International Day of the Girl Child ड्रॉप आउट मुस्लिम बच्चियों को शिक्षा की राह दिखा रही हैं राहिला बानो
दयाराम वशिष्ठ/ फरीदाबाद (हरियाणा)
बदलते समय ने मुस्लिम बच्चियों के जीवन को भी नई रफ्तार दी है. हालांकि अभी रफ्तार इतनी तेज नहीं कि पूरा समाज बदलते हुए वक्त की रंगत में घुल मिल जाए, पर रुके हुए कारवां में से कुछ ने जरूर आगे बढ़ने के रास्तों को तलाशने में कामयाबी पाई है.
इनमें एक है उटावड़ पॉलिटेक्निक की कंप्यूटर साइंस की लेक्चरर राहिला बानो, जिन्होंने न केवल सबसे पहले मेवात से कंप्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग करके मुस्लिम समुदाय का नाम रौशन किया, अपितु मेवात से ही प्रथम राष्ट्रीय खिलाड़ी बनने का गौरव प्राप्त हुआ.
अब राहिला बानो महाराष्ट्र के अलावा देश के विभिन्न राज्यों में शिक्षा की अलख जगाते हुए मुस्लिम समुदाय के ऐसे बच्चों व उनके परिजनों को शिक्षा के प्रति जागरूक कर रहीं हैं, जो बच्चे बीच में ही शिक्षा को छोड़ देते हैं.
अब तक राहिला बानो देश के विभिन्न राज्यों में हजारों बच्चों को उच्च शिक्षा के लिए प्रेरित कर चुकी हैं, जिसके सार्थक परिणाम सामने आए हैं. राहिला ने प्रसन्नता जाहिर करते हुए कहा कि अब तक वह स्कूल से ड्रॉप आउट हजारों बच्चे व उनके परिजनों को प्रेरित कर चुकी हैं.
आज वे बच्चे उच्च शिक्षा के अलावा इंजीनियर तक कर चुके हैं.
2008 से शिक्षा मिशन
हथीन के गांव पचानगी के बिजली निगम से सेवानिवृत मोहम्मद असगर की बेटी राहिला बानो ने बताया कंप्यूटर साइंस से इंजीनियरिंग करने के बाद उन्होंने मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छे पैकेज पर नौकरी की.
उस दौरान इसके मन में ख्याल आया कि इस नौकरी से खुद का जीवन यापन तो अच्छी तरह हो जाएगा, लेकिन समाज के प्रति उनकी कुछ जिम्मेदारी बनती है.
नौकरी से समाज का भला नहीं कर सकतीं. इसके बाद उन्होंने नौकरी छोड़ उटावड़ में पॉलिटेक्निक में लेक्चरर के पद पर ज्वाइन कर लिया. हालांकि वेतन कंपनी के मुकाबले बहुत कम था. इसके बाद उन्हांेने मुस्लिम समुदाय की ड्रॉप आउट बच्चियों को शिक्षा दिलाने का बीड़ा उठाया.
8 वीं के बाद बच्चियां छोड़ देती थीं स्कूल
राहिला बानो ने बताया कि गांव में ज्यादातर आठवीं कक्षा तक के स्कूल हैं. इसके चलते आठवीं कक्षा की पढ़ाई करने के बाद ज्यादातर परिजन लड़कियों को पढ़ने के लिए गांव से बाहर स्कूल नहीं भेजते थे.
इससे मुस्लिम लड़कियां बीच में ही पढ़ाई छोड़ देती थीं. इसे लेकर मेवात के कई स्कूलों का सर्वे किया. जहां चौंकाने वाले बात सामने आई कि मुस्लिम लड़कियां बीच में ही स्कूल छोड़ देती है.
इसके चलते उन्होंने लड़कियों की शिक्षा पर जोर देते हुए उन्हें हर संभव पढ़ाने के लिए उनके परिजनों को शिक्षा के प्रति जागरूक करने का बीड़ा उठाया.
फेसबुक से जुड़े 35 हजार फॉलोअर्स
राहिला ने बताया कि उन्होंने गर्ल एजुकेशन को बढ़ावा देने के लिए फेसबुक के माध्यम से लड़कियों को शिक्षित करने पर जोर दिया. फेसबुक पर उनके करीब 35 हजार फॉलोअर्स हैं. जिसके जरिए देशभर के विभिन्न राज्यों में उनका यह अभियान चलाया जा चुका हैं.
महाराष्ट्र के चार जिलों में किया जागरूक
मुस्लिम लड़कियों को शिक्षा के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से दिसंबर 2021 में राहिला बानो ने महाराष्ट्र के चार जिलों कार्यक्रमों का आयोजन किया. इनमें जलाना, औरंगाबाद, जलगांव व भिवांडी (मुंबई )में कार्यक्रम कर लड़कियों व उनके परिजनों को शिक्षा के बारे में जागरूक किया. बानो बीटेक, एमटेक के बाद अब पीएचडी कर रही हैं.
शिक्षा से बढ़ता है आत्मविश्वास
मुस्लिम बच्चों में शिक्षा का अलख जगा रही लेक्चरर राहिला बानो का कहना है कि जिन बच्चों में शिक्षा का स्तर बढ़ा है, उनमें आत्मविश्वास काफी हद तक बढ़ा है.
जो बच्चे स्कूल छोड़ने के बाद मेहनत मजदूरी के काम में लग जाते थे, अब मुस्लिम समुदाय के बच्चे पढ़ने लिखने के बाद अपने हाथों में किताबें थामे, लैपटॉप पर काम करते हुए नजर आते हैं. ऐसे में ये बच्चे शिक्षा में ड्रॉप कर चुके बच्चों की तुलना मेंउनकी सोच में नयापन, आंखों में नए सपने और कदमों में नई ताल है.