जा रही हैं, ऐसे नायकों की कहानियों को याद करना अत्यंत आवश्यक है.
उन्होंने ब्रिगेडियर उस्मान के बलिदान को याद करते हुए कहा, “35 वर्ष की आयु में पाकिस्तान के खिलाफ 1948 की जंग में नाउशेरा और झंगर में पाकिस्तानी सेना की प्रगति को रोकने वाले ब्रिगेडियर उस्मान की कहानी आज की पीढ़ी के लिए प्रेरणा है. इस तरह की जीवनी लिखना समाज और राष्ट्र सेवा का महत्वपूर्ण कार्य है.”
वरिष्ठ पत्रकार जिया उस सलाम ने पुस्तक पर शोध के अनुभव साझा करते हुए बताया कि सामग्री इकट्ठा करना उतना ही कठिन और धैर्य मांगने वाला कार्य था जितना एक चिड़िया का घोंसला बनाना। उन्होंने बताया कि ब्रिगेडियर उस्मान अपने सैनिकों के साथ हर मंगलवार उपवास रखते थे और दिल में संयुक्त भारत का सपना रखते थे.
उन्होंने अपनी तनख्वाह का एक हिस्सा स्कूलों और शिक्षा संस्थानों को दान किया. जिया उस सलाम ने कहा, “आज के समय में, जब समाज में विविधता, बहुलता और धार्मिक सौहार्द को कमजोर करने का प्रयास हो रहा है, ऐसे नायकों के बलिदान को उजागर करना जरूरी है. जो राष्ट्र अपने नायकों और इतिहास को भूल जाता है, वह अपनी पहचान खो देता है.”
सह-लेखक आनंद मिश्रा ने बताया कि शोध के दौरान ब्रिगेडियर उस्मान के व्यक्तित्व की गहराई ने उन्हें अत्यधिक प्रभावित किया. उन्होंने 1947–48 के समय के अखबारों और संसदीय पुस्तकालय से सामग्री जुटाई और ब्रिगेडियर के परिवारजनों, जिनमें पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी भी शामिल हैं, से जानकारी प्राप्त की. मिश्रा ने कहा, “ब्रिगेडियर उस्मान की कहानी विशेषकर युवाओं तक पहुँचनी चाहिए। उनकी जीवनगाथा देशभक्ति, बलिदान और सेवा की भावना का प्रतीक है.”
प्रो. आफ़ताब आलम ने कहा कि यह पुस्तक एक काउंटर-नैरेटिव प्रस्तुत करती है और दिखाती है कि हर समुदाय ने देश के विकास में योगदान दिया है. ब्रिगेडियर उस्मान पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में सबसे वरिष्ठ सैन्य अधिकारी थे और उन्हें महा वीर चक्र से सम्मानित किया गया.
उनका पैतृक गांव बिबीपुर, गाजीपुर में था और उन्होंने धार्मिक-संप्रदायिक स्वतंत्र, लोकतांत्रिक भारत में रहने का चयन किया.
प्रो. मोहिबुल हक़ ने कहा कि यह पुस्तक सामान्य लेखन नहीं, बल्कि “आईडिया ऑफ इंडिया” का प्रतिनिधित्व करती है और नफ़रत तथा विभाजन के समय में आशा की किरण है. प्रो. शफ़ी किदवई ने बताया कि ब्रिगेडियर उस्मान ने 1932 में एएमयू में नामांकन कराया था लेकिन बाद में रॉयल मिलिट्री अकादमी, सैंडहर्स्ट, इंग्लैंड से अध्ययन किया.
उन्होंने लेखकों की शोधपूर्ण शैली और निष्पक्षता की सराहना की और पुस्तक को शैक्षणिक उपलब्धि बताया.कार्यक्रम का संचालन डॉ. सैयद हुसैन हैदर ने किया और अंत में डॉ. मोहम्मद शाहिद ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया. समारोह में विश्वविद्यालय प्रशासन, वर्तमान एवं पूर्व संकाय सदस्य, विद्वान और छात्र उपस्थित रहे.