भारत में जब भी ऐतिहासिक,सुंदर वास्तुकला से सुसज्जित और प्राचीन मस्जिदों का जिक्र होता है, घूम-फिर कर बात दिल्ली की जामा मस्जिद, कोलकाता की नाखुदा और हैदराबाद की मक्का मस्जिद पर आकर अटक जाती है, जबकि वास्तव में ऐसा है नहीं. देश में अनेक सुंदर, ऐतिहासिक और प्राचीन मस्जिदें हैं, जिनके बारे में बहुत कम लोगों को पता है. इन मस्जिदों के बारे में लिखा-पढ़ा भी बहुत कम गया है. ऐसी ही कुछ मस्जिदों से पाठकों को रू-ब-रू कराने के लिए आवाज द वॉयस के मलिक असगर हाशमी ने यह सिलसिला शुरू किया है. इसकी दूसरी कड़ी में आप से लक्ष्यद्वीप समूह के मिनिकॉय द्वीप की जामा मस्जिद से परिचय कराया गया था. अब तीसरी कड़ी के रूप में लक्षद्वीप समूह के कवरत्ती द्वीप की ऐतिहासिक उजरा मस्जिद से रूबरू हों.
कवरत्ती द्वीप (Kavaratti Island )सफेद रेत के समुद्र तटों का एक सुंदर द्वीप है, जो नीले पानी की सीमा से लगा हुआ है. यह केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप की राजधानी है. हर साल भारत और विदेशों से यहां बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं और यहां के आकर्षक दृश्यों और शांत वातावरण का आनंद उठाते हैं.
लक्षद्वीप समूह में तीन सौ से अधिक मस्जिदें हैं, जिन्हें द्वीपवासी सूफीवाद का महत्वपूर्ण हिस्सा मानते हैं.लक्षद्वीप की तकरीबन तमाम मस्जिदें शांति प्राप्त करने के स्थल के रूप में जानी जाती हैं. अधिकांश मस्जिदें नारियल के पेड़ों के घने पत्ते से घिरी और चमकदार लाल टेराकोटा से निर्मित हैं.कवरत्ती द्वीप की उजरा मस्जिद भी ऐसी ही एक मस्जिद है.
कवरत्ती द्वीप के दक्षिण-पूर्वी भाग में स्थित उजरा मस्जिद आंखों और आत्मा को सुकून देती है. यहां तक पहुंचने वाली गलियों में दिनभर हलचल मची रहती है. इन संकरी गलियों को पार कर ही मस्जिद तक पहुंचा जा सकता है.
चहचहाते पक्षियों और हवा की फुसफुसाहट मस्जिद के भीतर और उसके आसपास महसूस की जा सकती है. यह मस्जिद अद्वितीय है. इसमें नियमित नमाज पढ़ने वाले कम आते हैं. शांति से बैठकर ध्यान लगाने वाले ज्यादा नजर आते हैं.
यहां आने वालों से भी मस्जिद के इंतजामकारों की अपेक्षा रहती है कि वे पांच वक्त की नमाज पढ़ने की बजाए यहां बैठकर इबादत में अपना समय बिताएं. मस्जिद भी इसी के अनुसार डिजाइन की गई है.
सुंदरता वास्तुकला
मस्जिद की छत्त केरल के मंदिरों की तरह है.एक ऊंचे मंच पर निर्मित, मस्जिद में अन्य मस्जिदों के विपरीत मीनारें नहीं हैं. केरल के तटीय मंदिरों के समान, इसके अंदरूनी हिस्सों को भारी बारिश से बचाने के लिए ढलान वाली टाइलों की छतें लगाई गई है. द्वीप पर साल भर बारिश होती है.
मस्जिद के अर्ध-वृत्ताकार सफेद मेहराब खंभों को छत से जोड़ते हैं. नमाजियों को ध्यान में खलल न पड़े इसकी यहां विशेष व्यवस्था है.मस्जिद को इसकी खूबसूरत नक्काशीदार खंभों और विस्तृत रूप से डिजाइन किए गए बरामदे के लिए भी जाना जाता है.
चार स्तंभों के हर इंच को अलग-अलग डिजाइनों के साथ विस्तृत रूप से उकेरा गया है. खूबसूरती से डिजाइन किए गए केले के फूल लकड़ी और लकड़ी की जंजीरों से उकेरे गए हैं जो छत से नीचे गिरते हैं. यह एक अद्भुत प्रभाव पैदा करते हैं.
प्रकाश के लिए लकड़ी की छत में तीन पैनल जोड़े गए हैं. प्रत्येक पैनल में अलग-अलग फूलों की नक्काशी है. डिजाइन किए गए पत्ते और फूल सभी स्थानीय स्थापत्य कला का नमूना हैं.
इतिहास की झलकियां
कवरत्ती के एक प्रतिष्ठित कलाकार मोहम्मद हनीफा कहते हैं,हमारे पूर्वजों में से एक मुकरी थे, जो मस्जिद के धार्मिक कार्यवाहक थे. उन्होंने ही मस्जिद में नक्काशी की है. वह आसपास के पौधों से इतने मोहित थे कि ध्यान से उन पत्तियों और फूलों को देखते और बाद में मस्जिद के लकड़ी के खंभे और छत पर उकेर देते. यह अब महान स्थानीय शिल्प कौशल का नमुना बन गए हैं.
जिस लकड़ी पर नक्काशी की गई है वह मुख्य भूमि से लाई गई है. यह ड्रिफ्टवुड नहीं है. मुकरी को एक महान नाविक के रूप में जाना जाता है, जो मैंगलोर से लकड़ी लाया करते थे. कहा जाता है कि मुकरी को अपनी कला से इतना प्रेम था कि वह अक्सर नाव चलाते समय भी नक्काशी करते थे.
मस्जिद का निर्माता कौन
माना जाता है कि मस्जिद का निर्माण शेख मोहम्मद कासिम ने करवाया था, जो 17वीं शताब्दी में लक्षद्वीप आए थे. बताते हैं कि वह सूफी थे. यहां सूफीवाद के विस्तार के लिए आए थे. उन्हें लोग वलीउल्लाह भी कहते हैं. उनका मकबरा मस्जिद के ठीक सामने स्थित है. मकबरा के उत्तराधिकारी उजरा मस्जिद के मुतवल्ली (मालिक) हैं.
प्रकृति के करीब
मस्जिद की एक और अनूठी विशेषता जल संचयन है. मस्जिद के पीछे एक भव्य कुआं और एक छोटा तालाब है. टैंक के पानी को हीलिंग गुणों के लिए जाना जाता है. दुनिया भर से लोग यहां आते हैं और विभिन्न बीमारियों से छुटकारा पाने की उम्मीद में डुबकी लगाते हैं.
हर सोमवार और शुक्रवार की रात आखिरी नमाज के बाद यहां विशेष भीड. इकट्ठी होती है. मस्जिद के करबी शेख मोहम्मद कासिम का उर्स होता है.
द्वीप सैन्य ठिकाना
कवरत्ती द्वीप को लक्षद्वीप द्वीपसमूह के सबसे विकसित द्वीपों में से एक माना जाता है. इस द्वीप पर लगभग 52 मस्जिदें. द्वीप के बारे में एक और उल्लेखनीय बात यह है कि यह भारतीय नौसेना के लिए एक महत्वपूर्ण सैन्य अड्डे के रूप में कार्य करता है. हाल में इसे उन 100 शहरों में चुना गया जिन्हें प्रधानमंत्री के स्मार्ट सिटीज मिशन के तहत विकसित किया जाएगा.
पर्यटकों के लिए
अगर आप यहां घूमने की योजना बना रहे हैं, तो कवरत्ती द्वीप की यात्रा के लिए अगस्त और मार्च के बीच के महीनों को सबसे अच्छा समय माना जाता है. समुद्र से घिरा होने के कारण, मौसम पूरे साल सामान्य रहता है, लेकिन गर्मी का मौसम अपने गर्म और आर्द्र मौसम की स्थिति के साथ मजा किरकिरा कर देता है. इसलिए, यदि आप गर्मियों को छोड़ दें तो यह आदर्श है.
कवरत्ती द्वीप का इतिहास
कवरत्ती द्वीप के इतिहास के बारे में बहुत कुछ प्रलेखित नहीं है. स्थानीय लोगों का दावा है कि इस द्वीप को भारत और आसपास के देशों की यात्रा करने के क्रम में आराम करने के लिए ब्रेक प्वाइंट के रूप में इस्तेमाल करते थे.
भारत की स्वतंत्रता के बाद, कवारत्ती द्वीप समुद्र तट प्रेमियों और जल क्रीड़ा के प्रति उत्साही लोगों के लिए एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हुआ है. कवारत्ती द्वीप के किनारे का लैगून स्नॉर्कलिंग, तैराकी और प्रवाल भित्तियों की खोज जैसी जल गतिविधियों के लिए एक शानदार स्थान माना जाता है.
कवरत्ती द्वीप के प्रमुख आकर्षण
1. वाटर स्पोर्ट्स
कवरत्ती द्वीप असंख्य जल साहसिक खेलों के लिए पर्यटकों के बीच बेहद लोकप्रिय है. पर्यटक द्वीप पर स्नॉर्कलिंग, स्कूबा डाइविंग, कांच के तल वाली नाव की सवारी, सर्फिंग और अन्य गतिविधियों का आनंद ले सकते हैं.
2. कवारत्ती समुद्री एक्वेरियम
एक्वेरियम कवरत्ती द्वीप पर घूमने की सबसे अच्छी जगहों में गिना जाता है. इसमें मछलियों की कई प्रजातियों प्रदर्शित की गई हैं. कोई भी इस दिलचस्प जगह जाकर पानी के नीचे की दुनिया के बारे में अपना ज्ञान बढ़ा सकता है.
कवरत्ती द्वीप कैसे पहुंचे
कवरत्ती द्वीप लक्षद्वीप द्वीपसमूह में स्थित है. यह चारों तरफ से अरब सागर से घिरा हुआ है, इसलिए कोई भी केवल दो तरीकों या तो पानी या हवाई मार्ग से द्वीप तक पहुंच सकता है.
पानी से
कोचीन और लक्षद्वीप के बीच चलने वाले कई यात्री जहाजों द्वारा पर्यटक कवारत्ती द्वीप तक पहुंच सकते हैं. इन जहाजों में एमवी मिनिकॉय, एमवी भारत सीमा, एमवी अमीनदीवी, एमवी अरब सागर, एमवी कवरत्ती और एमवी टीपू सुल्तान प्रमुख हैं. लक्षद्वीप पहुंचने में आमतौर पर यात्रा में 15 से 20 घंटे लगते हैं.
हवाई जहाज से
अगत्ती द्वीप पर अगत्ती हवाई अड्डा (एजीएक्स) कवारत्ती द्वीप के सबसे नजदीक है. वहां से कावारत्ती द्वीप तक पहुंचने के लिए हेलीकॉप्टर सेवा या नाव सेवा ली जा सकती है.