Hindustan Meri Jaan : जहां सबसे पहले इस्तेमाल हुआ भूख हड़ताल का हथियार

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 02-08-2022
Hindustan Meri Jaan : जहां सबसे पहले इस्तेमाल हुआ भूख हड़ताल का हथियार
Hindustan Meri Jaan : जहां सबसे पहले इस्तेमाल हुआ भूख हड़ताल का हथियार

 

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बंगाल की खाड़ी में चारो ओर समुद्र से घिरे अंडमान द्वीप की सेलुलर जेल भारत के स्वतंत्रता संग्राम का सबसे महत्वपूर्ण स्मारक रही है.यह वह जगह थी जहंा आजादी की लड़ाई लड़ने वालों को ले जाकर बंद कर दिया जाता था ताकि वे एक ऐसी जगह जाकर रहें जहां से भाग निकलने का कोई रास्ता न रह जाए.अंडमान भेजे जाने को काले पानी की सजा कहा जाता था.

यह एक ऐसी जगह थी जहां कैद किए गए लोग पूरे समाज से दूर सिर्फ मजदूरी कर सकते थे.इसके लिए उन पर तरह-तरह के अत्याचार होते थे.विरोध करने पर अत्याचार बढ़ जाते थे.उन्हें ठीक से भोजन भी नहीं दिया जाता था.इन हालात में कईं कैदियों ने वहां आत्महत्या भी की.

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कहते हैं टापू के पोर्ट ब्लेयर इलाके में बनी इसी जेल में 1913 दो कैदियों ने भूख हड़ताल शुरू कर दी.इनके नाम थे गोपाल मुखर्जी और लद्दाराम.भूख हड़ताल शब्द उस समय तक नहीं बना था.इन लोगों ने बस खाना खाने से मना कर दिया.शुरू में जेल अधिकारियों को लगा कि यह सब कुछ दिन से ज्यादा नहीं चलेगा.

लेकिन जब यह हड़ताल एक महीने से ज्यादा चल गई तो अधिकारियों के कान खड़े हुए.तब तक बाकी कैदियों को भी उन दोनों के संकल्प की गंभीरता का अहसास हो गया था.उन्होंने मजदूरी करना बंद कर दिया.वे भी उन दोनों के समर्थन में बारी बारी से भूख हड़ताल करने लगे.

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जल्द ही इस भूख हड़ताल की खबर भारत की मुख्यभूमि के अंग्रेजी शासकों तक भी पहंुची और हर तरफ हलचल मच गई.इसी के साथ सेलुलर जेल के खराब हालात और कैदियों से अमानवीय व्यवहार की जानकारी भी हर जगह पंहुच गई थी.अंग्रेज सरकार को मजबूरन वहां एक मिशन भेजकर हालात में बदलाव और सुधार की कुछ घोषणाएं करनी पड़ीं.गोपाल मुखर्जी और लद्दाराम की यह भूख हड़ताल 72दिन तक चली थी.

हालांकि जो सुधार हुए वे बहुत बड़े नहीं थे, लेकिन दोनों की कोशिश ने बाकी कैदियों को एक रास्ता दिखा दिया था.अंडमान की जेल में जहां कैदियों के पास कोई विकल्प नहीं था दोनों ने भूख हड़ताल करके उन्हें एक रास्ता दिखा दिया था.उस समय किसे पता था कि भूख हड़ताल का यह तरीका बाद में भारत की आजादी की लड़ाई का भी एक बड़ा हथियार बन जाएगा.

कुछ साल बाद रामरक्खा नाम का एक कैदी इस बाद पर अड़ गया कि वह जेल में जनेउ पहन कर रहेगा.जेल प्रशासन ने जब इसकी इजाजत नहीं दी तो वह भूख हड़ताल पर बैठ गया.कुछ ही दिन बाद उसने प्राण त्याग दिए.जब यह खबर फेली तो अंग्रेज सरकार काफी परेशानी में पड़ गई.विरोध कम करने के लिए उसे कुछ कैदियों को भी छोड़ना पड़ा.अंडमान में जिन राजनैतिक कैदियों को भेजा गया था उनमें भगत सिंह के एक साथी महावीर सिंह भी थे.वे सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी के सक्रिय सदस्य थे.जेल के हालात देखकर उन्होंने भूख हड़ताल शुरू कर दी.जेल प्रशासन रामरक्खा वाला इतिहास नहीं दोहराना चाहता था इसलिए तय हुआ कि उन्हें जबरदस्ती भोजन कराया जाएगा.

इसके लिए उन्हें हर तरफ से बांध-पकड़कर दूध पिलाने की कोशिश हुई.महावीर सिंह ने जिस तरह का प्रतिरोध किया उसमें दूध उनके पेट में जाने के बजाए फेफड़ों में पहंुच गया जिससे उनकी मृत्यु हो गई.उनके पार्थिव शरीर को बहुत बड़े पत्थर से बांध कर समुद्र में डुबो दिया गया.

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ऐसे अत्याचारों के बाद भी अंडमान की जेल में भूख हड़ताल खत्म नहीं हुईं.जैसे-जैसे वहां राजनैतिक कैदियों की संख्या बढ़ी यह समस्या और बढ़ती गई.बाद में जुलाई 1937में जब कुछ कैदियों ने भूख हड़ताल शुरू की तो बाकी कैदी भी भूख हड़ताल करने वालों में शामिल होते गए.

धीरे-धीरे इनकी संख्या 250से भी ज्यादा हो गई.यह मामला इतना तूल पकड़ गया कि दिल्ली की सेंट्रल असेंबली में भी इस पर लंबी चर्चा हुई.यह भूख हड़ताल 56दिन तक चली और ब्रिटिश सरकार के लिए बहुत बड़ी परेशानी का कारण बनीं.

दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान जापान ने 1942में अंडमान पर कब्जा कर लिया.तब अंग्रेज सरकार को समझ में आया कि ऐसी जेल के खतरे और भी हैं.इसी के बाद इस जेल को बंद कर दिया गया और सभी कैदियों को घर भेज दिया गया.

जारी.....

( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )