परंपरा और ट्रेंड का संगम: अखिरुन नेशा ने बदल दी मणिपुरी फैशन की पहचान

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 17-08-2025
A confluence of tradition and trend: Akhirun Nesha changed the identity of Manipuri fashion
A confluence of tradition and trend: Akhirun Nesha changed the identity of Manipuri fashion

 

इरफ़ान गुफ़रान बशी/ इम्फ़ाल 

 

 

इम्फाल की धड़कती गलियों से निकली अखिरुन नेशा (Akhirun Nesha) की कहानी सिर्फ़ फैशन की नहीं, बल्कि सपनों को साकार करने की है.एक ऐसी युवा जो अपनी ज़मीन से जुड़ी रही, लेकिन दृष्टि हमेशा ऊँचाइयों पर टिकी रही. पारंपरिक हथकरघों और रंग-बिरंगे कपड़ों के बीच पली-बढ़ी अखिरुन बचपन से ही रंगों, डिज़ाइनों और टेक्सचर के प्रति आकर्षित थीं. यही सांस्कृतिक विरासत उनके जीवन का आधार बनी.

स्कूल की पढ़ाई पूरी करते ही उन्हें देश के एक प्रतिष्ठित फैशन संस्थान में छात्रवृत्ति मिली. घर से दूर एक नए महानगर में कदम रखते ही, उन्होंने न केवल पैटर्न-निर्माण, परिधान डिज़ाइन और समकालीन फैशन के गुर सीखे, बल्कि इस दौरान यह भी महसूस किया कि मणिपुरी कारीगरी को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाने की कितनी ज़रूरत है.

पढ़ाई के साथ-साथ उन्होंने मणिपुर के पारंपरिक रूपांकनों को आधुनिक डिज़ाइन में ढालने की दिशा में प्रयोग शुरू कर दिए.भारत के प्रमुख डिज़ाइनरों के साथ काम करने के बाद, अखिरुन को अहसास हुआ कि उन्हें वहीं लौटना है जहाँ से उन्होंने शुरुआत की थी—इम्फाल.

उन्होंने देखा कि मणिपुर की समृद्ध बुनाई परंपराओं के बावजूद युवाओं को रचनात्मक करियर के लिए प्रशिक्षण और मंच नहीं मिल पा रहा था. इसी सोच ने जन्म दिया एक संस्थान को, जिसे उन्होंने सीमित संसाधनों के साथ शुरू किया—कुछ सिलाई मशीनें, उधार लिए कमरे और गिने-चुने छात्र.

शुरुआती राह आसान नहीं थी. उन्हें जगह, संसाधन, और सबसे बड़ी चुनौती—समाज में फैशन को करियर के रूप में स्वीकार करवाने की—का सामना करना पड़ा. लेकिन अखिरुन की सादगी, समर्पण और युवा प्रतिभा पर विश्वास ने धीरे-धीरे सबका भरोसा जीत लिया.

कुछ ही वर्षों में, उनका संस्थान इम्फाल का रचनात्मक केंद्र बन गया. उन्होंने छात्रवृत्तियों की शुरुआत की, देशभर से डिज़ाइनरों को आमंत्रित कर कार्यशालाएँ आयोजित कीं और बुनकरों के साथ स्थानीय स्तर पर सहयोग स्थापित किया. फानेक, इन्नाफी और मणिपुरी कढ़ाई जैसे पारंपरिक वस्त्रों को उन्होंने अपने पाठ्यक्रम में शामिल किया और छात्रों को इन्हें नए तरीके से पेश करने के लिए प्रोत्साहित किया.

इस प्रयास का असर जल्द ही दिखा. उनके प्रशिक्षुओं के डिज़ाइनों की माँग स्थानीय सहकारी समितियों और फैशन स्टोर्स में बढ़ने लगी. उन्होंने इम्फाल में सालाना फैशन शो शुरू किए, जहाँ पूर्वोत्तर की मॉडल्स, मीडिया और शिल्पकारों को एक मंच मिला.

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लेकिन असली सफलता तब आई जब अखिरुन के डिज़ाइनों को दिल्ली के एक प्रमुख फैशन शो में जगह मिली. उनके कलेक्शन में मणिपुरी बनावट और शहरी फ्यूज़न का ऐसा संगम था कि आलोचकों और खरीदारों ने इसे सराहा. लॉन्गलाइन जैकेट्स, हल्के रंगों की समकालीन साड़ियाँ और फ्यूज़न लहंगे—हर डिज़ाइन में परंपरा और नवाचार का अनूठा मेल था. इसके बाद देशभर के बुटीक से ऑर्डर की बाढ़ आ गई.

आज, उनका संस्थान 500 से ज़्यादा छात्रों को प्रशिक्षित कर चुका है. कई ने अपने लेबल शुरू किए हैं, कुछ फैशन फ्रीलांसर बन गए हैं, तो कुछ स्थानीय सहकारी समितियों से जुड़कर आत्मनिर्भर हो गए हैं. इम्फाल के गाँवों से निकलीं युवतियाँ अब अंतरराष्ट्रीय ब्रांड्स को जैकेट्स निर्यात कर रही हैं, और पूर्वोत्तर के युवा डिज़ाइनर गुवाहाटी, मुंबई और शिलांग के फैशन मंचों पर अपनी मौजूदगी दर्ज करा रहे हैं.

अखिरुन का फोकस सिर्फ़ डिज़ाइन पर नहीं, बल्कि सस्टेनेबिलिटी और सामाजिक समावेश पर भी है. वह अपसाइकलिंग, ज़ीरो-वेस्ट टेक्निक और वंचित वर्गों को प्राथमिकता देती हैं. उन्होंने एनजीओ के साथ मिलकर आघात से गुज़रे लोगों को डिज़ाइन और सिलाई के ज़रिए आत्मनिर्भर बनाने की पहल भी शुरू की है.

भविष्य की योजनाओं में डिजिटल डिज़ाइन स्टूडियो, ऑनलाइन स्टोर और फैशन मेंटरशिप नेटवर्क की शुरुआत शामिल है. वह शैक्षणिक संस्थानों में भाषण देती हैं, युवाओं को रचनात्मकता के रास्ते पर चलने और अपनी जड़ों से जुड़ने की प्रेरणा देती हैं.

अखिरुन नेशा की कहानी केवल एक डिज़ाइनर की नहीं है—यह उस बदलाव की कहानी है जो जुनून, दृष्टि और समर्पण से मुमकिन होता है. उन्होंने यह सिद्ध किया है कि फैशन सिर्फ़ ट्रेंड नहीं, बल्कि संस्कृति, पहचान और आजीविका का ज़रिया बन सकता है.

मणिपुर की गलियों से निकलकर देश के फैशन मानचित्र पर अपनी जगह बनाना कोई मामूली सफ़र नहीं—लेकिन अखिरुन ने इसे सादगी, साहस और शैली के साथ तय किया है.उनका काम हमें याद दिलाता है कि छोटी शुरुआतें भी बड़ी विरासत बन सकती हैं—बस ज़रूरत है एक दृढ़ नीयत, एक विचार और दिल से किए गए प्रयास की.