चंपारण आंदोलन के नायक थे पीर मोहम्मद मुनिस

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] • 1 Years ago
चंपारण आंदोलन के नायक थे पीर मोहम्मद मुनिस
चंपारण आंदोलन के नायक थे पीर मोहम्मद मुनिस

 

एनाएतुल्लाह ‘नन्हे’

30 मई पर विशेषः देश की आजादी की लड़ाई की शुरुआत बिहार के जिस चंपारण जिले से हुई थी. उस ज्वलन्त मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर उठाकर गाँधी जी के संज्ञान में लाने, उनको चम्पारण तक लाने और आजादी की चिंगारी को लगाने वाले पत्रकार थे पीर मोहम्मद अंसारी जिनका उपनाम (तखल्लुस) मुनिस था. वे एक एक्टिविस्ट पत्रकार थे. एक्टिविस्ट इसलिए की वे एक दिलेर पत्रकार के साथ-साथ सोशल वर्कर भी थे. वे इतने निडर और बेखौफ पत्रकार थे कि अंग्रेजों की जुल्म की दास्तान एवं नील की खेती करने वाले निलहे किसानों की मुसीबतों पर लगातार लिखते थे. यही कारण था कि उन्हें अंग्रेजों के द्वारा दी गई टीचर की नौकरी भी गवानी पड़ी और लगभग 10 महीने तक जेल की यातना भी झेलनी पड़ी थी.

अंग्रेज पीर मोहम्मद मुनिस से इतने खौफजदा थे कि उनको अपने गजट में ‘खतरनाक’ और ‘बदमाश पत्रकार’ तक लिख डाला था. अंग्रेजों के ब्रिटिश हुकमरान बड़े ही जालिम थे.

उनका नियम कानून और फैसला बहुत ही मनमाने ढ़ंग का बड़ा ही कठोर, असहनीय और जालिमाना था. जब फिरंगियों का जुल्म हद से ज्यादा हो गया, तो स्वतंत्रता के लिए 1917 ई. में महात्मा गाँधी ने जो अपना प्रथम सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया और संघर्ष की जो रूप रेखा तैयार की, वह बहुत महत्वपूर्ण दौर थी.

आजादी के लड़ाई के लिए लड़ने की कसम खाने वाले हजारों मूल निवासियों में पीर मुहम्मद मुनिस भी थे. उन्होंने अपनी कलम के जरिये हिन्दू-मुस्लिम एकता को बनाये रखने में भी बहुत अहम भूमिका निभाई. वे बहुत ही खूबसूरती से अपने लेखों के जरिये सामाजिक आंदोलन के वाहक बन गये. वे किसानों की समस्या को इस ढंग से उठाते कि किसानो में क्रांति ला देते थे. यही कारण था की उनकी पत्रकारिता ने ब्रिटिश शासन की नींव तक हिला कर रख दी थी.

पीर मोहम्मद मुनिस ऐसे कलमकार स्वतंत्रता सेनानी थे, जो आजादी की जंग में 1915 ई. से ही निलहे किसानांे के जुल्म व ज्यादती को कलमबंद कर एक पुस्तक की शक्ल दे दिया था, जिसका खुलासा 4 मार्च 1916 ई. को बिहार स्पेशल ब्रांच के इंटेलिजेंस द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट से होता है, जिसमें बताया गया है कि इंडिगो कारखानों के आस-पास के स्थानों से इसकी सुगबुगाहट पीर मोहम्मद मुनिस के लेखों के जरिये हो चली थी.

22 मार्च 1917 ई. को पीर मोहम्मद मुनिस ने खुद गाँधी जी को एक पत्र लिखा, जिसमें चंपारण को लेकर कई अहम सवाल उठाये, जिसके जवाब में गाँधी जी 3 दिन तक रहने और कैसे वहाँ पहुँचें, उसके लिये तार के जरिये प्रोग्राम बना. फिर गाँधी जी अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष शुरू करने के लिए चंपारण आये, तो पीर मुहम्मद मुनिस पूरे तीन दिवसीय यात्रा में उनके साथ-साथ रहे, बल्कि उनके लिए खाना बनाया और पूरे मन से उनकी सेवा की. जब अंग्रेजी हुकुमत ने गाँधी जी की मदद करने वाले व्यक्तियों की सूची तैयार की, तो 32 व्यक्तियों में उनका नाम दसवें नम्बर पर था. पीर मोहम्मद मुनिस को गाँधी जी के प्रमुख सहयोगी के रूप में पहचाना जाता था.

ब्रिटिश दस्तावेज के अनुसार तिरहुत कमिश्नरी के एसडीओ लुईस ने लिखा है कि गाँधी जी को सहायता के प्रथम प्रस्ताव जो मिले थे, वह पीर मुहम्मद मुनिस के थे. वे आगे लिखते हैं कि वे बेतिया राज स्कूल में शिक्षक थे.

साथ ही पत्रकार भी थे, जो स्थानीय प्रबंधन पर हमेशा लिखते थे. इसलिए उन्हें पद से बर्खास्त कर दिया गया था. वे लखनऊ से निकलने वाले ‘प्रताप’ अखबार के लिए प्रेस संवाददाता के रूप में काम करते थे.

कहा जाता है कि गाँधी जी ने चंपारण में ही हिंदी सीखी थी और उन्हें हिन्दी सिखाने में पीर मोहम्मद मुनिस ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. चंपारण जाने से पहले गाँधी जी केवल अपनी मूल भाषा गुजराती और अंग्रेजी जानते थे और अपने सभी शुरुआती नोट्स अंग्रेजी में लिखते थे. पीर मुहम्मद मुनिस एक स्थानीय किसान राजकुमार शुक्ल के साथ कांग्रेस पार्टी द्वारा आयोजित लखनऊ सम्मेलन में अपने करीबी दोस्त हरिवंश सहाय के साथ थे और जब चंपारण वापस आये, तो राजकुमार शुक्ल ने 27 फरवरी, 1917 को गांधी जी को एक पत्र लिखा, जिसका उन पर गहरा प्रभाव पड़ा और वे चंपारण जाने के लिए बरबस तैयार हो गये. दरअसल यह वही चिट्ठी थी, जो राजकुमार शुक्ल को पीर मोहम्मद मुनिस ने लिखी थी. पटना कॉलेज के प्राचार्य और इतिहासकार केके दत्ता को यह पत्र मुनिस के घर से मिले थे.

वे लिखते हैं कि मुनिस ने खुद को मुजाहिद-ए-आजादी साबित कर दिया था और अपना पूरा जीवन राष्ट्र के नाम समर्पित कर दिया था. 30 मई 1882 को जन्मे ऐसे महान स्वतंत्रता सेनानी को हमे याद करना चाहिए. 140वीं जयंती पर हम शपथ लें कि हम ऐसे भूले-बिसरे स्वतंत्रता सेनानियों को याद कर उनके आदर्शों को जन-जन तक पहुँचायेंगे, तभी उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी.

(लेखक सोशल एक्टिविस्ट, चिंतक एवं कलमकार हैं.)