अजित राय / जेद्दा, सऊदी अरब से
जेद्दा (सऊदी अरब) में आयोजित तीसरे रेड सी अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में हिंदी सिनेमा के मशहूर निर्माता-निर्देशक करण जौहर ( मूल नाम राहुल कुमार जौहर, 51 वर्ष ) ने स्वीकार किया कि उनके जीवन में कभी कोई प्रेम कहानी नहीं रही, पर उन्होंने अपनी अधिकांश फिल्मों में दर्शकों को प्रेम कहानियां हीं सुनाई है.
उन्हें सुनने के लिए जेद्दा के रेड सी माल के वोक्स सिनेमा में बड़ी संख्या में बॉलीवुड से बेइंतहा प्यार करने वाले दर्शक मौजूद थे जिनमें सबसे ज्यादा पाकिस्तानी महिलाएं थी जिन्होंने करण जौहर की सभी फिल्में देख रखी थी. उनके लिए उमड़ी भारी भीड़ को देखकर पता चलता है कि उनका स्टारडम किसी अभिनेता अभिनेत्री से कम नहीं हैं. मिडिल इस्ट के देशों में उनकी फिल्मों की काफी लोकप्रियता है.
उन्होंने कहा कि वे दो जुड़वां बच्चों के पिता हैं और अपनी 81 वर्षीय मां के साथ मिलकर उनका पालन पोषण कर रहें हैं. उन्होंने कहा " पर मैं जानता हूं कि प्यार क्या होता है? मुझे उन लोगों से डर लगता है जो प्रेम के लिए समय नहीं निकाल सकते . याद रहे कि करण जौहर ने फरवरी 2017 में सरोगेसी ( उधार के गर्भ) से दो जुड़वां बच्चों के पिता बने थे.
उन्होंने बेटे का नाम अपने पिता ( यश जौहर) के नाम पर यश रखा तो बेटी का नाम अपनी मां ( हीरू) के नाम को उल्टा करके रूही रखा। उनके पिता यश जौहर पंजाबी और मां हीरू जौहर सिंधी हिंदू है.' कुछ कुछ होता है '(1998) जैसी ब्लॉकबस्टर फिल्म से अपना करियर शुरू करने वाले करण जौहर ने कहा कि ' ऐ दिल है मुश्किल '(2016) के सात साल बाद मैंने ' रॉकी और रानी की प्रेम कहानी '(2023) बनाई है.
इसी मई में मैं 51 साल (25 मई 1972) को हुआ हूं. जब मैं सोने जाता हूं तो अपनी फिल्मों की कहानियों के बारे में सोचता हूं, टाक शो के बारे में नहीं. उन्होंने अपनी नई फिल्म ' किल ' के बारे में कहा कि यह हिंदी सिनेमा के इतिहास में संभवत सबसे हिंसक फिल्म है जिसे एक साथ देखने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा हूं.
इसे खाली पेट मत देखिएगा नहीं तो फिल्म देखने के बाद खाना नहीं खा पाएंगे. इसी साल टोरंटो अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में इस फिल्म का वर्ल्ड प्रीमियर हुआ था और कहा जाता है कि वहां इसे बहुत पसंद किया गया।याद रहे कि करण जौहर ने गुनीत मोंगा के साथ इसे प्रोड्यूस किया है और निर्देशक हैं निखिल नागेश भट्ट. ' किल ' में रांची से दिल्ली जा रही राजधानी एक्सप्रेस ट्रेन पर एक लूटेरों का गैंग आधी रात को हमला करता है.
नेशनल सिक्योरिटी गार्ड के दो कमांडो उनका मुकाबला करते हैं. फिर पूरी ट्रेन में जो हिंसा का तांडव होता है वह भयानक ही नहीं हृदयविदारक है। हिंदी सिनेमा में हिंसा कोई नई बात नहीं है, पर यह फिल्म कोरियाई जापानी फिल्मों की तर्ज पर हिंसा का लयात्मक सौंदर्यशास्त्र रचने की कोशिश करती है.
करण जौहर ने हिंदी सिनेमा में नेपोटिज्म ( परिवारवाद) के सवाल पर हिंदी में जवाब देते हुए कहा कि इससे बड़ा झूठ कुछ हो हीं नहीं सकता. उन्होंने कहा कि उदाहरण के लिए उनकी नई फिल्म ' राकी और रानी की प्रेम कहानी ' में जब उन्होंने आलिया भट्ट का ऑडिशन देखा तो पाया कि रानी की भूमिका के लिए वे सबसे बेस्ट थीं.
उनके लिए यह बात मायने नहीं रखती कि वे किसकी बेटी ( महेश भट्ट) है और किस परिवार से आई है. उन्होंने कहा कि अब तक वे करीब तीस से भी अधिक लोगों को फिल्मों में मौका दे चुके हैं. यह किस्मत की बात है कि किसी को चांस मिल जाता है और कोई इंतजार करता रहता है.
उन्होंने कहा कि वैसे तो हालीवुड में भी नेपोटिज्म रहा है. भारत में तो बहुत बाद में आया। दरअसल सिनेमा में कास्टिंग के समय आप अपनी अंतरात्मा की आवाज ( इंस्टिंक्ट) को ही सुनते हैं. सबसे पहले तो आप अपने विश्वास और भरोसे पर फिल्म बनाते हैं.उन्होंने अपने पिता यश जौहर को याद करते हुए कहा कि वे कहते थे कि लोगों को लोगों की जरूरत होती है. हमें कामयाबी नाकामयाबी की चिंता छोड़ लोगों को जोड़ने की कोशिश करनी चाहिए. मैं सिनेमा में यहीं कर रहा हूं.
उन्होंने अपने पिता यश जौहर को याद करते हुए कहा कि वे सत्तर के दशक में एक फिल्म प्रोड्यूसर थे। सबसे थैंकलेस काम प्रोड्यूसर का होता है.उनका अधिकांश समय ऐक्टर, डायरेक्टर और दूसरे लोगों के अहम् ( ईगो) को संतुष्ट करने में बीतता था. वे हमेशा कहते थे कि काम करने वाले के लिए असफलता कोई मायने नहीं रखती. आप बाहर का शोर मत सुनिए, अपने अंदर की आवाज़ सुनिए.
मुंबई से बाहर हॉलीवुड में फिल्म बनाने के सवाल पर करण जौहर ने साफ कहा कि यह उनके वश की बात नहीं है. वे केवल हिन्दी में ही फिल्में बना सकते हैं . उन्होंने कहा कि मेरा दिल मेरे देश भारत मे बसता है. हिंदी ही मेरी भाषा है। मैं हिंदी में ही फिल्म बना सकता हूं. उसी को लेकर सारी दुनिया में जाऊंगा. उन्होंने कहा कि जब मैंने ' माय नेम इज खान ' (2010) बनाई थी तो लास एंजिल्स की यात्रा की थी. फाक्स स्टार स्टूडियो के साथ कई बिजनेस मीटिंग हुई पर बात नहीं बनी.
उन्होंने कहा कि वे एक घंटे के लिए हालीवुड की मशहूर अभिनेत्री मेरिल स्ट्रीप (उम्र 74 साल) से मिले थे और उनके साथ भोजन किया था और वे उनके दीवाने हो गए थे. हो सकता है कि मेरिल स्ट्रीप को वह मुलाकात अब याद न हों पर मैं आज तक उनसे ऑब्सेस्ड हूं.
वे हमारी दुनिया में बेस्ट अभिनेत्री हैं. उन्होंने कहा कि एक बार वे पेरिस में गूची ( परफ्यूम कंपनी) के फैशन शो में भाग लेने गए तो फ्रेंच दर्शकों का एक समूह पास आकर ' करण - करण चिल्लाने लगा। मेरी फिल्म ' कभी खुशी कभी ग़म ' कुछ ही दिनों पहले फ्रांस में रीलिज हुई थी.
यह पूछे जाने पर कि भारतीय सिनेमा के बारे में दुनिया भर में क्या गलतफहमी है, उन्होंने कहा कि सबसे बड़ी गलतफहमी यह है कि हमारी फिल्मों में केवल नाच गाना ही होता है और कंटेंट बहुत कम होता है. यह धारणा सही नहीं है। यदि आप भाषाई सिनेमा में जाएं तो बांग्ला, मलयालम, मराठी, कन्नड़ यहां तक कि ओड़िया, पंजाबी और असमी सिनेमा में भी कंटेंट की भरमार है। हमें कहानी कहना आता है.
एन आर आई ( प्रवासी) सिनेमा के सवाल पर उन्होंने कहा कि ऐसा कोई सिनेमा नहीं होता। हमें दर्शकों को देसी-विदेशी में बांटकर नहीं देखना चाहिए. भावनाएं और संवेग सारी दुनिया में पहुंच सकते हैं। अलग से एनआरआई सिनेमा बनाने की कोई जरूरत नहीं है.
फिल्मों में अभिनय करने के सवाल पर उन्होंने कहा कि ऐसा उन्होंने कई बार कोशिश की पर बात नहीं बनी। आखिरी कोशिश ' बांबे वेलवेट '(2015) में की. इस फिल्म के निर्देशक अनुराग कश्यप एक ग्रेट फिल्मकार हैं. वह फिल्म एक बड़ी डिजास्टर रही। मुझे लगता है कि अभिनय करना मेरा काम नहीं है.
' काफी विद करण ' टाक शो के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि मुझसे पहले सिमी ग्रेवाल ( रेंडेवू विद सिमी ग्रेवाल) और तबस्सुम ( फूल खिले हैं गुलशन गुलशन) काफी चर्चित टाक शो करती रहीं हैं.जब मैंने 2004 में अपना टाक शो ' काफी विद करण ' शुरू किया तो मेरे सभी दोस्तों ने पसंद किया और मुझे प्रोत्साहित किया. लोग 19 साल बाद आज भी उसको याद करते हैं. इसलिए उसे दोबारा शुरू किया. पर यह मेरा मुख्य काम नहीं है। मैं जब सोता हूं तो कहानी के बारे में सोचता हूं टाक शो के बारे में नहीं.
उन्होंने कहा कि राज कपूर और यश चोपड़ा उनके आदर्श है. इनसे उन्होंने बहुत कुछ सीखा। यह भी सच है कि आज फिल्म निर्माण पूरी तरह बदल गया है. पच्चीस साल पहले जब मैंने शुरुआत की थी तो यह इतना जटिल नहीं था. आज कैमरे और एडिटिंग की नई तकनीक आ गई है. सिनेमा में डिजिटल क्रांति आ गई है जिससे सिनेमा का जादुई अनुभव बदल गया है। अब एक और नई चीज सोशल मीडिया आ गया है.
अक्सर विवादों में रहने पर उन्होंने कहा कि वे ' ट्रोल फेवरिट ' हैं। उन्हें अक्सर बात बेबात ट्रोल किया जाता है क्योंकि उनका एक नाम है और ट्रोलर्स बेनामी लोग हैं. मैं इसका भी मजा लेता हूं. लेकिन मैं आलोचनाओं से नहीं घबराता। मैं हमेशा अपने आलोचकों समीक्षकों से मिलना पसंद करता हूं.
मैं अपनी फिल्मों की समीक्षाएं ध्यान से पढ़ता हूं. आजकल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की बहुत चर्चा हो रही है. मुझे लगता है कि कोई भी चीज ओरिजनल की जगह नहीं ले सकती. कला में मौलिकता की जगह हमेशा बनी रहेगी. इसलिए घबराने की कोई जरूरत नहीं है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से सिनेमा को कोई खतरा नहीं है.