कश्मीरी कला ‘पेपर मैश को आगे बढ़ाने आगे आईं 26 वर्षीय शाफिया शफी, जानिए कैसा है इस कला का इतिहास ?
मलिक असगर हाशमी /नई दिल्ली
कश्मीरी पेपर मैशे कलाकार शफिया शफी अपनी कला के माध्यम से कश्मीरी संस्कृति और विरासत को पुनर्जीवित और संरक्षित करने को आगे आई हैं.श्रीनगर के लाल बाजार इलाके की 26 वर्षीय शफिया शफी ने नई पीढ़ी को कश्मीरी कला के रूप में आकर्षित करने के लिए सजावटी सामान बनाकर सदियों पुरानी कला के पुनरुद्धार की शुरुआत की है.
पेपर मैशे कश्मीर घाटी से शिल्प और ललित कला का एक संयोजन है.यह एक कला रूप है, जो न केवल कश्मीर में लोकप्रिय है. दुनिया भर में इसकी भारी मांग है.
शफिया शफी ने कहा, कश्मीरी मिट्टी के बर्तन और कला का रूप मर रहा है. आने वाली पीढ़ियों के लिए कश्मीरी कला को संरक्षित करने की यह मेरी पहल है.
उनके अनुसार, इस कला के माध्यम से वह स्वयं को अभिव्यक्त करती हैं. इसे करते समय एक प्रकार की मानसिक शांति का अनुभव भी करती हैं.
पेपर मैशे में सेल्फ टीचिंग कर चुकी शफी ने कहा, मैंने खुद से सेल्फ टीचिंग की है. इसमें कोई कोर्स नहीं किया है. मैं आज जो कुछ भी कर रही हूं, मैंने खुद सीखा और किया है. मैं बहुत एक्सपेरिमेंट करती हूं.
शफी ने सोशल मीडिया पर कुछ पेपर माचे कला पोस्ट की और उन्हें जबरदस्त प्रतिक्रिया मिली. वह अब पेपर माचे कला के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना रही हैं.
शफी को अब पूरे कश्मीर से ऑर्डर मिलने लगे हैं. कला रूप को पुनर्जीवित करने की पहल ने पेपर माचे कला रूप को बढ़ावा दिया है और इसे बाजार में गति मिली है.
एक आगंतुक फहद इदरीस ने कहा, मैंने सोचा था कि कला मर जाएगी, क्योंकि कारीगरों ने कला को आगे बढ़ाने का काम बंद कर दिया. उन्हें अच्छी मजदूरी नहीं मिलती है. यह अच्छा है कि उन्होंने इस कला को अपनाया और उसे पुनर्जीवित किया.
इस नए उद्यम में उनका समर्थन करने के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय क्षेत्रों के लोग आगे आए हैं.शफी इस कला रूप को दुनिया भर में ले जाने की इच्छा रखती हैं जिससे अन्य कलाकार भी इससे लाभान्वित हों.
जानिए कश्मीरी पेपर मैशे के बारे में
पेपर मैशे का शाब्दिक अर्थ है मसला हुआ या कटा हुआ कागज. यह एक प्रकार की मिश्रित सामग्री है जिसमें प्रायः लुगदी कागज का उपयोग किया जाता है. इसकी नमनीयता और मजबूती को बढ़ाने के लिए मिट्टी, गोंद, स्टार्च या अन्य चीजों का उपयोग किया जाता है.
पेपर मैशे सबसे पहले ईरान से कश्मीर में आया जहां इससे कई वस्तुओं जैसे ट्रे , बॉक्स , बुक कवर, लैंप, पेन केस , खिलौने, फूलदान आदि आज बनाए जाते हैं. उन्हें फिर जटिल रूप से रंगा जाता है.
कश्मीर के अलावा त्यौहारों में खिलौने बनाने के लिए पेपर मैशे का उपयोग उड़ीसा, बिहार और उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर किया जाता है. यह अनूठा शिल्प मुगल काल के दौरान विकसित हुआ. अब भी बड़ी संख्या में कारीगरों द्वारा इसका अभ्यास किया जा रहा है.
मुगलों के जमाने में इनसे कई वस्तुएं बनाई गईं तथा वस्तुओं की सतह को पारंपरिक लघु शैली में रंगा गया. इसके द्वारा कोई भी वस्तु बनाने के लिए पहले कागज को पानी में भिगाया जाता है जिसके बाद इसे चिपकने वाले घोल या स्टार्च के साथ मिश्रित कर लकड़ी के सांचों पर आकार दिया जाता है.
आवश्यक मोटाई प्राप्त करने के लिए इसके ऊपर परतें चढ़ाई जाती हैं. इसके बाद इसे अच्छे से सुखाया जाता है. अंत में इसे रंग और वार्निश से सजाया जाता है.
पेपर मैशे और इतिहास
भारत में विभिन्न प्रकार के उपयोगी और सजावटी पेपर मैशे का उत्पादन किया जाता है. कश्मीर को अपने उत्तम पेपर मैशे की वस्तुओं के लिए दुनिया भर में जाना जाता है.
यहां पेपर मैशे से बने विभिन्न प्रकार के उपयोगी सामान बनाए जाते हैं जिन्हें सुंदर कलाकृतियों से सजाया जाता है. कश्मीर में इस हस्तशिल्प को 14वीं शताब्दी में फारस (ईरान) के मुस्लिम संत मीर सैय्यद अली हमदानी द्वारा लाया गया था. पेपर मैशे एक फ्रांसीसी शब्द है.
यह हस्तशिल्प श्रीनगर, और कश्मीर घाटी के अन्य हिस्सों में घरों और कार्यशालाओं में बनाए जाते हैं. इस उत्पाद को भारत सरकार के भौगोलिक संकेत अधिनियम 1999 के तहत संरक्षित किया गया है.
यह हस्तशिल्प कश्मीर की कला के रूप में जाना जाता है जिसे वहां मूल रूप से कर-ए-कलमदान के रूप में जाना जाता है, क्योंकि इसे कलमों और लेखन में प्रयोग होने वाली सामग्रियों को रखने के लिए डिज़ाइन किया गया था. ऐसा माना जाता है कि इसकी खोज सबसे पहले चीन में हुई थी.
मुगलकालीन विरासत
मुगल काल में इस कला को पालकी, छतों, दरवाजों और खिड़कियों पर बनाया गया था. मुगल संरक्षण के दौरान, दरबारियों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली अधिकांश पालकियों को कश्मीर में बनाया और चित्रित किया गया.
इस कला के सुंदर नमूने यूरोप और अमेरिका के संग्रहालयों में भी देखे जा सकते हैं. पुराने दिनों में इसे कलात्मक रूप से लकड़ी, विशेष रूप से खिड़कियों, दीवारों, छतों और फर्नीचरों पर लागू किया गया था.
कला के दो रूप
पेपर मैशे के निर्माण को दो अलग-अलग श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है. एक है सख्तसाजी और दूसरा नक्काशी .सख्तसाजी में बेकार कागज, कपड़ा, चावल के भूसे और तांबा सल्फेट को एक साथ मिलाकर लुगदी बनाई जाती है.
लुगदी तैयार होने के बाद, इसे आवश्यक आकार देने के लिए लकड़ी या पीतल के सांचों पर उपयोग किया जाता है. जब लुगदी सूख जाती है, तो इसे एक समान सतह के साथ पत्थर की मदद से घिसकर चिकना किया जाता है.
इसे मजबूत बनाने के लिए इसके ऊपर गोंद का उपयोग किया जाता है. जिसके बाद इसे कठवा नामक लकड़ी से धीरे से रगड़ा जाता है. ब्रश की मदद से वस्तु के अंदर व बाहर गोंद और चाक का मिश्रण लगाया जाता है. अब कागज के छोटे टुकड़ों को गोंद की मदद से उस पर चिपकाया जाता है.
इसकी रूपरेखा आमतौर पर एक जर्द या पीले रंग के साथ खींची जाती है और रिक्त स्थान में फूलों के डिजाइन बनाए जाते हैं. फिर फूलों के कार्यों को विभिन्न रंगों में रंगा जाता है.