नुसरत फ़तेह अली ख़ान : बॉलीवुड में सूफियाना रंग भरने वाला फनकार

Story by  अर्सला खान | Published by  [email protected] | Date 13-10-2025
Nusrat Fateh Ali Khan: The magic of Bollywood's king of melody
Nusrat Fateh Ali Khan: The magic of Bollywood's king of melody

 

अर्सला खान/नई दिल्ली

हर साल 13 अक्टूबर का दिन संगीत प्रेमियों के लिए एक उत्सव बन जाता है. यही वह दिन है जब दुनिया “शाहंशाह-ए-क़व्वाली” नुसरत फ़तेह अली ख़ान को याद करती है. वो शख़्स जिनकी आवाज़ ने सूफी संगीत को वैश्विक पहचान दिलाई और बॉलीवुड को भी आध्यात्मिकता के एक नए आयाम से परिचित कराया.

बॉलीवुड में नुसरत का जादू

नुसरत फ़तेह अली ख़ान का संगीत सिर्फ सुनने की चीज़ नहीं था, बल्कि महसूस करने की एक इबादत थी. 90 के दशक में जब बॉलीवुड रोमांटिक गीतों के दौर में डूबा हुआ था, तब नुसरत साहब ने अपने सूफियाना रंग से फिल्मों को नया स्वाद दिया.
 
 
 
फिल्म “बंदिश” का गीत “किसी का मिल जाना”, “कच्चे धागे” का “तू माने या ना माने”, और “विरासत” का “प्यार किया तो डरना क्या” जैसे गाने आज भी सुनने वालों के दिलों में जिंदा हैं. संगीतकार ए.आर. रहमान ने तो खुलकर कहा था. “नुसरत साहब की आवाज़ में अल्लाह की तासीर थी। उनकी हर क़व्वाली आत्मा तक उतर जाती थी.”
 
बॉलीवुड से नुसरत का गहरा रिश्ता

नुसरत साहब का भारतीय फिल्म उद्योग से रिश्ता सिर्फ़ गानों तक सीमित नहीं था. कई भारतीय कलाकारों से उनकी गहरी दोस्ती रही. सलमान ख़ान, शाहरुख़ ख़ान और अजय देवगन जैसे सितारे उनके गानों के जबरदस्त प्रशंसक थे.
 
 
 
कहा जाता है कि जब भी नुसरत साहब मुंबई आते, तो ये कलाकार उनके कॉन्सर्ट्स में ज़रूर पहुंचते. शाहरुख़ और सलमान दोनों ने उनकी सूफी धुनों को अपनी फिल्मों में जगह दी. “मेरे रश्के क़मर” और “अफरीन अफरीन” जैसी धुनें बाद में इन्हीं सितारों के साथ जुड़ गईं.
 
सलमान खान और नुसरत 

एक बार मुंबई में हुए एक निजी संगीत आयोजन में सलमान ख़ान और नुसरत साहब घंटों तक बैठकर संगीत और सूफी दर्शन पर बातें करते रहे. सलमान ने बाद में कहा था, “नुसरत साहब जब गाते थे तो लगता था वक्त रुक गया है.” वहीं, शाहरुख़ ख़ान ने एक इंटरव्यू में कहा था, “उनकी आवाज़ फिल्मों की कहानी नहीं कहती थी, वो खुद एक कहानी होती थी.”
 
संगीत की वह आवाज़ जो सीमाओं से परे थी

नुसरत फ़तेह अली ख़ान का सबसे बड़ा योगदान यह रहा कि उन्होंने सूफी संगीत को सीमाओं से परे पहुंचाया. उनकी क़व्वालियां भारत में उतनी ही लोकप्रिय रहीं जितनी पाकिस्तान में.
 
 
 
 
उनकी आवाज़ ने दोनों देशों के बीच संगीत की एक साझा धड़कन पैदा की “ये जो हल्का हल्का सुरूर है”, “अफरीन अफरीन”, “सां सौं ना”, और “दम मस्त कलंदर” जैसे गीतों ने हिंदुस्तान में भी वही मोहब्बत पाई जो पाकिस्तान में.
 
नुसरत की विरासत और बॉलीवुड में अमर नाम

नुसरत साहब की संगीत यात्रा ने बॉलीवुड को गहराई और आध्यात्मिकता दी. उनके बाद उनके भतीजे रहात फ़तेह अली ख़ान ने उनकी परंपरा को आगे बढ़ाया और भारतीय फिल्मों में उसी सूफियाना अंदाज़ को जिंदा रखा.
 
 
 
नुसरत की रचनाओं ने संगीत की दुनिया में जो मानक तय किए, वे आज भी प्रासंगिक हैं. उनका हर सुर, हर तान यह याद दिलाता है कि संगीत न सीमाओं को जानता है, न भाषा को यह सीधे दिल से निकलता है और वहीं जाकर बस जाता है.
 

 

नुसरत फ़तेह अली ख़ान आज सिर्फ़ पाकिस्तान या भारत के नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के हैं. उनकी आवाज़ अब भी हर महफ़िल में गूंजती है “सुरों की वह रूहानी रोशनी, जो कभी बुझ नहीं सकती.”