महक बानडे / नई दिल्ली
एक खुशी की बात यह है कि दो कश्मीरी लड़कियों - सदाफ मुश्ताक और फरहाना इम्तियाज मकरू ने जम्मू-कश्मीर बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन (BOSE) द्वारा आयोजित 10वीं कक्षा की परीक्षा में 500 में से 498 अंक हासिल करके टॉप किया है.
हालांकि उनकी उपलब्धियाँ समान हैं, लेकिन उनकी कहानियाँ दो अलग-अलग ट्रैक पर चलती हैं.
सदाफ श्रीनगर के समृद्ध परिवार से आती है, फरहाना जो दक्षिण कश्मीर के छोटे शहर बिजबेहरा, (अनंतनाग जिले) से है, ने जीवन में कई चुनौतियों का सामना किया है.
फरहाना इम्तियाज ने बिजबेहरा में अपने घर से फोन पर आवाज-द वॉयस को बताया कि जब वह आठवीं कक्षा में थी तब उसके पिता का देहांत हो गया था. उन्होंने कहा, "मेरी मां ने मुझे और मेरे भाई-बहनों को कभी भी आर्थिक तंगी का एहसास नहीं होने दिया."
उनकी मां लतीफा अख्तर 5,000 रुपये की मामूली आय के साथ परिवार का समर्थन कर रही हैं. वह अपने शहर में आंगनवाड़ी (एकीकृत बाल विकास सेवा, ICDS) के साथ काम करती है.
कोई आश्चर्य नहीं कि फरहाना हीरो-अपनी मां की पूजा करती हैं. उन्होंने कभी उम्मीद और हिम्मत नहीं खोई और न ही उन्होंने हम बच्चों को उदास होने दिया. हमने अपनी शिक्षा पर ध्यान देना जारी रखा.” उसका बड़ा भाई अपनी मेडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रहा है और श्रीनगर में एक कोचिंग सेंटर में शामिल हो गया है, जबकि उसकी छोटी बहन स्कूल में है.
फरहाना ने अपनी स्कूली शिक्षा के दौरान शिक्षाविदों में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है.
फरहाना ने कहा कि वह “निरंतरता और दृढ़ संकल्प की शक्ति में विश्वास करती हैं; ये दोनों मेरे अध्ययन में मार्गदर्शक सिद्धांत रहे हैं. जब तक कोई लगातार और केंद्रित है, तब तक कुछ भी असंभव नहीं है.”
अपने दिवंगत पिता से प्रेरित होकर, जो एक आयुर्वेदिक चिकित्सक थे और उनका शहर में एक क्लिनिक था, फरहाना कहती हैं कि वह एक डॉक्टर बनना चाहती हैं और "उनकी विरासत को आगे बढ़ाना चाहती हैं."
वह कहती हैं कि उनके पिता एक उदार चिकित्सक थे और गरीबों को मुफ्त में दवाइयां और इलाज देते थे.
वह एमबीबीएस कोर्स के लिए एनईईटी (नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट) और एम्स (अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान) दोनों परीक्षाओं में उत्तीर्ण होना चाहती है ताकि वह सर्वश्रेष्ठ मेडिकल कॉलेज में प्रवेश ले सके.
फरहाना कहती हैं कि उनका मानना है कि किसी की वित्तीय परिस्थितियां कभी भी शिक्षा और सपनों को पूरा करने में बाधा नहीं बननी चाहिए.