Hindustan Meri Jaan : एक आंदोलन जिसने आजादी की लड़ाई के बहुत से हथियार दिए

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] • 1 Years ago
Hindustan Meri Jaan : एक आंदोलन जिसने आजादी की लड़ाई के बहुत से हथियार दिए
Hindustan Meri Jaan : एक आंदोलन जिसने आजादी की लड़ाई के बहुत से हथियार दिए

 

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जब हम भारत केे आजादी आंदोलन को देखते हमें उसमें साफ तौर पर दो धाराएं दिखाई देती हैं.एक तरफ महात्मा गांधी का आंदोलन है जो अहिंसा और सत्याग्रह से यह लड़ाई जीतना चाहता था.दूसरी तरफ भगत सिंह जैसी क्रांतिकारी थे जिन्हें जरूरत पड़ने पर हिंसा का इस्तेमाल करने से भी कोई परहेज नहीं था.लेकिन अगर हम इन दोनों ही विचारों की तह तक जाएं तो ये दोनों एक ही जगह से प्रेरणा लेती दिखाई देती हैं.

यह था पंजाब का कूका आंदोलन.महात्मा गांधी ने यह स्वीकार किया था उन्हें अपने कदमों की बहुत सारी प्रेरणाएं कूका आंदोलन से मिलीं थीं.दूसरी तरफ भगत सिंह ने 1928 में दिल्ली से छपने वाली मासिक पत्रिका महारथी में एक लेख लिखकर बताया था कि कूका आंदोलन से क्या सीखा जा सकता है.

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कूका सिख धर्म का एक समुदाय है जिसे नामधारी समुदाय कहा जाता है.वे गुरुवाणी का पाठ एक खास उच्चारण शैली में करते हैं, जिसकी तुलना कोयल की कूक से करते हुए उन्हें कूका कहा जाने लगा.आमतौर पर नामधारी समुदाय में बढ़ई जैसी निचली जातियों के लोग होते हैं.ये बहुत अच्छे लड़ाके भी होते हैं इसीलिए महाराजा रणजीत सिंह ने अपनी फौज में एक कूका रेजीमेंट भी बनाई थी.

इसी रेजीमेंट में एक राम सिंह थे.सैनिक कवायद के अलावा उनका बाकी समय धरम-करम में ही बीतता था.कुछ समय बाद ही उन्होंने फौज से इस्तीफा दे दिया और नामधारी समुदाय के प्रमुख बन गए और अपने समाज में उन्हें बाबा राम सिंह के नाम से जाना जाने लगा.

स्वतंत्रता की अनकही कहानी-4

लगभग इसी समय महाराजा रणजीत सिंह का निधन हो गया और कुछ ही समय में पूरा पंजाब ईस्ट इंडिया कंपनी के कब्जे में आ गया.1857के स्वतंत्रता संग्राम के बाद जब यह भारत पर सीधे ब्रिटिश सरकार का कब्जा हो गया तो अंग्रेजी राज के अत्याचार और बढ़ गए.

यही वह समय था जब गुरु राम सिंह को यह समझ में आ गया कि राजनीतिक आजादी के बिना देश का भला मुमकिन नहीं है.लेकिन अंग्रेज सरकार से सीधी टक्कर लेने के बजाए उन्होंने अंग्रेजों की संस्थाओं का बहिष्कार करने का फैसला किया.

सबसे पहला बहिष्कार विदेशी कपड़ों का हुआ.उनके सभी शिष्य सफेद खद्दर के कपड़े पहनने लगे.यह पहला मौका था जब देश में खादी का इस्तेमाल एक हथियार के रूप में हुआ.दूसरा बहिष्कार हुआ अंग्रेजों की डाक व्यवस्था का.बाबा राम सिंह ने नामधारियों की अपनी एक डाक व्यवस्था शुरू करवाई.

प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी भाई परमानंद ने लिखा है कि नामधारियों की यह डाक व्यवस्था अंग्रेजों की डाक व्यवस्था से ज्यादा कुशल थी.

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अंग्रेजी अदालतों के बहिष्कार का उनका आह्वान भी काफी सफल रहा.उन्होंने पंचायत व्यवस्था को बहाल किया और लोगों के झगड़े अब वहां सुलझाए जाने लगे.उन्होंने अपनी एक कर प्रणाली भी शुरू की। पूरे देश को 28प्रदेशों में बांटा गया.वहां गवर्नर नियुक्त किए.सभी नामधारी सिख अपनी आमदनी का दसवां हिस्सा उनके पास जमा करवाने लगे.


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इन सब चीजों से अंग्रेजों के कान खड़े हुए और उन्होंने नामधारी संस्थाओं के खिलाफ सख्ती बरतनी शुरू कर दी.ऐसे में बाबा राम सिंह ने सरकारी हुक्म न मानने का आदेश दिया.विरोध का यही तरीका था जो बाद में जाकर सिविल नाफरमानी या सविनय अवज्ञा कहलाया.

अब अंग्रेज किसी ऐसे मौके की तलाश में थे जिससे वे नामधारी समुदाय पर पूरी तरह टूट पड़ें.1872में उन्हें यह मौका मिल भी गया.अंग्रेजों से लगातार लड़ते हुए समुदाय में कुछ गरम मिजाज के लोग तैयार हो गए थे जो सीधी टक्कर लेने की बेचैनी दिखाते रहते थे.गुरु राम सिंह इसके पक्ष में नहीं थे इसलिए वे शांत कराने की कोशिश करते और सब्र से काम लेने की हिदायत देते.लेकिन मलेर कोटला रियासत में एक स्थानीय झगड़े के बाद कुछ लोगों के सब्र का बांध अचानक टूट गया और उन्होंने रियासत पर कब्जा करने की कोशिश की.सरकार ने इसे कूका विद्रोह का नाम दिया और पूरे पंजाब में नामधारियों को पूरी निर्दयता से कुलचने की कोशिशें शुरू कर दीं। कईं लोगों को गोलियों से भून दिया गया और बहुत से लोगों को फांसी दे दी गई.

बाबा राम सिंह को गिरफ्तार करके बर्मा भेजा दिया गया.जहां जेल में ही बाद में उनका निधन हो गया.कूका आंदोलन को किसी तरह कुचल दिया गया लेकिन इस आंदोलन ने तरीके देश को दिए वे आगे जाकर स्वतंत्रता सेनानियों का सबसे बड़ा संबल बने.

जारी.....

( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )