राकेश चौरासिया
भगवान श्री कृष्ण का जन्म जेल में हुआ था और यह घटना भारतीय धर्म और संस्कृति में अत्यधिक महत्वपूर्ण है. कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व, जो भगवान कृष्ण के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है, जो इस घटना की महिमा का उत्सव है. कृष्ण जी का जन्म, उनके माता-पिता और परिस्थितियां, यह सब प्राचीन ग्रंथों में विशेष रूप से महाभारत और पुराणों में विस्तार से वर्णित है.
भगवान कृष्ण का जन्म द्वापर युग में हुआ था, जो हिन्दू धर्म के अनुसार चार युगों में से एक है. उनका जन्म मथुरा में हुआ था, जो कि आधुनिक उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित है. मथुरा उस समय के राजा कंस का राज्य था, जो कृष्ण जी के मामा थे. कंस एक अत्याचारी और क्रूर शासक था, जो अपने शक्ति और सत्ता को बचाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता था.
देवकी और वसुदेव
कृष्ण जी के माता-पिता देवकी और वसुदेव थे. देवकी कंस की बहन थीं और उनका विवाह वसुदेव के साथ हुआ था. विवाह के बाद, एक आकाशवाणी हुई, जिसमें कहा गया कि देवकी का आठवां पुत्र कंस का वध करेगा. यह सुनकर कंस भयभीत हो गया और उसने तत्काल देवकी और वसुदेव को बंदी बना लिया. उसने यह निश्चय किया कि वह देवकी के सभी संतानों को जन्म लेते ही मार डालेगा, ताकि आकाशवाणी को गलत साबित किया जा सके.
कंस का अत्याचार
कंस ने देवकी और वसुदेव को जेल में डाल दिया और देवकी की हर संतान को जन्म लेते ही मार डाला. इस प्रकार, कृष्ण जी के सात बड़े भाई-बहन कंस के अत्याचार का शिकार हो गए. हर बार जब देवकी गर्भवती होतीं, कंस सतर्क हो जाता और जन्म के तुरंत बाद उस बच्चे को मार डालता. देवकी और वसुदेव का यह दर्द और पीड़ा सात बार सहनी पड़ी.
भगवान कृष्ण का जन्म जेल में क्यों हुआ था?
जब देवकी को आठवीं बार गर्भ ठहरा, तो वह समय बहुत विशेष था. कृष्ण जी का जन्म आधी रात को हुआ और जन्म लेते ही अद्भुत चमत्कार हुआ था. जेल के द्वार अपने आप खुल गए, पहरेदार गहरी नींद में सो गए और वसुदेव के बंधन स्वतः खुल गए. इस चमत्कारी घटना के पीछे भगवान विष्णु की लीला मानी जाती है, क्योंकि भगवान कृष्ण, श्रीमन विष्णु के अवतार थे.
वसुदेव को आदेश मिला कि वह नवजात शिशु को गोकुल में नंद और यशोदा के घर ले जाएं. वसुदेव जी ने कृष्ण जी को एक टोकरी में रखा और यमुना नदी को पार करते हुए गोकुल पहुंचे. यमुना नदी ने भी वसुदेव जी के मार्ग को आसान कर दिया और जब वसुदेव यमुना में चले, तो पानी उनके घुटनों से ऊपर नहीं आया. इस प्रकार, वसुदेव जी ने कृष्ण जी को गोकुल में नंद बाबा और यशोदा के पास सुरक्षित पहुंचा दिया और बदले में नंद बाबा की पुत्री को साथ लेकर मथुरा लौट आए.
मथुरा में वापसी
वसुदेव जब मथुरा वापस लौटे, तो जेल के द्वार फिर से बंद हो गए और पहरेदार जाग गए. कंस को जैसे ही इस आठवें बच्चे के जन्म के बारे में पता चला, वह जेल में पहुंचा. उसने बच्ची को मारने की कोशिश की, लेकिन बच्ची ने आकाश में उड़ान भरते हुए दिव्य रूप धारण कर लिया और कंस को चेतावनी दी कि उसका वध करने वाला बच्चा सुरक्षित है. यही बालिका विंध्याचल वासिनी के रूप में सुशोभित हैं.
गोकुल में बाल लीलाएं
कृष्ण जी का गोकुल में पालन-पोषण हुआ, जहां उन्होंने अपनी बाल लीलाओं से सबको मोहित कर लिया. नंद और यशोदा ने उन्हें अपने पुत्र के रूप में पाला और उनका नाम ‘कन्हैया’ रखा. कृष्ण जी की बाल लीलाएँ, जैसे माखन चोरी, कालिया नाग का वध और गोवर्धन पर्वत को उठाना, सभी दिव्य घटनाएं हैं, जो उनकी शक्ति और प्रेम को दर्शाती हैं.
भगवान श्री कृष्ण के जन्म का शास्त्रीय वर्णन
भगवान श्रीकृष्ण ने विष्णु के 8वें अवतार के रूप में जन्म लिया था. 8वें मनु वैवस्वत के मन्वंतर के 28वें द्वापर में भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की रात्रि के जब 7 मुहूर्त निकल गए और 8वां मुहूर्त आया, तब आधी रात के समय सबसे शुभ लग्न में देवकी के गर्भ से भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया. उस लग्न पर केवल शुभ ग्रहों की दृष्टि थी. रोहिणी नक्षत्र तथा अष्टमी तिथि के संयोग से जयंती नामक योग में लगभग 3112 ईसा पूर्व (अर्थात आज 2024 से 5136 वर्ष पूर्व) श्रीकृष्ण का जन्म हुआ. ज्योतिषियों के अनुसार रात 12 बजे उस वक्त शून्य काल था.
आर्यभट्ट के अनुसार महाभारत युद्ध 3137 ईपू में हुआ. इस युद्ध के 35 वर्ष पश्चात भगवान कृष्ण ने देह छोड़ दी थी, तभी से कलियुग का आरंभ माना जाता है. उनकी मृत्यु एक बहेलिए का तीर लगने से हुई थी.
शोधकर्ताओं ने खगोलीय घटनाओं, पुरातात्विक तथ्यों आदि के आधार पर कृष्ण जन्म और महाभारत युद्ध के समय का सटीक वर्णन किया है. ब्रिटेन में कार्यरत न्यूक्लियर मेडिसिन के फिजिशियन डॉ. मनीष पंडित ने महाभारत में वर्णित 150 खगोलीय घटनाओं के संदर्भ में कहा कि महाभारत का युद्ध 22 नवंबर 3067 ईसा पूर्व को हुआ था. उस वक्त भगवान कृष्ण 55-56 वर्ष के थे. उन्होंने अपनी खोज के लिए टेनेसी के मेम्फिन यूनिवर्सिटी में फिजिक्स के प्रोफेसर डॉ. नरहरि अचर द्वारा 2004-05 में किए गए शोध का हवाला भी दिया.
कृष्ण जी के जेल में जन्म का महत्व
भगवान कृष्ण का जन्म जेल में होना एक प्रतीकात्मक घटना है. यह दर्शाता है कि जब भी धर्म पर संकट आता है, भगवान किसी न किसी रूप में अवतरित होकर धर्म की पुनःस्थापना करते हैं. कंस जैसे अत्याचारी राजा के शासनकाल में, भगवान कृष्ण ने जेल में जन्म लेकर यह साबित किया कि कोई भी शक्ति, चाहे वह कितनी भी बड़ी क्यों न हो, धर्म का नाश नहीं कर सकती. जेल, जो बंधन और अत्याचार का प्रतीक है, उसमें भगवान का जन्म होना यह भी दर्शाता है कि अंधकारमय समय में भी आशा की किरण बनी रहती है. भगवान कृष्ण ने जेल से मुक्त होकर यह सिद्ध किया कि सत्य और धर्म की शक्ति सबसे बड़ी होती है, और उसे कोई नहीं रोक सकता.
समाज और संस्कृति पर प्रभाव
भगवान कृष्ण के जन्म की कथा ने भारतीय समाज और संस्कृति पर गहरा प्रभाव डाला है. यह कथा न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह समाज को यह संदेश भी देती है कि अन्याय और अत्याचार का अंत निश्चित है.
कृष्ण जी की कथा का यह पहलू कि उन्होंने जेल में जन्म लिया, हमें यह सिखाता है कि कोई भी परिस्थिति कितनी भी कठिन क्यों न हो, अगर हम धर्म और सत्य के मार्ग पर चलें, तो हमें सफलता अवश्य मिलेगी. कृष्ण का जन्म एक नए युग की शुरुआत का संकेत था, जहां उन्होंने न केवल कंस का वध किया, बल्कि धर्म की पुनःस्थापना भी की.
भगवान कृष्ण का जेल में जन्म हमारे लिए कई संदेश लेकर आता है. यह घटना न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमें यह भी सिखाती है कि जब भी समाज में अंधकार का बोलबाला होता है, तब किसी न किसी रूप में प्रकाश अवश्य आता है. कृष्ण जी के जन्म की कथा ने हमें यह सिखाया कि धर्म, सत्य और न्याय की रक्षा के लिए संघर्ष करना चाहिए, चाहे परिस्थितियां कितनी भी कठिन क्यों न हों.
भगवान कृष्ण का जन्म हमें यह भी सिखाता है कि जीवन में आने वाली हर चुनौती का सामना धैर्य, साहस और विश्वास के साथ करना चाहिए. उनके जीवन की कथा ने समाज में न केवल धार्मिक आस्था को मजबूती दी, बल्कि सामाजिक और नैतिक मूल्यों की भी पुनःस्थापना की. इस प्रकार, भगवान कृष्ण का जन्म भारतीय समाज और संस्कृति के लिए एक महत्वपूर्ण घटना है, जो हमें आज भी प्रेरित करती है और सही मार्ग पर चलने का सन्देश देती है.