मंजीत ठाकुर/ नई दिल्ली
आपने इतिहास की किताबों में अकबर के बारे में जरूर पढ़ा होगा, अकबर कहते ही जेहन में एक ऐसा अक्स उभरता है, जिसकी सफेद मूंछों और रोबदार आवाज से शहजादे सलीम की सलीकेदार आवाज भी फीकी पड़ती हुई मालूम देती थी. बेशक, आपने अकबर कहते ही हिंदुस्तानी फिल्मों के अकबर के बारे में सोचा होगा, और वह किरदार निभाया था फिल्मी दुनिया के पापा जी यानी पृथ्वीराज कपूर ने.
किरदार को इस तरह अमर करना लाजिमी ही था क्योंकि जिन दिनों के. आसिफ मुगल-ए-आजम की शूटिंग कर रहे थे, पृथ्वीराज कपूर शहंशाह के इस किरदार में पूरी तरह खो गए थे. कहते हैं कि वह शूटिंग से परे भी बाकी लोगों से उसी अंदाज में बात करते थे मानो वे खुद ही अकबर हों.
मुगल-ए-आजम को बतौर फिल्म मील का पत्थर बनाने वाली बहुत सारी चीजे हैं पर उनमें से एक सबसे अहम बात बादशाह अकबर का किरदार था. बेशक, आशुतोष गोवारिकर की फिल्म जोधा-अकबर में हृतिक रोशन भी अकबर के किरदार में नमूदार हुए लेकिन उस फिल्म का और हृतिक के उस किरदार का जिक्र भी बमुश्किल ही होता है.
पृथ्वीराज कपूर का कपूर खानदान आज बड़ी इज्जत-दौलत और शोहरत का पर्याय है, लेकिन आज के पाकिस्तान के पंजाब के कस्बे लायलपुर में जब 3 नवंबर, 1906 को पृथ्वीराज कपूर पैदा हुए, तब इनके पिता की अलग प्रतिष्ठा वहां थी. पृथ्वीराज कपूर के पिता बशेश्वरनाथ ब्रिटिश पुलिस में अधिकारी थे और दादा केशवमल तहसीलदार थे. इस तरह पद को उस वक्त काफी बड़ा और रसूखदार माना जाता था.
लेकिन, पृथ्वीराज कपूर ने अपने पुरखों की राह छोड़ी और नई लीक पकड़ ली. उन्हें अदाकारी में मजा आता था. सिर्फ सतरह साल के थे कि तभी उनका ब्याह कर दिया गया. लेकिन, पृथ्वीराज कपूर अभिनय में हाथ आजमाने बंबई (अब मुंबई) पहुंच गए.
लेकिन बंबई तो भैया, बंबई ही है. आसानी से मुकाम नहीं मिलता, और एक बार ठौर मिल गया तो ये शहर छोड़ता भी नहीं आपको. वह दौर मूक फिल्मों का था और पृथ्वीराज कपूर को भूमिकाएं भी मिली जूनियर कलाकार की. लेकिन उन्होंने अपनी छाप छोड़ दी और 1929 में उनकी मुख्य कलाकार के तौर पर पहली फिल्म आई सिनेमा गर्ल. भारत की पहली टॉकी यानी बोलती फिल्म आलम आरा 1932 में रिलीज हुई थी, उस फिल्म में भी पृथ्वीराज कपूर मजबूत किरदार में नजर आए. इस फिल्म में निर्देशक अर्देशिर ईरानी ने ‘सेनापति आदिल’ का किरदार दिया था, जिसका सुल्तान की दूसरी बीवी ‘दिलबहार’ से इश्क़ हो जाता है.
लेकिन पृथ्वीराज कपूर को शोहरत मिली 1941 में रिलीज हुई फिल्म सिकंदर में, जिसमें वह सिकंदर की भूमिका में थे. सोहराब मोदी की इस फिल्म में पृथ्वीराज कपूर की दमदार आवाज ने कहर ढा दिया. धीरे-धीरे पृथ्वीराज कपूर ने फिल्मों में शोहरत तो कमा ली, पर उनके अंदर का कलाकार मन संतुष्ट नहीं हो रहा था.
और तब, 1944 में उन्होंने पृथ्वी थियेटर की स्थापना की. जानकारों ने कई जगह उल्लेख किया है कि इस थियेटर को स्थापित करने के लिए पृथ्वीराज कपूर ने अपनी सारी जमा-पूंजी इसमें लगा दी थी.
29 मई, 1972 को पृथ्वीराज कपूरका निधन हो गया. पर पृथ्वीराज कपूरने अपने पीछे सिनेमाई विरासत छोड़ी है, वह जनता के दिलो-दिमाग पर आज भी कायम है.