अरीबा अशरफ /वाराणसी
उत्तर प्रदेश में मदरसों की स्थिति सुधारने के लिए जब सर्वेक्षण का दौर चल रहा है. ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के एक ऐसे मदरसे का पता चला है, जहां के मुस्लिम बच्चे न केवल धारा प्रवाह संस्कृति पढ़ते, लिखते और बोलते हैं. प्रधानमंत्री के ‘एक हाथ में कंप्यूटर और दूसरे में कुरान’ वाले सूत्र पर भी पूरा अमल करते हैं. यह मदरसा है वाराणसी के अर्दली बाजार का मदरसा खानम जान.
इस मदरसे में उर्दू, अरबी और फारसी के साथ संस्कृत भी पढ़ाई जाती है. यहां की शिक्षा व्यवस्था में वे सभी विषय शामिल हैं जो बच्चों को उनके जीवन में सफलता की राह पर ले जाने के लिए जरूरी हैं.मदरसा खानम जान ने एक हाथ में कुरान और एक हाथ में कंप्यूटर के सूत्र पर चलकर देश में एक मिसाल कायम की है.
यह एक ऐसा मदरसा है जहां छात्रों की कुल संख्या में 60 मुस्लिम और 40 प्रतिशत गैर-मुस्लिम हैं. इसके बावजूद यहां के पाठ्यक्रम में धार्मिक और सांसारिक शिक्षा में गजब का संतुलन है. मदरसे में देशभक्ति पर जोर है.
यहां के एक-एक बच्चे को राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान के महत्व का पता है. प्रार्थना में रोज याद दिलाया जाता है- मजहब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना. यहां की शिक्षा परस्पर सम्मान पर आधारित है.
यही वजह है कि बच्चे न केवल स्वतंत्रता और गणतंत्र दिवस उत्सव में पुरजोर तरीके से भाग लेते हैं, झंडा जुलूस भी निकालते हैं. इस मदरसे का मूल मंत है ‘ हमें देश की आवाज बनना है तो सड़कों पर उतरना होगा.
इसपर अमल करते हुए पुलवामा हमले के बाद मदरसे के बच्चे वाराणसी के एक प्रसिद्ध चौक पर आतंकवाद और पाकिस्तान के खिलाफ एक बड़े प्रदर्शन में भाग लिया था.
मदरसों और इसकी गुणवत्ता
मदरसा खानम जान की स्थापना 1978में हुई थी. इसे 2006में आधिकारिक मंजूरी मिली थी. स्थापना के बाद से यहां सभी विषयों की पढ़ाई कराई जा रही है.अभी मदरसे में 1,400 बच्चे पढ़ते हैं. इनमें 60 प्रतिशत मुस्लिम और 40 प्रतिशत गैर-मुस्लिम हैं. दस साल पहले यहां संस्कृत को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया गया था.
इसके अलावा यहां एनसीईआरटी शैली की शिक्षा को महत्व दिया जाता है.यहां शिक्षकों में किसी तरह का कोई धार्मिक प्रतिबंध नहीं है.मदरसा खानम जान के प्रिंसिपल सलाहुद्दीन रजा ने आवाज द वॉइस को बताया कि दस साल पहले हमने मदरसे के पाठ्यक्रम में संस्कृत को शामिल किया था.
संस्कृत पढ़ाने के लिए अलग से शिक्षक नियुक्त किया गया है. इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ा है. बच्चे बड़े उत्साह से न केवल संस्कृत पढ़ते हैं. धारा प्रवाह संस्कृत बोलते- लिखते भी हैं.
मदरसे के प्रिंसिपल ने बताया कि उनके मदरसे में 35से 40फीसदी बच्चे हिंदू हैं. इसी अनुपात में गैर मुस्लिम शिक्षक भी रखे गए हैं. इसके बावजूद सब खुश हैं. एक दूसरे का सम्मान करते हैं.
सलाहुद्दीन रजा कहते हैं, हमारे मदरसे की सबसे खास बात है, यहां किसी धर्म के बच्चों पर किसी भी विषय को लेकर कोई पाबंदी नहीं है. हर बच्चा अपने शौक और सलाहियत के हिसाब से अरबी, उर्दू के साथ हिंदी, संस्कृत और अन्य विषय पढ़ता है.
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री की इच्छा है कि बच्चों के एक हाथ में कुरान और दूसरे हाथ में कंप्यूटर हो. हम उसी विचार और संदेश को बढ़ाने की कोशिश में हैं. इससे समाज और देश का विकास अच्छा होगा. यह देश के उज्जवल भविष्य की गारंटी है.
जरूरतमंद बच्चों की पढ़ाई का खास इंतजाम
स्कूल प्रशासक मोहम्मद तैय्यब ने आवाज द वॉयस को बताया, इस मदरसे ने बनारस के जरूरतमंदों के लिए शिक्षा को आसान बनाया है. यहां शिक्षा मुफ्त है. सरकार की ओर से ड्रेस और किताबें भी मुफ्त उपलब्ध कराई जाती हैं. सहायता और दोपहर का भोजन भी दिया जाता है.
मदरसे में 10 से 12 किलोमीटर दूर से बच्चे पढ़ने आते हैं.इससे अंदाजा लगाना संभव है कि यह शिक्षण संस्थान दूर-दूर के जरूरतमंदों का सहारा और आस है.उन्होंने कहा कि मदरसे का उद्देश्य बच्चों के जीवन में धर्म और दुनिया के बीच संतुलन बनाना है. इसके लिए हमें धार्मिक शिक्षा के साथ सांसारिक शिक्षा भी देनी होगी, ताकि बच्चे अपनी पसंद के अनुसार जीवन मार्ग चुन सकें.
मुहम्मद तैय्यब ने कहा कि मदरसे में गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस मनाने की पुरानी परंपरा है.इस बार अमृत महोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया गया. हमारे मदरसे में राष्ट्रगान कभी समस्या नहीं रही. बच्चों को इसके महत्व और सम्मान का पता है.
मदरसा खानम जान के प्रबंधक दानिश साहिब ने कहा कि मदरसा की स्थापना के समय सभी विषयों को पाठ्यक्रम में शामिल किया गया था.संस्कृत दस साल पहले इसका हिस्सा बनी . बच्चों को श्लोकों के अर्थ के साथ संस्कृत पढ़ाई जाती है. दिलचस्प यह है कि बच्चे संस्कृत को मजबूरी से नहीं, जुनून से सीखते-पढ़ते हैं.
वाराणसी के इस मदरसे ने शुरू से धार्मिक शिक्षा के साथ धर्मनिरपेक्ष शिक्षा और आधुनिक पाठ्यक्रम को प्राथमिकता दी है.इसके महत्व को समझते हुए कि मदरसा से स्नातक होने के बाद बच्चे आसानी से अपनी भविष्य की शैक्षिक यात्रा जारी रख सकते हैं. मदरसा खानम जान ने इस ज्ञान को अपनाया और अब मिसाल बन गया है.
प्रिंसिपल सलाउद्दीन के मुताबिक, यात्रा अभी शुरू हुई है. ज्ञान और दूरदर्शिता के साथ, हमें अभी लंबा सफर तय करना है. खुशी है कि इस मिशन की स्थानीय प्रशासन ने हमेशा सराहना की है. उन्हें खुद इस पर संतोष है कि बच्चों को शिक्षा के साथ धार्मिक सद्भाव का महत्व भी पता है.