मोहम्मद सुहैल: दिन में ई-रिक्शा, रात में पढ़ाई, और फिर NEET में सफलता

Story by  ओनिका माहेश्वरी | Published by  onikamaheshwari | Date 21-06-2025
UP boy drives e-rickshaw by day, studies by night, ends up cracking NEET
UP boy drives e-rickshaw by day, studies by night, ends up cracking NEET

 

ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली 
 
मोहम्मद सुहैल की कहानी संघर्ष और दृढ़ संकल्प की मिसाल है. उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के एक निम्न-मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाले सुहैल ने दिन में ई-रिक्शा चलाकर और रात में पढ़ाई करके अपने तीसरे प्रयास में NEET UG में 609 अंक हासिल कर अपने परिवार के लिए एक नई उम्मीद जगा दी.
 
सुहैल के परिवार में किसी ने भी 12वीं कक्षा से आगे की पढ़ाई नहीं की थी, लेकिन उनकी माँ का सपना था कि उनका बेटा डॉक्टर बने. सुहैल ने अपनी माँ के सपने को अपना लक्ष्य बनाया और दिन-रात मेहनत की. उनकी माँ की निरंतर प्रेरणा और विश्वास ने उन्हें इस रास्ते पर चलने और उनके सपने को पूरा करने के लिए प्रेरित किया.
 
जब सुहैल ने 12वीं कक्षा पूरी की, तो परिवार केवल एक को कॉलेज भेजने की स्थिति में था. उनके भाई ने बीकॉम कोर्स शुरू किया और सुहैल ने परिवार की मदद के लिए ई-रिक्शा चलाना शुरू किया. वह दिन में ई-रिक्शा चलाते और रातों को पढ़ाई करते, अक्सर आधी रात तक जागते रहते.
 
 
सुहैल के लिए NEET के बारे में जानकारी बहुत कम थी, लेकिन एक दोस्त ने उन्हें इसके बारे में बताया और बताया कि यह सस्ती MBBS सीटों का एक मौका हो सकता है. सुहैल ने फ़िज़िक्सवाला के किफायती ऑनलाइन बैच का सहारा लिया, जिसकी कीमत 3,000-4,000 रुपये थी, और जिसे वह आसानी से वहन कर सकते थे.
 
उनका पहला NEET स्कोर 369 था, लेकिन सुहैल ने हार नहीं मानी. उन्होंने अपने तीसरे प्रयास में 609 अंक प्राप्त किए. सुहैल के रास्ते में मुश्किलें भी आईं, लेकिन मेरठ के पीडब्लू विद्यापीठ ने उन्हें समर्थन दिया. विद्यापीठ ने उन्हें मुफ्त प्रवेश, मार्गदर्शन और हर संभव सहायता प्रदान की.
 
सुहैल ने अपनी दिनचर्या पर अधिक जोर नहीं दिया, लेकिन उन्होंने एक सिद्धांत अपनाया कि जो शुरू करो, उसे पूरा करो. उनके परिवार ने भी कई त्याग किए. उनके भाई ने अपनी पढ़ाई छोड़ दी और काम करना शुरू किया ताकि वह सुहैल की मदद कर सकेंa
 
जब NEET के परिणाम सामने आए, सुहैल अपनी दादी के घर पर थे. कमरे में खुशी का माहौल था, लोग चिल्ला रहे थे, जश्न मना रहे थे और सुहैल को गले लगा रहे थे. यह एक ऐसे परिवार का जश्न था, जहां किसी ने कभी डॉक्टर बनने का सपना भी नहीं देखा था.
 
सुहैल का NEET रैंक 11,000 था, जो शायद उन्हें शीर्ष कॉलेजों में प्रवेश नहीं दिलवाता, लेकिन एक सरकारी मेडिकल कॉलेज में सीट पाने के लिए पर्याप्त था. वह अब MBBS की पढ़ाई कर रहे हैं और सर्जरी की पढ़ाई करने की उम्मीद रखते हैं. सुहैल की कहानी उन सभी लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है जो अपने सपनों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

सौजन्य: इंडिया टुडे