Hindustan Meri Jaan : आजादी के लिए शहीद होने वाली बंगाल की पहली महिला

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] • 1 Years ago
आजादी के लिए शहीद होने वाली बंगाल की पहली महिला
आजादी के लिए शहीद होने वाली बंगाल की पहली महिला

 

harjinder हरजिंदर

वे क्रांतिकारियों की धरती बंगाल की पहली महिला शहीद थीं.उस दौर में जब लड़कियों और औरतों को आमतौर पर घरों से निकलने नहीं दिया जाता था प्रतियाला वड्डेडार ने सिर्फ क्रंतिकारी गतिविधियों में भाग ही नहीं लिया बल्कि एकबहुत बड़े क्रांतिकारी हमले का नेतृत्व भी किया.

वे चिटगांव के क्रातिकारी संगठन में उस समय शामिल हुई जबखुद इस संगठन के लोग मानते थे कि महिलाओं को ऐसे कामों से दूर रखा जाना चाहिए.लेकिन एक तो प्रतियाला वड्डेडार का उत्साह देखकर वे न करने की स्थिति में नहीं थे,

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दूसरे कुछ लोगोंका विचार था कि कुछ काम ऐसे होते हैं जिन्हें अगर महिलाएं करें तो उन पर किसी कोशक नहीं होगा.ये दोनों ही बातें बताती हैं कि उन्हें किसी ने संगठन मेंशामिल होने के लिए प्रेरित नहीं किया बल्कि खुद प्रतियाला ने संगठन के लोगों कोमजबूर किया कि वे उन्हें अपने कामों में शामिल करें.

संगठन के नेतृत्व तक मेंज्यादातर लोगों को लग रहा था कि महिलाएं आईं तो उनका अनुशासन गड़बड़ा जाएगा.चिटगांव म्युनिस्पिैलिटी के एक साधारण से क्लर्क के घर मेंपैदा हुई प्रतियाला के बचपन के बारे में हमें इतना ही पता है कि वे पढ़ने-लिखने मेंबहुत कुशाग्र थीं.

उनकी एक सहपाठी ने उस दौर के बारे में जो लिखा है वह बताता हैकि वहां उनके स्कूल में प्रतियाला लड़कियों के उस समूह में काफी सक्रिय थीं था जोरानी लक्ष्मीबाई से काफी प्रभावित था और उन्हीं की तरह कुछ कर दिखाना चाहता था.

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स्कूल की पढ़ाई के बाद वे इंटरमीडिएट करने के लिए ढाका पहंुची जहां उन्हें पहलीरैंकिंग मिली.इसके बाद डिग्री के लिए उन्होंने कोलकाता के ईडन काॅलेज मेंप्रवेश लिया. यहीं वे बंगाल की प्रसिद्ध क्रांतिकारी लीला नाग के संपर्क में आई औरउनके संगठन श्री संघ की सदस्य बन गईं.

नतीजे आए तो इस बार भी उनका नाम मेरिट लिस्टमें था। लेकिन तब तक उनके क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल होने की खबर कोलकाताविश्वविद्यालय को मिल चुकी थी इसलिए उनकी डिग्री रोक दी गई.

उस साल विश्वविद्यालयने दो लड़कियों की डिग्री रोकी थी. दूसरी थीं बीना दास जिनका नाम भी बंगाल केप्रसिद्ध क्रांतिकारियों में गिना जाता है. बाद में दोनों की यह डिग्री 80 साल बाद 2012 में अवार्ड कीगई जब वे दोनों इस दुनिया में नहीं थीं.

कुछ समय बाद वे चिटगांव लौट गईं और एक स्थानीय स्कूल मेंपढ़ाने लगीं. उस समय चिटगांव में प्रसिद्ध क्रांतिकारी सूर्य देव, जिन्हें कईं जगहसुरजो देब भी लिखा जाता है, वे नौजवानों को ब्रिटिश सरकार को उखाड़ फेंकनेके लिए संगठित कर रहे थे.

बाद में यही सूर्य देव  चटगांव  का शस्त्रागार लूटने वालेनौजवानों के नेता थे. यह ऐसी घटना थी जिसने पूरे देश में ब्रिटिश सरकार के कान खड़ेकर दिए थे.फिलहाल हम बात कर रहे हैं प्रतियाला वड्डेडार की जो काफीप्रयासों के बाद क्रांतिकारी संगठन में शामिल हुईं थीं.

पर्चे बांटने से लेकरक्रांतिकारियों को विस्फोटक और हथियार पहुंचाने तक के काम को वे बखूबी करने लगीथीं.इसी चटगांव में एक पहारतली यूरोपियन क्लब था जिसके बारेमें कहा जाता है कि वहां गेट पर ही एक बोर्ड पर लिखा था- इंडियंस ऐंड डाॅग्स आरनाॅट एलाउड. शहर के लोगों में आम धारणा थी कि यह अंग्रेजों की मौज मस्ती का अड्डाहै.

यह तय हुआ कि अगर इस क्लब पर हमला कर दिया जाए तो आम लोगों को एक अच्छा संदेशजाएगा.क्लब में अंग्रेज अफसरों के साथ उनकी पत्नियां भी आती थीं.वहां महिलाओं की संख्या काफी होने के कारण यह तय हुआ कि हमले का नेतृत्व कोई महिलाही करेगी.

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यह जिम्मेदारी मिली प्रतियाला को.इस टीम को जो हथियार मिले उनमें सबके लिए एक-एक साईनाइडकैप्सूल भी था. 24 सितंबर 1932 की रात पौने ग्यारह बजेजब क्लब की महफिल पूरे शबाब पर थी और अंदर करीब 40 लोग थे प्रतियाला केनेतृत्व में कुल सात लोग ने क्लब पर हल्ला बोला.

उन्होंने सबसे पहले क्लब की इमारतमें आग लगा दी और फिर गोलीबारी शुरू की.अंदर मौजूद अंग्रेज अधिकारियों के पास भी उनके रिवाल्वर थेसो वहां से भी जवाबी गोलीबारी शुरू हुई. इन्हीं में से एक गोली प्रतियाला को भीलगी.

आग और गोलीबारी की वजह से अंदर मौजूद लोगों में सुलीवान नाम की एक अंग्रेजमहिला की मौत हो गई और 11 लोग या तो बुरी तरह झुलस गए या गोलीबारी मेंघायल हो गए.गोलीबारी की आवाज सुनकर पुलिस भी वहां पहुंच गई औरक्रांतिकारियों को घेर लिया गया. हालांकि घाव ज्यादा बड़ा नहीं था लेकिन गोली लगनेकी वजह से  प्रतियाला का वहां से भाग पानासंभव नहीं था.

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लेकिन वे यह भी नहीं हती थीं के वे पकड़ में आए इसलिए उन्होंने साईनाइडकैप्सूल निगल लिया.प्रतियाला वड्डेडार की इस शहादत ने और उनके जीवन कीकहानियों ने बाद में बंगाल की बहुत से लड़कियों को स्वतंत्रता संग्राम में शामिलहोने के लिए प्रेरित किया.

उनकीं कहानी पर कईं फिल्में बनीं. चिटगांव अबबांग्लादेश में है जहां उनकी याद में प्रतियाला वड्डेदार महाविद्यालय बनाया गयाहै.   

जारी..... 

( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )