श्याम बेनेगल की फिल्म मुजीब मेकिंग ऑफ नेशन में क्या है जिसने बांग्लादेश में मचा दिया है धमाल

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 01-11-2023
श्याम बेनेगल की फिल्म मुजीब का पोस्टर
श्याम बेनेगल की फिल्म मुजीब का पोस्टर

 

जयनारायण प्रसाद/ कोलकाता

एक अच्छी फिल्म नई पीढ़ी को अपने अतीत से वाकिफ कराने के साथ-साथ उसका इतिहास भी बताती चलती है. श्याम बेनेगल निर्देशित 'मुजीब : द मेकिंग ऑफ ए नेशन' ऐसी ही एक फिल्म है. यह बॉयोपिक मूलतः बांग्लादेश के राष्ट्रपति शेख मुजीबुर्रहमान के राजनीतिक संघर्ष की कथा सुनाती है, साथ में यह भी बताती है कि किसी राष्ट्र के निर्माण में उस देश की भाषा कितनी अहम रोल निभाती है.

मुजीब का पोस्टर

इस बॉयोपिक में हैं मुजीब से संबंधित कई कहानियां

श्याम बेनेगल निर्देशित लगभग तीन घंटे की इस बॉयोपिक में शेख मुजीबुर्रहमान ‌से संबंधित कई कहानियां हैं. शेख मुजीबुर्रहमान के स्कूली जीवन से शुरू हुई कहानी आखिर में मुजीबुर्रहमान और उनके परिवार के सदस्यों की नृशंस हत्या से खत्म होती है.

बांग्लादेश की मौजूदा प्रधानमंत्री और ‌शेख मुजीबुर्रहमान की बड़ी बेटी शेख हसीना और हसीना की छोटी बहन रेहाना इसलिए बच गई थीं, क्योंकि दोनों उस समय पश्चिम जर्मनी में थीं हसीना के पति से मिलने. हसीना के पति वहां वैज्ञानिक थे.

 

कहां से शुरू होती हैफिल्म मुजीब की कहानी

10जनवरी, 1971को जब पाकिस्तानी जेल से शेख मुजीबुर्रहमान रिहा होते हैं, वहां से यह बॉयोपिक शुरू होती है. हवाई जहाज से उतरने के बाद शेख मुजीबुर्रहमान देश की जनता को संबोधित करते हैं और कहते हैं 'हर कीमत पर पाकिस्तान को हमारी बांग्ला जुबान को मान्यता देनी ही पड़ेगी वरना हम जान दे देंगे.'

यह बॉयोपिक यहीं से टर्न लेती है...

mujib scene

उसके चंद मिनटों बाद यह बॉयोपिक अतीत की ओर मुड़ती है और शेख मुजीबुर्रहमान का स्कूली जीवन शुरू हो जाता है. स्कूली जीवन में ही मुजीबुर्रहमान का लड़ाकू तेवर दिखता है और आगे चलकर वे बांग्लादेश के एक कद्दावर नेता बनकर उभरते हैं. शेख मुजीबुर्रहमान के इस संघर्ष में उसकी पत्नी हर पल खड़ी दिखती है.

 

मुजीब फिल्म की किसने की है फंडिग

बांग्लादेश फिल्म डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (बीएफडीसी) और भारत सरकार के नेशनल फिल्म डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (एनएफडीसी) की साझेदारी में बनी है यह बॉयोपिक. दोनों देशों के फिल्म निगमों के बीच वर्ष 2018में एक समझौता हुआ था.

83 करोड़ रुपए के बजट से बननी शुरू हुई यह बॉयोपिक आखिर में कोरोना महामारी की वजह से बीच में अटक गई. फिर इसकी शूटिंग शुरू हुई और वर्ष 2022में फिल्म 'मुजीब' का ट्रेलर ‌रिलीज हुआ.

वर्ष 2020 में बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान के जन्म शताब्दी वर्ष में इस बॉयोपिक को बन जाना था, लेकिन यह कोरोना और दूसरे कारणों से अब जाकर बीते 13अक्तूबर, 2023को बांग्लादेश में रिलीज हुई. भारत में यह बॉयोपिक 27 अक्तूबर, 2023 से सिनेमा हॉल में है.

reel and real mujib

मुजीब फिल्म पर बांग्लादेश में क्या है रेस्पॉन्स

बांग्लादेश के 158 सिनेमा हॉल में शेख मुजीबुर्रहमान पर बनीं यह बॉयोपिक खूब चल रही है.

13 अक्तूबर, 2023 से रिलीज हुई यह फिल्म अमूमन सभी हॉल में फुल जा रही है. बांग्लादेशी अवाम इस फिल्म को देख कर रो रहे हैं और शेख मुजीबुर्रहमान के संघर्ष को फिर से याद कर रहे हैं.

इस बॉयोपिक को बांग्लादेश की प्रधानमंत्री और शेख मुजीबुर्रहमान की बेटी शेख हसीना ने भी देखा है. इस बॉयोपिक के संगीतकार शांतनु मोइत्रा भी प्रीमियर के मौके पर बांग्लादेश की राजधानी ढाका में थे.

शांतनु मोइत्रा के पिता बांग्लादेश में रंगपुर इलाके के रहने वाले थे. बाद में हिंदुस्तान आ गए. शांतनु मोइत्रा की पढ़ाई दिल्ली में हुई. शांतनु ने फिल्म 'थ्री इडियट' समेत कई‌ हिंदी फिल्मों का संगीत दिया है.

इस बॉयोपिक 'मुजीब' में शांतनु मोइत्रा द्वारा संगीतबद्ध गानों को सुनकर बांग्लादेशी जनता मंत्रमुग्ध है. शांतनु मोइत्रा ने श्याम बेनेगल की इस बॉयोपिक को 'ऐतिहासिक महत्व की फिल्म' करार दिया है. इस बॉयोपिक के निर्देशक श्याम बेनेगल बीमार होने की वजह से बांग्लादेश नहीं जा सके थे.

Arifin shubho

मुजीब फिल्म में कौन हैं कलाकार

175 मिनट की इस फीचर फिल्म 'मुजीब' में 150 से ज्यादा कलाकार हैं, जिसमें एक सौ से ज्यादा कलाकार बांग्लादेश के हैं. जिसने इस फिल्म में शेख मुजीबुर्रहमान की भूमिका निभाई है उसका नाम है आरिफिन शुभो.

41 वर्षीय आरिफिन शुभो ने इस फिल्म में अभिनय करने के लिए सिर्फ एक रुपया (बांग्लादेशी एक टाका) लिया है. आरिफिन शुभो ‌ने कहा है - 'यह उसकी जिंदगी की एक महत्वपूर्ण और  यादगार फिल्म है. उसका बस चलता तो एक रुपया भी नहीं लेते.'

आरिफिन शुभो ने शेख मुजीबुर्रहमान का किरदार निभाने के लिए इस फिल्म में अपना वजन बीस किलो बढ़ाया है. पहले आरिफिन का वजन अस्सी किलो था.‌ आरिफिन शुभो बताते हैं - 'निर्देशक श्याम बेनेगल का कहना था शेख मुजीबुर्रहमान शुरू में काफी दुबले थे. मुजीबुर्रहमान का वजन आखिरी दिनों में बढ़ा था.'

यही नहीं, इस युवा बांग्लादेशी अभिनेता आरिफिन ‌शुभो‌‌ को शेख मुजीबुर्रहमान का किरदार निभाने के लिए पांच बार ऑडिशन देना पड़ा था.

आरिफिन ‌शुभो‌‌ कहते हैं - 'श्याम बेनेगल को कट् पसंद नहीं है. श्याम बाबू एक टेक में शॉट पूरा करते हैं. शूटिंग के समय कोई कैमरा के सामने से गुजर जाता है, तो वे बेहद नाराज़ हो जाते हैं.' बहुत डिसीप्लीन्ड निर्देशक हैं श्याम बेनेगल.' 

 

शेख मुजीब की पत्नी बनी हैं नुसरत इमरोज़ तिशा

इस बॉयोपिक में शेख मुजीबुर्रहमान की पत्नी बनीं नुसरत इमरोज़ तिशा ने भी अभिनय के लिए सिर्फ एक रुपया लिया है. वह इस फिल्म में शेख मुजीबुर्रहमान की पत्नी रेणु के किरदार में हैं.

इसके अलावा शेख हसीना के किरदार में नुसरत फारिया, महात्मा गांधी की भूमिका में दीपक अंतानी, जुल्फिकार अली भुट्टो के किरदार में रजित कपूर, अब्दुल हमीद खान भसानी के रोल में राईसुल इस्लाम असाद, बंगबंधु के पिता की भूमिका (45से 65) में चंचल चौधरी, हुसैन शहीद सुहरावर्दी के रोल में तौकीर अहमद और टिक्का खान बने ज़ायेद खान ने बहुत बारीकी से अपना किरदार निभाया है. ये सब बांग्लादेश के दक्ष अभिनेता हैं. इनमें सिर्फ रजित कपूर भारतीय हैं.

film mujib

हिंदुस्तान के कुछ कलाकार भी हैं इसमें

श्याम बेनेगल निर्देशित फिल्म 'मुजीब' में महात्मा गांधी की भूमिका भारतीय अभिनेता रजित कपूर ने निभाई हैं.

रजित कपूर इससे पहले श्याम बेनेगल की फिल्म 'द मेकिंग ऑफ महात्मा' में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं. श्याम बाबू के 'सूरज का सातवां घोड़ा' में भी रजित‌ कपूर ने डूबकर अभिनय किया था. रजित के अभिनय का फलक बहुत बड़ा है.

हसीना का निकाह कराने वाले मौलवी का किरदार भारतीय अभिनेता अरुणांशु रायचौधरी ने निभाई है. अरुणांशु पहले 'द‌ हिंदू' अखबार में छायाकार थे. उससे पहले 'जनसत्ता' कलकत्ता में. अब अरुणांशु रायचौधरी मुंबई में रहकर अभिनय की दुनिया का जीवन जी है.

 

कैसे हुआ था बांग्लादेश का युद्ध और क्या थी मुजीब की जिंदगी

मुजीबुर्रहमान का जन्म 17मार्च, 1920को हुआ था और अंत 15अगस्त, 1975को. बांग्लादेश का युद्ध 26मार्च, 1971को शुरू हुआ था. युद्ध में अनेक बांग्लादेशी लोग मारे गए थे. आखिर में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बांग्लादेश का साथ दिया और पाकिस्तान की सेना को हथियार डालना पड़ा.

यह बॉयोपिक ईमानदारी से उसे भी दिखाता है. श्याम बेनेगल ने शेख मुजीबुर्रहमान के संघर्ष और बांग्लादेश युद्ध की एक-एक कड़ी को बहुत बारीकी से इस बॉयोपिक में रखा है और पाकिस्तानी सेना की नृशंस हिंसा को भी.

इस बॉयोपिक को बनाने के लिए तीन फिल्मकारों के नाम थे

शेख मुजीबुर्रहमान पर इस बॉयोपिक को बनाने के लिए शुरू में श्याम बेनेगल, गौतम घोष और फिल्मकार कौशिक गांगुली का नाम था. आखिर में बांग्लादेश की एक उच्चस्तरीय चयन समिति ने श्याम बेनेगल के नाम पर अपनी मुहर लगाई. उसके बाद ‌श्याम बेनेगल से संपर्क किया गया. फिर शुरू हुई 83करोड़ वाली शेख मुजीबुर्रहमान पर यह बॉयोपिक!

बड़ी बात यह है जिसने इस बॉयोपिक में शेख मुजीबुर्रहमान की महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, उसने इसमें अभिनय के लिए सिर्फ एक रुपया लिया है. उस बांग्लादेशी अभिनेता का नाम है आरिफिन शुभो !