Hindustan Meri Jaan : वंशीधर शुक्ल , बगावती कविता और स्वतंत्रता के गीत

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 01-08-2022
 वंशीधर शुक्ल , बगावती कविता और स्वतंत्रता के गीत
वंशीधर शुक्ल , बगावती कविता और स्वतंत्रता के गीत

 

स्वतंत्रता की अनकही कहानी-2

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हिंदुस्तान की आजादी की लड़ाई सिर्फ एक लड़ाई भर ही नहीं थी, यह एक ऐसा आंदोलन भी था जिसने भारत को सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी बदला.इसलिए इस लड़ाई से सिर्फ वे लोग ही नहीं जुड़े जिनमें लड़ने का जज्बा था.इससे उस दौर के लेखक, कवि और कलाकार सब जुड़े.ऐसा ही एक नाम है वंशीधर शुक्ल जिसका जिक्र करना लोग अक्सर भूल जाते हैं. 

अगर आप हिंदी और उर्दू के असर वाले इलाके को देखें तो इसमें आजादी की लड़ाई के दौरान जो गीत गाए जाते थे उनमें हर दूसरा या तीसरा गीत वंशीधर शुक्ल ने ही लिखा था.उनके दो गीत तो अभी तक मशहूर हैं.एक है- उठो सोने वालों सवेरा हुआ है, गगन पे चमन का बसेरा हुआ है....दूसरा गीत है- उठ जाग मुसाफिर भोर भई, अब रैन कहां जो सोवत है....उस दौर में आजादी की अलख जगाने के लिए निकाली जाने वाली प्रभात फेरियों की कल्पना इन गीतों के बिना हो ही नहीं सकती.

उत्तर प्रदेश के लखीमपुर में जन्मे जन्में वंशीधर शुक्ल को कविता लिखने की प्रेरणा अपने पिता से मिली थी.उनके पिता छेदीलाल शुल्क वैसे तो एक किसान थे लेकिन आप-पास के इलाकों में अल्हैत की रूप में मशहूर थे.अल्हैत वे गायक होते हैं जो वीर रस की ओजपूर्ण शैली में आल्हा गाया करते हैं. 

बड़े होने पर वंशीधर शुक्ल जब पढ़ने के लिए कानपुर पहुंचे तो वहां उनकी मुलाकात गणेश शंकर विद्यार्थी से हुई, जिसके बाद उनका पूरा जीवन ही बदल गया.गांव गरीबों और लोगों की समस्याओं पर तो वे पहले ही लिख रहे थे, लेकिन इसके बाद उन्होंने पूरी तरह से राष्ट्रवादी लेखन में खुद को लगा दिया.अभी तक वे सिर्फ अवधी में ही लेखन करते थे लेकिन अब उन्होंने खड़ी बोली में भी लिखना शुरू कर दिया. 

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इसके बाद वे सिर्फ एक कवि ही नहीं थे, कांग्रेस के सक्रिय सदस्य भी बन चुके थे.वे उसके जलसों में शरीक होते और वहां कविता पाठ भी करते.कईं बार जेल भी गए। अलग-अलग मौकों पर उनके उनसे कईं गीत भी लिखवाए गए.

सुभाष चंद्र बोस ने जब आजाद हिंद फौज बनाई तो उन्हें एक ऐसे गीत की जरूरत थी जिस पर उनके सैनिक मार्च पास्ट कर सकें.बोस ने सिर्फ फौज ही नहीं बनाई थी उनकी इस फौज का एक बैंड भी था जिसका नेतृत्व कैप्टन राम सिंह करते थे.गीत की जरूरत पूरी की वंशीधर शुक्ल ने.उनका लिखा यह गीत आज भी अक्सर सुनाई दे जाता है- कदम कदम बढ़ाऐ जा, खुशी के गीत गाए जा, ये जिंदगी है कौम की तूं कौम पर लुटाए जा.यह ऐसा गीत था जिस पर मार्च पास्ट किया जा सकता था। इसकी धुन कैप्टन राम सिंह ने तैयार की थी. 

इसी तरह जब कांग्रेस ने चरखा आंदोलन चलाया तो इसके लिए गीत भी वंशीधर शुक्ल ने ही लिखा- मोरे चरखे की न टूटे रे तार, चरखवा चालू रहे. देश जब आजाद हुआ तो वे उत्तर प्रदेश में विधायक चुने गए.हालांकि वे कांग्रेस में थे लेकिन उनके बगावती तेवर कभी थमे नहीं.यहां तक कि उन्होंने अपनी कविताओं में नेहरू तक को ललकारा - ओ शासक नेहरू सावधान, पलटो नौकरशाही विधान, अन्यथा पलट देगा तुमको मजदूर, वीर, योद्धा किसान.उसी दौरान अवधी में महंगाई पर लिखी गई उनकी एक कविता भी काफी चर्चित रही- हमका चूस रही महंगाई. 

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वे मानते थे कि देश में लोकतंत्र है और इसमें सरकार चलाने का मौका नए-नए लोगों को मिलना चाहिए.इसके लिए उन्होंने एक कविता लिखी जो राजनीतिक जलसों में अक्सर दोहराई जाती थी- बदलिये बार-बार सरकार, संभव है उलटा-पलटी में मिले योग्य सरदार.आचार्य नरेंद्र देव का कहना था कि अगर यह कविता यूरोप के किसी देश में लिखी गई होती तो यह अकेली कविता ही कवि को विश्वप्रसिद्ध बनाने के लिए काफी थी. 

जब देश में आपातकाल लगा तो वंशीधर शुक्ल 70 साल की उम्र पार कर चुके थे लेकिन इस उम्र में उन्हें एक बार फिर संघर्ष करना पड़ा.उन्होंने एक किताब लिखी- नसबंदी बंद करो। जिसके बाद उन्हें जेल में डाल दिया गया. 


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आपातकाल के बाद 1980 में उनका देहांत हो गया और उनके गीत भले ही अभी भी कहीं कहीं सुनाई दे जाते हों लेकिन हम उन्हें पूरी तरह से भूल गए. 

जारी.....

( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )