पचहत्तर वर्षों में सिरमौर बनकर उभरा उत्तर प्रदेश

Story by  फिरदौस खान | Published by  [email protected] | Date 09-08-2023
पचहत्तर वर्षों में सिरमौर बनकर उभरा उत्तर प्रदेश
पचहत्तर वर्षों में सिरमौर बनकर उभरा उत्तर प्रदेश

 

-फ़िरदौस ख़ान

देश के उत्तर में स्थित उत्तर प्रदेश धर्म, संस्कृति और इतिहास की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण राज्य है. यह उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और बिहार से घिरा हुआ है. इसके पूर्वोत्तर दिशा में नेपाल है. क़ुदरत ने इसे ख़ूब नवाज़ा है. यहां ऊंचे-ऊंचे पहाड़ हैं, नदियां हैं, झरने हैं, मैदान हैं और जंगल हैं. उत्तराखंड कभी उत्तर प्रदेश का ही हिस्सा हुआ करता था, लेकिन 9 नवम्बर 2000 को यह इससे अलग हो गया.

इस तरह उत्तरांचल राज्य वजूद में आया. बाद में इसका नाम बदलकर उत्तराखंड कर दिया गया. उत्तराखंड के अलग हो जाने से उत्तर प्रदेश की बर्फ़ से ढकी चोटियां भी इससे जुदा हो गईं.  

वैभवशाली संस्कृति

उत्तर प्रदेश की संस्कृति बहुत ही वैभवशाली रही है. यहां का इतिहास तक़रीबन चार हज़ार साल पुराना है. यह आर्यावर्त का अहम हिस्सा था. यह राम और कृष्ण की जन्मभूमि है, उनकी कर्मभूमि है. अयोध्या में राम जन्मभूमि पर भव्य राम मन्दिर का निर्माण किया जा रहा है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 5अगस्त 2020 को अयोध्या में इसका शिलान्यास किया था. माना जा रहा है कि यह आगरा के ताजमहल के बाद राज्य की सबसे भव्य कलाकृति होगी. श्रीकृष्ण की जन्मभूमि मथुरा भी यहीं पर है. इसका समीपवर्ती नगर वृन्दावन श्रीकृष्ण की लीलाओं का स्थल है. अनेक धार्मिक ग्रंथों ख़ासकर हरिवंश पुराण, श्रीमद्भागवत और विष्णु पुराण में इसकी महिमा का ज़िक्र मिलता है.

हिन्दुओं का महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल प्रयागराज भी यहीं पर है. यहां गंगा, यमुना और सरस्वती का अद्भुत संगम होता है, जिसे बहुत ही पवित्र माना जाता है. यहां कुम्भ मेला लगता है. दुनिया के सबसे पुराने शहरों में शुमार वाराणसी भी यहीं पर है. इसे काशी और बनारस के नाम से भी जाना जाता है.

यह गंगा और इसके घाटों के लिए विख्यात है. इसे मन्दिरों का शहर, देश की धार्मिक राजधानी, शिव की नगरी, दीपों का शहर और ज्ञान की नगरी आदि विशेषणों से पुकारा जाता है. भारत रत्न से सम्मानित देश के प्रख्यात शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ां की शहनाई सुनकर ही बनारस की सुबहें हुआ करती थीं.

प्रसिद्ध अमेरिकी लेखक मार्क ट्वेन के शब्दों में- "बनारस इतिहास से भी पुराना है, परम्पराओं से भी पुराना है, किंवदंतियों से भी पुराना है और जब इन सबको इकठ्ठा कर दें, तो उस संग्रह से भी दोगुना पुराना है.”गोंडा ज़िले में मत्स्येंद्रनाथ नामक प्रसिद्ध देवीपीठ है. यहां के अन्य प्राचीन तीर्थ स्थानों में विंध्याचल, चित्रकूट, नैमिषारण्य और गढ़मुक्तेश्वर आदि शामिल हैं. हक़ीक़त तो यह है कि यहां का हर इलाक़ा अपना धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व रखता है.

बौद्धों का तीर्थ स्थल

बौद्धों का प्राचीन तीर्थ स्थल सारनाथ भी यहीं पर है. ज्ञान प्राप्त करने के बाद महात्मा बुद्ध ने पहला उपदेश यहीं दिया था और यहीं से उन्होंने धर्म चक्र प्रवर्तन शुरू किया था. यहां का चौखंडी स्तूप इसकी याद दिलाता है. चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी इसका ज़िक्र किया था.

यह विशाल चौकोर स्तूप चारों तरफ़ से अष्टभुजीय मीनारों से घिरा हुआ है. इसके बारे में कहा जाता है यह स्तूप मूल रूप से सम्राट अशोक ने बनवाया था. गुप्त काल में इसे विशाल किया गया. यहां का अशोक का चतुर्मुख सिंह स्तम्भ, महात्मा बुद्ध का मन्दिर, धमेख स्तूप, राजकीय संग्राहलय, जैन मन्दिर, चीनी मन्दिर, मूलंगधकुटी और नवीन विहार दर्शनीय हैं. यहां सारंगनाथ महादेव का मन्दिर भी है. कुशीनगर भी बौद्ध स्थल है. यहां महात्मा बुद्ध ने आख़िरी उपदेश दिए थे.

ललितपुर ज़िले का देवगढ़ जैनियों का धार्मिक स्थल है. यहां तक़रीबन 31प्राचीन मन्दिर हैं. यहां का दशावतार मन्दिर भी बहुत प्रसिद्ध है. 

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सूफ़ी संतों की दरगाहें

बाराबंकी ज़िले के देवा नामक क़स्बे में हाजी वारिस अली शाह रहमतुल्लाह अलैह का मज़ार है. आप अल्लाह के आख़िरी नबी हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की औलादों में से हैं. उनके वालिद क़ुर्बान अली शाह रहमतुल्लाह अलैह भी जाने-माने औलिया थे. यहां हिजरी कैलेंडर के सफ़र के महीने में उर्स होता है.

हाजी वारिस अली शाह रहमतुल्लाह अलैह अपने वालिद क़ुर्बान अली शाह रहमतुल्लाह अलैह का उर्स किया करते थे. इन दोनों सूफ़ी संतों की याद में यहां मेले का आयोजन किया जाता है. मवेशी बाज़ार इस मेले का मुख्य आकर्षण है. दस दिन तक चलने वाले इस मेले के दौरान विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जिनमें मुशायरा, कवि सम्मेलन, संगीत सम्मेलन और खेल प्रतियोगिताएं आदि शामिल हैं.

कानपुर ज़िले के गांव मकनपुर में हज़रत बदीउद्दीन शाह ज़िन्दा क़ुतबुल मदार रहमतुल्लाह अलैह का मज़ार है. उनके बारे में कहा जाता है कि वे योगी दुर्वेश थे और अकसर योग के ज़रिये महीनों साधना में रहते थे. एक बार वे योग समाधि में ऐसे लीन हुए कि लम्बे अरसे तक उठे नहीं. उनके मुरीदों ने समझा कि उनका विसाल हो गया है.

उन्होंने हज़रत बदीउद्दीन शाह रहमतुल्लाह अलैह को दफ़न कर दिया. दफ़न होने के बाद उन्होंने सांस ली. उनके मुरीद यह देखकर हैरान रह गए कि वे ज़िन्दा हैं. वे क़ब्र खोदकर उन्हें निकालने वाले ही थे, तभी एक बुज़ुर्ग ने हज़रत बदीउद्दीन शाह रहमतुल्लाह अलैह से मुख़ातिब होकर कहा कि दम न मार यानी अब तुम ज़िन्दा ही दफ़न हो जाओ. फिर उस क़ब्र को ऐसे ही छोड़ दिया गया. इसलिए उन्हें ज़िन्दा पीर भी कहा जाता है. आपकी उम्र मुबारक तक़रीबन छह सौ साल थी.   

आगरा ज़िले के फ़तेहपुर सीकरी में शेख़ सलीम चिश्ती का मज़ार है. उन्होंने बादशाह अकबर को बेटा होने की दुआ दी थी और यह भी कहा था कि वे जहांगीर के नाम से पहचाना जाएगा. उनके नाम पर ही अकबर ने अपने बेटे का नाम सलीम रखा था. इनके अलावा राज्य में और भी औलियाओं की मज़ारें हैं, जहां दूर-दराज़ के इलाक़ों से ज़ायरीन आते हैं.

शाही व नवाबी शान की गवाह इमारतें

राज्य की मस्जिदें, इमामबाड़े, मक़बरे, बग़ीचे, तालाब और स्नानागार आदि यहां की भव्यता की गवाही देते हैं. आगरा में यमुना नदी के दक्षिण तट पर सफ़ेद संगमरमर से बना ताजमहल विश्व धरोहर माना जाता है.मुग़ल बादशाह शाहजहां ने अपनी प्रिय बेगम मुमताज़ महल की याद में इसे बनवाया था.

शाहजहां की मौत के बाद स्थापत्य कला के क्षेत्र में रुकावट आ गई थी, लेकिन अवध के नवाबों ने इस रिवायत को जारी रखा. उन्होंने मस्जिदें, इमामबाड़े, दरवाज़े और बग़ीचे आदि बनवाए. नवाब आसफ़ उद्दौला द्वारा बनवाया गया लखनऊ का इमामबाड़ा अपनी गरिमापूर्ण भव्यता ख़ुद बयां करता है. यहां की इमारतें मुग़ल और हिन्दुस्तानी शैली का शानदार मिश्रण हैं. आसफ़ उद्दौला के बारे में कहावत मशहूर है- 'जिसको न दे मौला, उसको दे आसफ़ उद्दौला'.

इस कहावत के पीछे की कहानी यह है कि एक बार लखनऊ और इसके आसपास के इलाक़ों में ज़बरदस्त अकाल पड़ा था और लोग दाने-दाने को मोहताज हो गए थे. जब नवाब को इसकी ख़बर हुई, तो उन्होंने अवाम के लिए ख़ज़ाने खोले दिए.

उत्तर प्रदेश नवाबों के लिए जाना जाता है. यहां के नवाबों की शानो-शौकत की झलक आज भी देखने को मिलती है. यहां के रहन-सहन और खानपान में नफ़ासत है. यहां के कबाब, बिरयानी व गोश्त के अन्य पकवानों के साथ-साथ यहां का शुद्ध शाकाहारी खाना भी बहुत मशहूर है.  

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प्राचीन संस्कृति के निशान

यहां की संस्कृति बहुत ही पुरानी है. बांदा, मिर्ज़ापुर और मेरठ की पुरातनताएं इसे शुरुआती पाषाण और हड़प्पा युग से जोड़ती हैं. मिर्ज़ापुर ज़िले की विंध्य पर्वतमाला में चाक चित्र या गहरे लाल रंग के चित्र पाए जाते हैं. माना जाता है कि ये आदिम पुरुषों ने बनाए हैं.

एटा ज़िले में गंगा की सहायक काली नदी के तट पर स्थित अतरंजी-खेड़ा, कौशाम्बी, बनारस के राजघाट और मथुरा ज़िले के सोंख में भी उस युग के बर्तन मिले हैं. कानपुर और उन्नाव में भी तांबे की चीज़ें मिली हैं. इसके अलावा राज्य के कई इलाक़ों में आर्यों के आगमन के सबूत मिले हैं.

ज्ञान की गंगा  

पुराने वक़्त से ही इस धरती पर ज्ञान की गंगा बहती आ रही है. यहां अनेक दार्शनिक, भक्त कवि, लेखक और संगीतज्ञ हुए हैं. गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस यहीं लिखा था. यह महाकवि सूरदास, रसखान, रैदास, कबीर, मलिक मुहम्मद जायसी, वल्लभाचार्य, स्वामी हरिदास, स्वामी विरजानंद, चैतन्य महाप्रभु, स्वामी रामानन्द, त्रैलंग स्वामी और शिवानन्द गोस्वामी आदि की कर्मभूमि है. यहां मुंशी इंशा अल्ला ख़ां, लल्लू लाल, जगनिक, महाकवि भूषण, बिहारी लाल, भारतेंदु हरिश्चन्द्र, पंडित अयोध्या प्रसाद सिंह ‘हरिऔध’, मैथिलीशरण गुप्त, मुंशी प्रेमचन्द, जयशंकर प्रसाद, पंडित महावीर प्रसाद द्विवेदी, सुमित्रानन्दन पन्त, पंडित प्रताप नारायण मिश्र, सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला, पंडित बालकृष्ण भट्ट, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, अज्ञेय, भिखारीदास, चतुरसेन शास्त्री, चिंतामणि, देवी प्रसाद मिश्र, धूमिल, घनानंद, हजारी प्रसाद द्विवेदी, काशीप्रसाद जायसवाल, महादेवी वर्मा, राहुल सांकृत्यायन, भगवती चरण वर्मा, बनारसीदास चतुर्वेदी, अमृतलाल नागर, हरिवंशराय बच्चन, गोपालदास नीरज, विश्वनाथ त्रिपाठी, यशपाल, धर्मवीर भारती, भगवतशरण उपाध्याय और राही मासूम रज़ा आदि ने साहित्य रचा है.

यहां के शायरों में इंशा अल्लाह ख़ान इंशा, मीर अनीस, मीर हसन, मीर तक़ी मीर, असरार-उल-हक़ मजाज़, हसरत मोहानी, फ़ाख़िर लखनवी, मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी, नज़ीर अकबराबादी, फ़िराक गोरखपुरी, जोश मलीहाबादी, चकबस्त, अख़लाक़ मुहम्मद ख़ान 'शहरयार’, मिर्ज़ा शौक़ लखनवी, जिगर मुरादाबादी, कैफ़ी आज़मी, मजरूह सुल्तानपुरी, शकील बदायूंनी और वसीम बरेलवी आदि शामिल हैं. राज्य के कवियों और साहित्यकारों की तरह यहां के शायरों की फ़ेहरिस्त भी बहुत तवील है. दरअसल राज्य की तमाम महान विभूतियों के  नाम लिखने बैठें, जो मुद्दतें गुज़र जाएंगी. 

लोकसंगीत और नृत्य

यहां के कण-कण में संगीत है. प्राचीनकाल में ही यह राज्य महान संगीतज्ञों की जन्मभूमि और कर्मभूमि रहा है.महान गायक तानसेन ने इसी धरती पर जन्म लिया था. यहीं पर भरत मुनि ने नाट्यशास्त्र की रचना की थी, जिसे संगीत का बाइबिल माना जाता है. यहां शास्त्रीय संगीत के कई घराने हैं, जिनमें आगरा घराना, किराना घराना, रामपुर घराना, सहारनपुर घराना, लखनऊ घराना, इलाहबाद घराना और फ़तेहपुर सीकरी घराना आदि शामिल हैं.

उत्तर प्रदेश में ख़याल, ग़ज़ल, स्वांग, नक़ल, मर्सिया, क़व्वाली, रासलीला, रामलीला आदि शास्त्रीय व लोक संगीत प्रसिद्ध हैं. पंडित रवि शंकर, गिरिजा देवी, पंडित हरि प्रसाद चौरसिया और मालिनी अवस्थी आदि भी यहीं के रहने वाले हैं.कथक उत्तर प्रदेश का शास्त्रीय नृत्य है.

यह हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के साथ किया जाता है. प्राचीनकाल में यह एक धार्मिक नृत्य हुआ करता था. इसमें नर्तक महाकाव्य के गायन के साथ अभिनय किया करते थे. कथक नृत्य के प्रमुख कलाकार पंडित बिरजू महाराज हैं. यहां के लोक नृत्यों में ख़्याल नृत्य, रास नृत्य, झूला नृत्य, मयूर नृत्य, धोबिया नृत्य, चरकुला नृत्य, जोगिनी नृत्य, धींवर नृत्य, शौरा नृत्य, कर्मा नृत्य, पासी नृत्य, धुरिया नृत्य, छोलिया नृत्य, छपेली नृत्य, नटवरी नृत्य, देवी नृत्य, राई नृत्य, दीप नृत्य, पाई डंडा नृत्य, कार्तिक नृत्य, कलाबाज़ नृत्य, मोरपंख व दीवारी नृत्य, ठडिया नृत्य, चौलर नृत्य, ढेढ़िया नृत्य, ढरकहरी नृत्य, कठघोड़वा नृत्य और घोड़ा नृत्य आदि शामिल हैं.

राजनीति में वर्चस्व

देश की राजनीति में उत्तर प्रदेश का वर्चस्व स्थापित है. उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव, लोकसभा चुनाव का सेमीफ़ाइनल माना जाता है, क्योंकि यही चुनाव आगामी लोकसभा चुनाव की दिशा तय करता है. इस राज्य ने देश को पहला प्रधानमंत्री और पहली महिला प्रधानमंत्री दी है. पंडित जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, चौधरी चरण सिंह, विश्वनाथ प्रताप सिंह, चन्द्रशेखर और अटल बिहारी वाजपेयी के लोकसभा चुनाव क्षेत्र यहीं के रहे.

देश के पहले मुस्लिम मुख्य न्यायाधीश मुहम्मद हिदायतुल्लाह भी यहीं के रहने वाले थे. उन्होंने दो बार कार्यवाहक राष्ट्रपति के तौर ज़िम्मेदारी संभाली. वे देश के छठे उपराष्ट्रपति भी रहे. देश के चौदहवें राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द भी इसी प्रदेश से आते हैं. गोविंद वल्लभ पंत राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने, जबकि सुचेता कृपलानी उत्तर प्रदेश और देश की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं. कहा जाता है कि देश में सबसे ज़्यादा नेता और आईएएस यहीं पैदा होते हैं. नेतृत्व का गुण यहां के बच्चों को उनकी घुट्टी में ही मिल जाता है.

स्वतंत्रता सेनानी     

यहां के बाशिन्दों ने देश के स्वतंत्रता संग्राम में भी अहम किरदार निभाया है. इनमें रानी लक्ष्मीबाई, झलकारी बाई बेगम हज़रत महल, मौलवी लियाक़त अली, बख़्त ख़ान, आसफ़ अली, अशफ़ाक़ उल्लाह ख़ान, मौलाना मोहम्मद अली, मौलाना शौकत अली, रफ़ी अहमद किदवई, चंद्रशेखर आज़ाद, राम प्रसाद बिस्मिल, मंगल पांडे, राव कदम सिंह, आचार्य नरेंद्र देव, चित्तू पांडे, गोविंद बल्लभ पंत, विजय सिंह पथिक, स्वामी सहजानन्द सरस्वती, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, मुनीश्वर दत्त उपाध्याय, पुरुषोत्तम दास टंडन और राजा महेन्द्र प्रताप सिंह आदि शामिल हैं. देश पर जान क़ुर्बान करने वाले अब्दुल हमीद भी यहीं के रहने वाले थे. 

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हिन्दी सिनेमा में परचम फहराया 

हिन्दी सिनेमा जगत में उत्तर प्रदेश के अनेक कलाकारों ने कामयाबी का परचम फहराया है और यह सिलसिला आज भी बदस्तूर जारी है. इनमें अमिताभ बच्चन का नाम सबसे आगे हैं. उनके अलावा नसीरुद्दीन शाह, रज़ा मुराद, नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी, सौरभ शुक्ला, राजगोपाल यादव, प्रियंका चोपड़ा, अनुष्का शर्मा, दिशा पाटनी, अनुराग कश्यप और सुशांत सिंह आदि भी बॉलीवुड में छाये हुए हैं.         

खेलों में भी अग्रणी

खेलों के क्षेत्र में भी यह राज्य किसी से कम नहीं है. यहां के पारम्परिक खेलों में कुश्ती, कबड्डी और तैराकी आदि शामिल हैं. आधुनिक खेलों में हॉकी, क्रिकेट, वॉलीबॉल और बैडमिंटन लोकप्रिय है. इस धरती ने देश को अनेक होनहार खिलाड़ी दिए हैं, जिनमें ध्यानचंद, नितिन कुमार, ललित कुमार उपाध्याय और मोहमम्द कैफ़ आदि शामिल हैं. राज्य में खिलाड़ियों के लिए पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध हैं.

कानपुर में ग्रीन पार्क स्टेडियम है. यह राज्य का सबसे पुराना अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का क्रिकेट स्टेडियम है. इसमें एक दिवसीय और टेस्ट क्रिकेट अंतर्राष्ट्रीय टूर्नामेंट दोनों का ही आयोजन होता है. यह राज्य के क्रिकेट खिलाड़ियों का गृह मैदान भी है. लखनऊ में केडी सिंह बाबू स्टेडियम है. इसका नाम विख्यात हॉकी खिलाड़ी केडी सिंह के नाम पर रखा गया है.

यहां स्विमिंग पूल और टेनिस कोर्ट भी है. लखनऊ में ध्यानचंद एस्ट्रोटर्फ़ स्टेडियम भी है, जिसका नाम हॉकी के जादूगर ध्यानचंद के नाम पर रखा गया है. फ़ैज़ाबाद में भी एक विशाल खेल परिसर है, जिसे डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर स्टेडियम के नाम से जाना जाता है.

ग्रेटर नोएडा में विजय सिंह पथिक क्रिकेट स्टेडियम है. इसका नाम क्रांतिकारी विजय सिंह पथिक के नाम पर रखा गया है. नोएडा में बुद्ध इंटरनेशनल सर्किट है. यह देश का पहला मोटर रेसिंग सर्किट है. साल 2011यहां फ़ार्मूला वन इंडियन ग्रा पी का आयोजन किया गया था. नोएडा में गोल्फ़ कोर्स भी है. 

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मज़बूत अर्थव्यवस्था

उत्तर प्रदेश, देश की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला राज्य है. कृषि यहां का प्रमुख व्यवसाय है और यह इसके आर्थिक विकास में अहम भूमिका निभाता है. यहां की मुख्य फ़सलों में गेहूं, चावल, ज्वार, बाजरा, मक्का, गन्ना, सरसों, सोयाबीन, सूरजमुखी, दालें, फल और सब्ज़ियां शामिल हैं. कृषि उत्पादों में यह राज्य अग्रणी रहा है. यह देश में चीनी का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है. देश की तक़रीबन 70फ़ीसद चीनी उत्तर प्रदेश से ही आती है.

यहां पशुपालन और मत्स्य पालन भी रोज़गार का मुख्य साधन है. उद्योग भी इस राज्य की पहचान हैं. कानपुर को उत्तर भारत का मैनचेस्टर कहा जाता है. इसके अलावा पर्यटन ख़ासकर धार्मिक पर्यटन भी यहां ख़ूब फल-फूल रहा है. राज्य ने हस्तशिल्प के क्षेत्र में भी अपनी राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख़ास पहचान क़ायम की है.

बनारस की साड़ियां, रेशम और ज़री का बहुत मशहूर है. लखनऊ का कपड़ों पर चिकन की कढ़ाई का काम और रामपुर का पैचवर्क भी विख्यात है. फ़िरोज़ाबाद की चूड़ियां भी सबको ख़ूब भाती हैं. सहारनपुर का काष्ठ शिल्प, पिलखुवा की हैंड ब्लॉक प्रिंट की चादरें, मुरादाबाद के पीतल के बर्तन, औरंगाबाद का टेराकोटा यानी मिट्टी की मूर्तियां व अन्य सामान और अमरोहा के लकड़ी और मिट्टी के खिलौने बहुत मशहूर हैं. 

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ वित्तीय वर्ष 2020-21 में राज्य का सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) 16,45,317 करोड़ रुपये था, जो साल 2021-22 में तक़रीबन 20 फ़ीसद की बढ़ोतरी के साथ 19,74,532 करोड़ रुपये हो गया है. वहीं वित्तीय साल 2022-23 के लिए तैयार अग्रिम अनुमानों के आधार पर जीएसडीपी 21.91 लाख करोड़ रुपये पहुंची है.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मुताबिक़ राज्य में सूक्ष्म, लघु मध्यम उद्यमों की 96लाख से ज़्यादा इकाइयां संचालित हैं, जो रोज़गार सृजन करने के साथ-साथ इसे एक्सपोर्ट का हब बना रही हैं. सरकार अंतर्राष्ट्रीय कम्पनियों को राज्य में उद्योग स्थापित करने के लिए आमंत्रित कर रही है.

उत्तर प्रदेश निरन्तर विकास के पथ पर आगे बढ़ रहा है. कुछ दशकों पहले की बात करें, तो कभी टूटी-फूटी सड़कें इसकी पहचान हुआ करती थीं. लेकिन अब यहां की चौड़ी सड़कें देखने लायक़ हैं. राज्य के पूर्वी क्षेत्र को पूरे देश से जोड़ने के लिए तक़रीबन 341 किलोमीटर लम्बा और छह लेन चौड़ा पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे बनवाया गया.

एक्सप्रेस-वे पर प्रवेश व निकासी के लिए 11 इंटरचेंज का प्रावधान किया गया. लड़ाकू विमानों की लैंडिंग व टेकऑफ़ के लिए सुल्तानपुर में 3.2 किलोमीटर लम्बी हवाई पट्टी बनवाई गई. पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे को गोरखपुर से जोड़ने के लिए तक़रीबन 92किलोमीटर लम्बा गोरखपुर एक्सप्रेस-वे बनवाया जा रहा है. तक़रीबन 297 किलोमीटर लम्बे बुन्देलखंड एक्सप्रेस-वे का निर्माण कराया जा रहा है. मेरठ से प्रयागराज तक 594किलोमीटर लम्बे गंगा एक्सप्रेस-वे का निर्माण किया जाना है.

(लेखिका शायरा, कहानीकार व पत्रकार हैं)