'बैंडिट क्वीन' की शूटिंग को याद कर भावुक हुए सौरभ शुक्ला

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 13-10-2025
Saurabh Shukla gets emotional remembering the shooting of 'Bandit Queen'
Saurabh Shukla gets emotional remembering the shooting of 'Bandit Queen'

 

मुंबई

मशहूर अभिनेता, लेखक और निर्देशक सौरभ शुक्ला ने हाल ही में फिल्म 'बैंडिट क्वीन' के साथ अपने शुरुआती फिल्मी सफर को याद करते हुए निर्देशक शेखर कपूर की तारीफ की। उन्होंने बताया कि कैसे इस फिल्म ने उन्हें सिखाया कि "किसी भी गंभीर और अंधेरे विषय में भी हास्य के पल खोजे जा सकते हैं।"

1994 में आई बायोग्राफिकल एक्शन-एडवेंचर फिल्म 'बैंडिट क्वीन', फूलन देवी की ज़िंदगी पर आधारित थी, जो माला सेन की किताब 'India's Bandit Queen: The True Story of Phoolan Devi' पर लिखी गई थी। फिल्म में सीमा बिस्वास ने फूलन देवी का किरदार निभाया था, और इसे शेखर कपूर ने निर्देशित किया था।

एएनआई से खास बातचीत में सौरभ शुक्ला ने कहा,"शेखर कपूर पहले फिल्म निर्देशक थे जिनके साथ मैंने काम किया। मैं पहले से ही उनके फैन था — 'मासूम', 'मिस्टर इंडिया' और फिर 'बैंडिट क्वीन'। जब उनसे पहली बार मिला, तो वे हमारे लिए बहुत बड़े इंसान थे — वो और सिनेमैटोग्राफर अशोक मेहता। उन्होंने मुझे तकनीकी रूप से ही नहीं, भावनात्मक रूप से भी बहुत कुछ सिखाया।"

उन्होंने बताया कि भले ही 'बैंडिट क्वीन' एक गंभीर और हिंसक फिल्म थी, लेकिन शेखर कपूर हर सीन में मानवता और हास्य का एक कोना ढूंढने की कोशिश करते थे।"एक सीन था जिसे शूट किया लेकिन फिल्म में शामिल नहीं किया गया। गांव में डकैती हो रही थी, लोग इधर-उधर भाग रहे थे। एक देसी शराब की दुकान थी जहां दो डकैत बोतलें फेंक रहे थे। तभी एक गांव वाला बोला – 'इतनी निकाल रहे हो, एक हमें भी दे दो!'। इतनी अंधेरी परिस्थिति में भी शेखर कपूर ने एक मानवीय हास्य खोज लिया," शुक्ला ने मुस्कराते हुए याद किया।

'जॉली एलएलबी' और 'सत्या' जैसे फिल्मों के लोकप्रिय अभिनेता ने कहा कि इस अनुभव ने उनकी रचनात्मक सोच में स्थायी प्रभाव डाला।\"उसी फिल्म में, शेखर के साथ रहकर समझ में आया कि अगर ह्यूमर नहीं है, तो कहानी अधूरी है। ये मैंने अब तक अपने काम में अपनाया हुआ है," शुक्ला ने कहा।

उन्होंने शेखर कपूर और राम गोपाल वर्मा जैसे निर्देशकों की तारीफ की, जो भले ही किसी क्षेत्र विशेष से न हों, लेकिन स्थानीय बोली, भावनाएं और लय को बेहद सटीकता से पकड़ लेते हैं।"शेखर को बोली नहीं आती थी, हां हिंदी आती थी... लेकिन उनकी हिंदी साउथ दिल्ली वाली थी। फिर भी वो डायलॉग की रिदम को महसूस करते थे। अक्सर उन्हें देखा कि आंखें बंद करके सिर्फ डायलॉग की ध्वनि और लय पर ध्यान दे रहे हैं। ये एक सहज गुण है," उन्होंने जोड़ा।

'बैंडिट क्वीन' को उस साल राष्ट्रीय पुरस्कार (हिंदी में सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म) और फिल्मफेयर क्रिटिक्स अवॉर्ड में सर्वश्रेष्ठ फिल्म और निर्देशन का सम्मान मिला।

वर्क फ्रंट की बात करें, तो सौरभ शुक्ला ने 'सत्या', 'नायक', 'लगे रहो मुन्ना भाई', 'बरफी!', 'जॉली एलएलबी' जैसी कई यादगार फिल्मों में दमदार अभिनय किया है।