संदेश तिवारी/ कानपुर
कहा जाता है कि शिक्षक योग्य हो तो छात्र की तकदीर बदल सकता है, लेकिन कानपुर की एक शिक्षिका ने एक छात्र की नहीं, बल्कि पूरे स्कूल की तकदीर और तस्वीर दोनों बदल दी. पूर्व माध्यमिक विद्यालय कटरी शंकरपुर सराय की इंचार्ज सहायक अध्यापक शशि मिश्र ने ऐसा ही कर दिखाया. जिस स्कूल में कभी बच्चे जाने से कतराते थे, अब वह गुलजार रहता है. उनके इस प्रयास के लिए अब उन्हें राज्य सरकार की ओर से पुरस्कार दिया जाएगा.
मिला था रेत भरा रास्ता और 4 कमरों का स्कूल
2017 में जब शशि इस विद्यालय में पहुंची थीं, उस वक्त को याद करते हुए वे बताती हैं कि उन्हें 4कमरों और एक बरामदे का ऐसा स्कूल मिला था, जहां तक पहुंचने के लिए कोई साधन नहीं था. सवा दो किलोमीटर लंबे रेतीले रास्ते पर पैदल चलते हुए यहां आने के बाद उन्हें यहां महज 17 बच्चे दिखे थे.
स्कूल के आसपास करीब 13 मजरों की 20,000 की आबादी से उन्होंने खुद बच्चों की शिक्षा और भविष्य को लेकर बात की. नतीजा यह हुआ कि स्कूल में जल्दी ही बच्चों की संख्या बढ़ने लगी और अब कक्षा 8तक के इस स्कूल में 158 बच्चे पढ़ते हैं .
आसान नहीं था बच्चों को स्कूल तक लाना
शशि मिश्र कहती हैं, “अभिभावकों को समझाना आसान काम नहीं था. गांव का माहौल भी इतना खराब था कि कोई शिक्षा के महत्व को समझता ही नहीं था.”वह बताती हैं उन्होंने सबसे पहले स्कूल को सुंदर बनाने के लिए पेड़-पौधे लगाए, पेंटिंग कराई और इसकी देखभाल की. प्रार्थना, असेंबली, नैतिक शिक्षा और तमाम प्रयासों से बच्चों को आकर्षित करने में वे सफल रहीं. वे अपने इस काम में सहायक रहे अध्यापक अब्दुल कुद्दूर खान को भी इसका क्रेडिट देती हैं.
बेटियों को पढ़ाने की सीख दी
स्कूल के आसपास के इलाके में लड़कियों को घर से बाहर नहीं निकलने की इतनी इजाजत नहीं थी. ऐसे में वे बताती हैं कि इसके लिए उन्हें ज्यादा प्रयास करने पड़े. उनके इस काम के लिए उन्हें 2018 में मुख्यमंत्री ने मलाला पुरस्कार से सम्मानित किया था. ये शशि का जुनून ही है कि वे कई छात्राओं का खर्च भी उठाती हैं. हर साल स्कूल से 2 छात्राओं का प्रवेश ओंकारेश्वर सरस्सवती विद्या निकेतन में कराती हैं.
वह बेहद खुशी से यह बताती हैं कि अब छात्राएं प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी भी करने लगी हैं. इनमें से एक छात्रा की सिविल सर्विस की तैयारी भी वे खुद करा रही हैं.
बच्चा बैंक की अनोखी पहल
शशि कहती हैं कि कई बार बच्चों के पास आगे की पढ़ाई के लिए पैसे नहीं होते हैं. ऐसे में उच्च शिक्षा के लिए वे पैसे जोड़ सकें, इसके लिए उन्होंने स्कूल में ही बच्चा बैंक बना रखा है. खास बात ये है कि बैंक का संचालन बच्चे ही खुद करते हैं . उन्हें 3साल के बाद उनकी जमा रकम वापस दी जाती है, जिसे वे अपनी पढ़ाई में इस्तेमाल करते हैं.
बीहड़ों में इमरान ने रचा इतिहास
बुंदेलखंड के सबसे पिछले जिलों में शुमार चित्रकूट में एक ऐसा भी विद्यालय है, जो डकैतों के आतंक और बीहड़ो में होने के बाद भी अपनी अलग इबारत लिख रहा है. इस स्कूल ने उत्तर प्रदेश में सबसे स्वच्छ विद्यालय का प्रथम पुरस्कार हासिल किया है.
पाठा क्षेत्र के पूर्व माध्यमिक विद्यालय सरैया- प्रथम के प्रधानाध्यापक इमरान खान का पिछले दिनों कैम्प कार्यालय में जिलाधिकारी द्वारा अभिनंदन किया गया.
डीएम ने कहा भी कि ऐसे विद्यालयों से प्रेरणा लेकर जिले के अन्य विद्यालय भी स्वच्छता, शिक्षा और अनुशासन की दिशा सराहनीय कार्य करें, इसका प्रयास किया जाएगा.प्रदेश का स्वच्छ विद्यालय पुरस्कार में विद्यालय ने 100 में से 95 अंक हासिल किए.
बता दें कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय भारत सरकार ने अगस्त, 2020 में स्वच्छ विद्यालय पुरस्कार के लिए प्राथमिक और पूर्व माध्यमिक विद्यालयों से ऑनलाइन आवेदन मांगे थे. जिसमें जनपद, प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर स्वच्छ विद्यालय का चयन कर पुरस्कार देने की योजना थी.
इस जनपद से भी कई विद्यालयों ने इसके लिए आवेदन किया था, जिसमें पूर्व माध्यमिक विद्यालय सरैया-प्रथम को यह सौभाग्य मिला था कि जिले में यह पहले स्थान पर था और अब प्रदेश में भी उसने यह मुकाम हासिल किया है.
अगस्त को विद्यालय के प्रधानाध्यापक इमरान खान को लखनऊ में राज्य परियोजना निदेशक डा. रमापति ने प्रदेश के प्रथम स्वच्छ विद्यालय का पुरस्कार दिया गया.