पुणे के लोग बोले-देश को देखने का नजरिया बदला

Story by  शाहताज बेगम खान | Published by  [email protected] | Date 16-08-2021
पुणे के लोग बोले-देश को देखने का नजरिया बदला
पुणे के लोग बोले-देश को देखने का नजरिया बदला

 

देश की आजादी के 75वर्ष पूरे होने पर सालभर जश्न का दौर चलेगा. इस गौरवशली अवसर पर पुणे के लोगों ने भी अपनी राय रखी . आइए, जानते हैं किसने क्या कहा. यदि आप भी अपनी राय रखना चाहते हैं तो---पर चित्र के साथ अपने विचार हमें मेल कर दें.

शाहताज खान / पुणे

जब हमारा देश अंग्रेजों के अधीन था, तब देश के हर व्यक्ति के जीवन का एक ही उद्देश्य और लक्ष्य था कि भारत को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराया जाए. आज हमें आजाद हुए 75वर्ष हो गए.

आजादी मिलने से पहले लोगों के पास सोचने को कुछ नहीं था. परन्तु आज भारत का हर व्यक्ति अपने अंदाज में सोचता है. स्वतंत्र के इन सात दशकों में न केवल भारत का नक्शा बदला है. एक आम नागरिक की सोच में भी तब्दीली आई है.

 

salmaसलमा खान ( किन्नर मां ट्रस्ट, अध्यक्ष)

देश में बहुत बदलाव आया है.  उन्नति कर रहा है. किन्नर समाज हमेशा अपने देश और अपने देशवासियों के लिए दुआ करता है. हम भी देश के नागरिक हैं. पिछले दो वर्ष हमारे बहुत मुश्किल में बीते. कोविड 19के प्रसार को रोकने के लिए बहुत कुछ किए गए. दूसरी तरफ ट्रांसजेंडरों ने अपनी जीविका खो दी.

किन्नर समाज देश की मुख्य धारा से जुडा है. मगर आजादी से अब तक हमारे समाज के बारे में ज्यादा नहीं सोचा गया. भारत सरकार और राज्य सरकारें हमारे लिए कुछ खास प्रयास नहीं कर पाईं.

यह सही नहीं है. ट्रांसजेंडर समुदाय के सामाजिक और आर्थिक सशक्तिकरण के लिए कौशल विकास प्रशिक्षण, सरकारी नौकरी में आरक्षण, पेंशन योजना जैसी बुनियादी सुविधाओं की आवश्यकता है. सब से पहले किन्नर समाज की गणना होनी चाहिए. देश के स्वतंत्रता के 75वें साल में होगा, ऐसी उम्मीद है.

देश के विकास के लिए महिलाओं का सशक्तिकरण जरूरी है. भारत का संविधान भी लैंगिक आधार पर कोई भेदभाव नहीं करता. देश में महिलाओं को सशक्त बनाने वाली सरकारी योजनाओं की कोई कमी नहीं . मगर परिवर्तन की रफ्तार धीमी है.

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 फरहत छागला ( महिला उद्यमी)

स्वतंत्रता के 75वर्ष हो गए. देश का पिछला समय उतार, चढ़ाव भरा रहा. यह यात्रा खूबसूरत रही. अपने अनुभव से कह सकती हूं कि इतने वर्षों में हम ने यह जाना कि हमें हर मुकाम पर संयम रखना चाहिए.

हमें अपना अस्तित्व खुद कायम करना होगा. महिलाओं ने अपने अधिकारों को पहचानना शुरू कर दिया है. वो अब ना केवल अपने लिए बल्कि दूसरे के लिए भी खड़ी होने लगी हैं. एक महिला के रूप में मेरी प्रेरणा कुरान है, जो महिलाओं को समान अधिकार और विशेष दर्जा प्रदाने की हिदायत देता है.

भविष्य में सशक्त महिला बनकर देश केलिए योगदान देना चाहती हूं. मैं मानती हूं कि‘‘ सशक्त महिला, सशक्त समाज तो सशक्त देश.‘‘पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपने पहले भाषण में कहा था कि कई साल पहले हमने भाग्य को बदलने का प्रयास किया था. अब वो समय आ गया, जब हम अपनी प्रतिज्ञा से मुक्त हो जाएंगे. मगर हम लोग उससे पूरी तरह से मुक्त नहीं हुए हैं.

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एडवोकेट अतिया मेमन (जिला एंव सत्र न्यायालय, पुणे)

स्वतंत्रता के 75वर्ष पूरे होने पर सबसे पहले सभी को हार्दिक बधाईं. आजादी के लिए अपना सब कुछ न्योछावर करने वालों को हमें कभी नहीं भूलना चाहिए. यह नहीं भूलना चाहिए कि स्वतंत्रता सामूहिक प्रयास का परिणाम है.

हमारे स्वतंत्रता सेनानी, भारत को एक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में देखना चाहते थे. हर दिन के साथ हमें अपने देश को और मजबूत बनाने की कोशिश करनी चाहिए. हमेें स्वतंत्रता के बाद बदलती जरूरतों के मुताबिक देश को ढालने और इसे संभालने की पर चिवारशील रहना चाहिए. ताकि देश एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक सकुशल आगे बढ़ता रहे.

हमारे देश की विविधता इसका आकर्षण और ताकत है. इसे संभालना बड़ी चुनौतियों में एक है. हम समझदारी से काम लें तो उज्वल भविष्य का निर्माण कर सकते हैं. मगर मामूली सी गलती देश का बड़ा नुकसान कर सकती है.

न्यायपालिका पर विश्वास, देश और उसके सभी संस्थानों को मजबूत बनाने की भी हमारी जिम्मेदारी है. एक सभ्य समाज कानून के द्वारा शासित होता है. लोगों का न्यायपालिका पर विश्वास है, जिसे बनाए रखने के लिए हम पूरी कोशिश करनी चाहिए.

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सफदर हुसैन ( विद्यार्थी)

इस मौके पर मैं कहना चाहता हूं कि हमें एक लम्हा केलिए समीक्षा करनी चाहिए कि स्वतंत्र होने का क्या अर्थ है? यह स्वतन्त्रता कैसी है ? आज हम कहां खड़े हैं ? यह प्रशन आज के भारत में बहुत महत्त्व रखते हैं.

जब हम स्वतन्त्रता की खुशी  मनाने की बात करते हैं तो हम आम तौर पर केवल ब्रिटिश औपनिवेशक शासन से मुक्ति की बात करते हैं, जबकि उत्पीड़न,दमन, भेदभाव, क्रूरता और अमानवीकरण से मुक्ति की बात भी हमें करनी चाहिए. व्यक्तिगत पहचान, राष्ट्रीय पहचान, व्यक्तिगत स्वतन्त्रता जैसी बहुत सी बातें हैं जिन पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है. हमें कर्तव्यों के पालन पर भी विचार करना चाहिए.

स्वतन्त्रता का जश्न मनाना गलत नहीं, लेकिन इस स्वतन्त्रता को बनाए रखने के लिए हमें ज्यादा संघर्ष करना होगा. यह हमारे भविष्य की आशाओं के लिए जरूरी है. यह उस सोच का भी हिस्सा है, जो हमें अपने राष्ट्र के प्रति बेहतर करने को प्रेरित करता है. हमारे देश की पहचान एक ऐसे राष्ट्र की होनी चाहिए जहां लिंग भेदभाव, जातीवाद, नफरत का खात्मा केवल कागज तक सीमित न हो. यह हमारे व्यवहारिक जीवन में भी आए.