ये है हिन्दुस्तां मेरी जांः रामलीला के मंच पर रखा गया ताजिया

Story by  संदेश तिवारी | Published by  [email protected] | Date 08-10-2021
रामलीला के मंच पर ताजिया
रामलीला के मंच पर ताजिया

 

संदेश तिवारी / कानपुर

हालांकि यह व्यापक रूप से माना जाता है कि धर्म आपस में भेदभाव नहीं करते हैं और समय-समय पर हिंदू-मुस्लिम भाईचारा संस्कृति की मजबूत नींव के लिए उदाहरण बनते रहते है. वो भी ऐसे उदाहरण, जो हिंदू-मुस्लिम एकता की ऐतिहासिक मिसाल कायम करते हैं. आप भी जानिए कि कैसे मासूम ग्रामीणों ने हिंदू और मुस्लिम एकता के लिए दशहरा रामलीला और ताजिया का मंच साझा किया. कहने में बड़ा आसान सा है, लेकिन आने वाली हिंदू और मुस्लिम पीढ़ियों के लिए इससे खूबसूरत मिसाल और साझा विरासत और क्या होगी.

गांव में बनी मिसाल

आपसी सहयोग और साझा संस्कृति का एक प्रमुख तत्व है, हिंदू-मुस्लिम भाईचारा. हिंदू-मुस्लिम संस्कृति में संस्कृतियों का एक-दूसरे में घुल-मिल जाना और इसी आत्मसातीकरण की प्रक्रिया में भारतीय संस्कृति की आत्मा का निर्माण हुआ है. संस्कृति के मेलमिलाप की अवधारणा का यह केंद्रीय बिंदु है.

इमाम हुसैन इस्लाम के पैंगम्बर मोहम्मद साहब के नवासे थे. उन्होंने इस्लाम और मानवता की रक्षा के लिए अपनी अपने परिवार और दोस्तों की कुर्बानी दे दी. इसी शहादत की याद में शिया मुसलमान ताजिया निकालते हैं. यह ताजिया उन शहीदों का प्रतीक माना जाता है. इस ताजिया के साथ जुलूस निकालकर फिर उसे प्रतीकात्मक रूप से दफनाया जाता है. इसीलिए दुनिया भर के मुसलानों के लिए यह गम का महीना होता है. मुहर्रम के 10वें दिन आशूरा के दिन और हुसैन के बलिदान को याद करने का दिन है. ऐसी ही साझा संस्कृति पर मुस्लिम भाइयों के कुर्बान होने की मिसाल आज भी हिंदुस्तान के गांव में आपको मिल जायेगी.

हम बात कर रहे हैं यहां कानपुर नगर से सटे कठारा गांव की. यहां करीब 1600हिंदू और 550की मुस्लिम आबादी है. यहां हर साल दशहरे वाले दिन से रामलीला शुरू होती है. कई बार यहां ऐसा हुआ कि पुलिस के सामने सुरक्षा को लेकर कई सवाल खड़े हो गए.

गांव के ताजिया उठाने और मातमपोशी करने वाले मोहम्मद तस्लीम को आज भी वो दिन याद है, जब गांव में दशहरा रामलीला और ताजिया का समय करीब था. पुलिस प्रशासन  गांव की मुस्लिम आबादी को ध्यान में देखते हुए कई तरह की आशंकाओं से ग्रसित था. गांव की हिंदू-मुस्लिम आबादी भी पेशोपश में थी. आखिर गांव में सभी को अपने रस्मो-रिवाज मनाने थे और वो भी मिलजुल कर बिना, किसी खटास के.

दशहरा रामलीला कमेटी के अनिरूद्ध सिंह बताते है कि उनके गांव में मोहर्रम और रामलीला का आयोजन होना था. ग्रामीणों से अपेक्षाएं थी कि सौहार्द कायम रहे, लेकिन ये कैसे होगा बडा सवाल था. गांव वाले भी सशंकित थे.

हक्का-बक्का रह गए

इस पर थाने में पीस कमेटी की बैठक बुलाई गई. दोनों पक्षों से मोहम्मद तसलीम, हलीम, दिलदार खां, आरिफ, बालेंद्र सिंह राठौर, कमल सिंह, अनिरुद्ध सिंह और अजय गुप्ता पुलिस के साथ बैठे.

पुलिस ने सुरक्षा का मुद्दा रखा और रामलीला व मुहर्रम में शांति बनाए रखने के लिए रास्ता बताने को कहा. दोनों पक्षों के लोगों ने काफी मंथन के बाद भाईचारे की नई मिसाल कायम करने का फैसला लिया.

तय हुआ कि इस बार रामलीला की शरुआत मंच पर तजिए रखने के बाद की जाएगी.

इस पहल से एक बार तो पुलिस वाले हक्का-बक्का रह गए, लेकिन जब दोनों पक्षों ने सहमति जताई, तो पुलिस ने भी हामी भर दी.

गुरुवार रात को लीला के मंचन से पहले मुस्लिम भाई ताजिए लेकर पहुंचे, तो हिन्दुओं ने उनका स्वागत किया.

इसके बाद रामलीला के मंच पर ताजिए रखे गए, फिर रामलीला का मंचन शुरू हुआ, तो मुस्लिम भाई भी भगवान के जयकारे लगाने में पीछे नहीं रहे और देखते ही देखते पूरा गांव गले मिलकर झूम उठा.