Nusrat Fateh Ali Khan's birth anniversary: Connection with Imran Khan and Amitabh Bachchan?
अर्सला खान/नई दिल्ली
हर साल 13 अक्टूबर को दुनिया भर के संगीत प्रेमी'शाहंशाह-ए-क़व्वाली'नुसरत फ़तेह अली ख़ान को याद करते हैं. उनका जन्म 13 अक्टूबर 1948 को फ़ैसलाबाद (तब का लायलपुर), पाकिस्तान में हुआ था, लेकिन उनकी जड़ें और संगीत दोनों का रिश्ता भारत की मिट्टी से गहराई से जुड़ा रहा. नुसरत का परिवार मूल रूप से जालंधर, पंजाब (भारत) से था, जो 1947 के विभाजन के समय पाकिस्तान चला गया था. यही कारण है कि उनके संगीत में भारतीय सुर, राग और हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की आत्मा आज भी गूंजती है.
भारत से नुसरत का अटूट रिश्ता
नुसरत फ़तेह अली ख़ान भले पाकिस्तान के रहने वाले थे, लेकिन उनका संगीत भारत में उतना ही प्यार पाया जितना अपने देश में। वे अक्सर कहते थे कि “भारत मेरी आत्मा में बसता है, क्योंकि यहीं से हमारी संगीत परंपरा की शुरुआत हुई.
उन्होंने कई बार भारत का दौरा किया और दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और लखनऊ जैसे शहरों में यादगार लाइव प्रस्तुतियां दीं. भारत के संगीत प्रेमियों के लिए उनके कॉन्सर्ट किसी त्योहार से कम नहीं होते थे.
उनके गानों “अफरीन-अफरीन”, “तू माने या ना माने”, “अल्लाह हू”, “ये जो हल्का हल्का सुरूर है” जैसी क़व्वालियां भारत में आज भी उतनी ही लोकप्रिय हैं जितनी 80 और 90 के दशक में थीं. भारतीय संगीतकारों. खासकर ए.आर. रहमान और जावेद अख्तर ने कई मौकों पर नुसरत को अपना प्रेरणास्रोत बताया. रहमान ने कहा था, “नुसरत साहब के सुर अल्लाह की आवाज़ जैसे थे, उन्हें सुनकर रूह को सुकून मिलता है.”
इमरान ख़ान और नुसरत
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने 1992 के विश्व कप के दौरान बताया था कि कैसे नुसरत की क़व्वालियों ने उनकी टीम को मानसिक रूप से मज़बूत बनाया. इमरान ने कहा था. “हम हर जीत के बाद नुसरत साहब की क़व्वालियां सुनते थे. उनके सुर हमारी थकान मिटा देते थे.”
उनके घर में कई बार नुसरत को निजी महफ़िलों में गाते देखा गया, और इमरान ने खुलकर कहा था कि नुसरत सिर्फ़ गायक नहीं, एक आध्यात्मिक शक्ति थे.
अमिताभ बच्चन और नुसरत
भारत के महानायक अमिताभ बच्चन भी नुसरत के बड़े प्रशंसक थे. एक कार्यक्रम में दोनों अमिताभ और इमरान, नुसरत की महफ़िल में साथ बैठे नजर आए थे. अमिताभ ने बाद में कहा था, “नुसरत की आवाज़ में एक जादू है, जो वक्त रोक देता है. वे गाते नहीं थे, बल्कि रूह को जगा देते थे.”
नुसरत की क़व्वालियों ने बॉलीवुड को भी गहराई से प्रभावित किया. उनकी धुनें कई हिंदी फिल्मों, जैसे “बंदिश,” “कारगर,” “विरासत,” और “कच्चे धागे” में इस्तेमाल की गईं, और बाद में रहमान ने उनके कई ट्रैक्स को रीमिक्स कर एक नई पीढ़ी तक पहुंचाया.
सरहदों से परे एक आवाज़
इमरान ख़ान के दिल में प्रेरणा, अमिताभ बच्चन के शब्दों में श्रद्धा और करोड़ों भारतीयों के दिलों में इश्क़ यही था नुसरत फ़तेह अली ख़ान का जादू.
वह एक ऐसी आवाज़ थे, जो धर्म, देश और भाषा की सीमाओं से परे थी.
उनकी जयंती सिर्फ़ एक तारीख़ नहीं, बल्कि उस विरासत का उत्सव है जिसने बताया कि संगीत ही असली सरहद है, जो जोड़ता है, तोड़ता नहीं.