Kajari Teej 2024: आज है कजरी तीज, जरूर पढ़ें ये व्रत कथा, सत्तू-बारे के बिना अधूरा है इस तीज का जश्न

Story by  ओनिका माहेश्वरी | Published by  onikamaheshwari | Date 22-08-2024
Kajari Teej 2024: Today is Kajari Teej, must read this fasting story, the celebration of this Teej is incomplete without Sattu-Baare
Kajari Teej 2024: Today is Kajari Teej, must read this fasting story, the celebration of this Teej is incomplete without Sattu-Baare

 

ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली

आज राजस्थान का खास पर्व कजरी तीज है. यह त्योहार सुहागिनों के लिए बेहद खास होता है. कजरी तीज को सातूड़ी तीज या बड़ी तीज के नाम से भी जाना जाता है.
 
वैसे तो इसे देश के अलग-अलग हिस्सों में मनाया जाता है. लेकिन राजस्थान में इसे विशेष रूप से सुहागिन महिलाएं करती हैं. इस दिन विवाहित महिलाएं भगवान शिव और माता पार्वती के साथ चंद्रमा की पूजा करती हैं. इस त्योहार को भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की तृतीया को कजरी तीज का त्योहार मनाया जाता है.
 
 
इसे कजली, सातुड़ी तीज के नाम से भी जाना जाता है. ये तीज रक्षाबंधन के तीन दिन बाद और जन्माष्टमी के पांच दिन पहले मनाई जाती है.
 
कजरी तीज के दिन सुहागिनें पति की लंबी की कामना के लिए व्रत रखती हैं. इस साल भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की तृतीया 22 अगस्त (गुरुवार) को यानी आज है, ऐसे में इसी दिन कजरी तीज धूम धाम से मनाया जा रहा है.
 
कजरी तीज की पूजन विधि
 
कजरी तीज के लिए सर्वप्रथम नीमड़ी माता को जल व रोली के छींटे दें और चावल चढ़ाएं. नीमड़ी माता के पीछे दीवार पर मेहंदी, रोली और काजल की 13-13 बिंदिया अंगुली से लगाएं. मेंहदी, रोली की बिंदी अनामिका उंगली से लगाएं और काजल की बिंदी तर्जनी उंगली से लगानी चाहिए. नीमड़ी माता को मोली चढ़ाने के बाद मेहंदी, काजल और वस्त्र चढ़ाएं. दीवार पर लगी बिंदियों के सहारे लच्छा लगा दें.
 
 
नीमड़ी माता को कोई फल और दक्षिणा चढ़ाएं और पूजा के कलश पर रोली से टीका लगाकर लच्छा बांधें. पूजा स्थल पर बने तालाब के किनारे पर रखे दीपक के उजाले में नींबू, ककड़ी, नीम की डाली, नाक की नथ,
साड़ी का पल्ला आदि देखें. इसके बाद चंद्रमा को अर्घ्य दें.
 
 
इस व्रत के दौरान घर की सुहागन महिलाएं सुंदर परिधान पहनकर 16 श्रृंगार कर मेहंदी लगाकर तैयार होती है साथ ही घर की कुंवारी लड़कियां अपनी माता की पूजा में मदद करती हैं और साथ ही सत्तू बारे पर डेकोरेशन करती हैं जिसमें मेवा, खोआ, चांदी का बरक आदी शामिल है.
 
 
सत्तू की मिठाइयों के बिना अधूरा है इस तीज का जश्न
 
इस दिन महिलाएं और लड़कियां उपवास रखती हैं और शाम को चांद की पूजा करने के बाद व्रत खोलती हैं. सत्तू खाकर इस व्रत को खोला जाता है. सत्तू से कई तरह के मीठे पकवान बनाए जाते हैं, जिसमें लड्डू और बर्फी खासतौर से बनाए जाते हैं. चने के सत्तू से बनने वाले ये पकवान जायकेदार होने के साथ ही सेहत के लिए भी काफी फायदेमंद होते हैं. वैसे चने के सत्तू के अलावा आप जौ, गेहूं और चावल का सत्तू भी इस्तेमाल कर सकते हैं.
 
 
कजरी तीज व्रत कथा
 
प्राचीन समय में एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण पति पत्नी रहते थे. उनकी आर्थिक स्थिति इतनी दयनीय थी कि केवल दो समय के भोजन का प्रबंध भी बड़ी मुश्किल से हो पाता था. ऐसे में जब भाद्रपद महीने में तृतीया तिथि की कजरी तीज आई, तो ब्राह्मण की पत्नी ने कजरी तीज का व्रत रखा. ब्राह्मणी ने ब्राह्मण से कहा, आज मेरा कजली माता का व्रत है. आप कहीं से चने का सत्तू ले आइए.
 
इस पर ब्राह्मण बोला, घर में जरा सा भी धन नहीं है, मैं सत्तू कहां से लाऊं? तब ब्राह्मणी ने कहा, ये मैं नहीं जानती, चाहे आप चोरी करो या चाहे डाका डालो, लेकिन चने का सत्तू लेकर आओ. यह बात सुनकर ब्राह्मण परेशान हो गया कि आखिर बिना धन के वह सत्तू कहां से लेकर आए.
 
रात का समय था. ब्राह्मण घर से निकला और एक साहूकार की दुकान पर पहुंचा. वहां उसने देखा कि साहूकार के साथ-साथ उसके सभी नौकर भी सो रहे थे, तब वह चुपके से दुकान में घुस गया. सत्तू बनाने के लिए उसने वहां से चने की दाल, घी, शक्कर लिया सबको सवा किलो तोल लिया. इतने में ही खटपट की आवाज सुनकर दुकान के नौकर जाग गए और चोर-चोर चिल्लाने लगे. तब साहूकार की भी नींद खुल गई. उसने ब्राह्मण को देखा और उसको पकड़ लिया. तब ब्राह्मण ने बहुत विनम्रता से साहूकार से कहा कि मैं चोर नहीं हूं.
 
मेरी पत्नी ने कजरी तीज का व्रत रखा है. मैं केवल सवा किलो सत्तू लेने आया था, लेकिन सत्तू न मिलने पर सत्तू बनाने की सवा किलो सामग्री लेकर जा रहा था. आप मेरी तलाशी लेकर देख लीजिए. तब साहूकार ने उसकी तलाशी ली, लेकिन उसके पास सत्तू के सामान के अलावा कुछ नहीं मिला.
 
ब्राह्मण ने कहा, हे साहूकार! चांद निकल आया है. ब्राह्मणी मेरा इंतजार कर रही होगी. तब ब्राह्मण की स्थिति देख साहुकार की आंखें भर आईं. नम आंखों से साहूकार ने कहा, आज से आपकी पत्नी को मैं अपनी धर्म बहन मानता हूं. इसके बाद उसने ब्राह्मण को सत्तू, आभूषण-गहने, रुपये, मेहंदी, लच्छा और बहुत सारा धन देकर ठाठ से विदा किया. सबने मिलकर कजली माता की पूजा की. इसके बाद ब्राह्मण दंपति पर माता की कृपा हुई और उसके अच्छे दिन आ गए.
 
 
मान्यता के अनुसार, इस कथा जो भी पढ़ता है और सुनता है, उसका सब तरह से कल्याण होता है. इस कथा को पढ़ने-सुनने वाले के साथ-साथ सब लोगों के वैसे ही दिन फिरे, जिस तरह से ब्राह्मण के दिन फिरे थे. कजली माता की कृपा सब पर बरसे.
 
कजरी तीज से पहले दिन सभी महिलाएं और लड़कियां चटपटा भोजन खाना पसंद करती हैं क्योंकि अगले दिन व्रत करना होता है और शाम को केवल सत्तू या बड़े की 7 चुटकी कोई और दही के साथ लेकर वे अपना व्रत खोलती है इसके बाद अगली सुबह में फिर से साथ चुटकी सत्तू या बड़े की खाकर अपना व्रत पूर्ण करती हैं और इसके बाद नमक वाला भोजन ग्रहण करते हैं.
 
 
यह व्रत करवा चौथ से भी ज्यादा कठिन माना जाता है क्योंकि इसमें रात को भी आप खाना नहीं खाते और अगली सुबह मीठे सत्तू की साथ चुटकी लेने के बाद ही आप नमक का सेवन या खाना ग्रहण कर सकते हैं.
 
राजस्थान में कुंवारी लड़कियां भी कजरी तीज का व्रत रखती हैं ताकि भविष्य में उन्हें एक अच्छा पति मिले वही सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए इस व्रत को करती है.
 
कजरी तीज की पूजा विधि हर जगह अलग-अलग तरीके से होती है आपके बड़े-बुजुर्ग जैसे बताएं आपको वैसे ही कजरी माता की पूजा करनी चाहिए.
 
जिन महिलाओं को मधुमेह की बीमारी होती है आजकल वे मीठे से बचने के लिए दूध से बने खोए का बारा बनकर भी पूजा करती हैं.