हरजिंर
अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने वाली वीरांगनाओं की बात होती है तो उत्तर भारत के लोगों को सिर्फ एक नाम याद आता है- झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का. लेकिन रानी लक्ष्मीबाई से बहुत पहले दक्षिण भारत की एक रानी ने ईस्ट इंडिया कंपनी से न सिर्फ कहीं भीषण लड़ाई लड़ी थी, बल्कि उसे मात भी दे दी थी. उनका नाम है शिवगंगा की रानी वेलु नच्चियार.
स्वतंत्रता की अनकही कहानी-13
वे रामानाथपुरम के राजा चेल्लमुथु सेतुपति की इकलौती संतान थीं. बचपन से ही उनकी शिक्षा पर खासा ध्यान दिया गया. उन्होंने दक्षिण भारतीय भाषाओं के अलावा अंग्रेजी, फ्रेंच और उर्दू भी सीखी. इसके साथ ही सभी तरह के हथियार चलाने और फौज का नेतृत्व करने का भी बाकायदा प्रशिक्षण लिया.
बड़े होने पर उनकी शादी हुई शिवगंगा के राजा मुथु वादुगंथा थेवर से, और वे शिवगंगा की रानी बन गईं. पड़ोसी राज्य आरकोट के नवाब मुहम्मद अली खान उस समय काफी संकट में चल रहे थे.
उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी से भारी कर्ज ले रखा था और कर्ज चुकाने के लिए उनके पास ज्यादा कुछ नहीं था. यह माना जा रहा था कि आरकोट अब कंपनी के पास गिरवी हो चुका है. आरकोट की सेना में उस समय तक कंपनी के ही सैनिक ही ज्यादा संख्या में थे.
संकट में फंसे नवाब ने शिवगंगा राज्य से पैसों की मांग की. मांग पूरी न होने पर कंपनी की फौज ने शिवगंगा पर हमला कर दिया. इस हमले में मुथु थेवर मारे गए और कंपनी की फौज का शिवगंगा पर कब्जा हो गया.
इसके बाद रानी वेलु नच्चियार के सामने पहली चुनौती अपनी जान बचाने की थी. उन्होंने अपना वेश बदला और कुछ विश्वासपात्र सैनिकों के साथ वहां से भाग निकली. वहां से भागने के बाद वे मैसूर के नवाब हैदर अली के पास पहंुची.
माना जा रहा था कि रानी वहां शरण मांगेगीं, लेकिन उन्होंने सैनिक मदद मांगी ताकि शिवगंगा को फिर से जीत सकें.शुरू में हैदर अली सैनिक मदद देने के लिए तैयार नहीं हुए, लेकिन बाद में रानी वेलु नच्चियार का जज्बा देख कर वे इसके लिए तैयार हो गए.
उन्होंने रानी को पांच हजार सैनिक, हथियार और गोला बारूद दिया. रानी जानती थीं कि कंपनी को हराने के लिए इतना ही काफी नहीं हैं. उन्होंने इसके लिए आस-पास के कुछ और राजाओं से भी मदद मांगी. जिन्होंने मदद की उनमें दलित लड़ाके थंडावरयन पिल्लई की फौज भी थी.
रानी वेलु नच्चियार को कंपनी से लंबी लड़ाई लड़ी पड़ी. इस लड़ाई में उनकी एक कमांडर कुयली का जिक्र भी यहां पर जरूरी है. रानी वेलु नच्चियार को यह खबर लग गई थी कि कंपनी ने अपना गोला-बारूद कहां पर जमा किया हुआ है.
यह सोचा गया कि अगर किसी तरह उसे नष्ट कर दिया जाए तो लड़ाई आसान हो जाएगी.नष्ट करने की यह जिम्मेदारी कुयली को दी गई. कुयली ने अपने शरीर पर बारूद बांधा और किसी तरह कंपनी के शस्त्रागार तक पंहुचने में कामयाब हो गईं.
वहां पहुंच कर उन्होंने अपने शरीर पर लगे बारूद में विस्फोट कर दिया. उनकी खुद की तो जान चली गई लेकिन कंपनी का सारा जखीरा भी नष्ट हो गया.
यह शायद दुनिया के इतिहास का पहला आत्मघाती हमला था.
और सचमुच इसके बाद लड़ाई आसान हो गई. शिवगंगा के किले पर रानी वेलु नच्चियार का कब्जा हो गया. एक बार जब वे वहां स्थापित हो गईं तो उन्होंने पूरे दस साल तक शिवगंगा पर राज किया. अंत में शिवगंगा की बागडोर अपनी बेटी वेल्लासी को सौंप कर इस दुनिया से हमेशा के लिए विदा हो गईं.
तमिल भाषा में उन्हें वीरामंगई की उपाधि दी जाती है, जिसका अर्थ होता है वीरांगना. 2008 में भारत सरकार ने रानी वेलु नच्चियार के सम्मान में एक डाक टिकट भी जारी किया था.
जारी.....
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )