डॉ अभिषेक कुमार सिंह / पटना
आज पूरा देश जहां एक ओर अपनी आज़ादी के अमृत महोत्सव की खुशियां मन रहा है, वही एक ओर हम अपने ही देश के उन सेनानियों को विस्मृत करते जा रहे हैं, जिन्होंने भारत को आज़ादी दिलाने में अहम भूमिका निभाई. ऐसे ही कुछ नामों में शुमार हैं मग़फूर अहमद अजाज़ी.
मग़फूर अहमद अजाज़ी बिहार के एक राजनीतिक कार्यकर्ता थे, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में प्रमुख भूमिका अदा की थी.
अजाज़ी का जन्म 3 मार्च, 1900 को बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के सकरा ब्लॉक के दिहुली गांव में हुआ था. उनके पिता हाफिजुद्दीन हुसैन और दादा इमामबख्श जमींदार थे और उनकी माता का नाम महफूजुन्निसा था.
वह हजरत फजले रहमान गंज मुरादाबादी के खलीफ एजाज हुसैन बदायुनी के शिष्य बन गए और उन्होंने 'अजाजी' की उपाधि धारण की. उन्होंने अपनी देशभक्ति अपने पिता हाफिजुद्दीन से मिली थी, जिन्होंने यूरोपीय नील बागान मालिकों के खिलाफ किसानों को संगठित किया था.
अजाज़ी के बचपन में ही उनकी मां की मृत्यु हो गई, जबकि उनके पिता का देहांत लखनऊ में इलाज के दौरान हो गया. उन दिनों अज़ाज़ी स्कूल में थे.
अजाज़ी की प्रारंभिक और धार्मिक शिक्षा मदरसा-ए-इमदादिया, दरभंगा से हुई और फिर दरभंगा के नॉर्थ ब्रुक जिला स्कूल में दाखिला लिया. रॉलेट एक्ट के विरोध करने पर उन्हें स्कूल से निष्काषित कर दिया गया.
अजाज़ी ने फिर पूसा हाई स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की. अज़ाज़ी 1921में असहयोग का हिस्सा बन कर महात्मा गांधी का अनुसरण करने के लिए बीएन कॉलेज पटना से अपनी पढाई छोड़ दी. अज़ीज़ी के द्वारा 'मुठिया' अभियान की शुरुआत स्वतंत्रता संग्राम के लिए धन को एकत्रित करना था. स्वतंत्रता संग्राम के लिए हर भोजन को तैयार करने से पहले एक मुट्ठी अनाज निकाल कर एकत्रित करना ही 'मुठिया' का मतलब था.
अजाज़ी ने मुजफ्फरपुर की कांग्रेस और खिलाफत समितियों के लिए धन जुटाने के लिए एक सात सूत्री कार्यक्रम शुरू किया, जिससे जिला कांग्रेस के लिए जमीन खरीदी गई. इस ज़मीन को अब तिलक मैदान, मुजफ्फरपुर के नाम से जाना जाता है.
अजाज़ी ने एक जनसभा में अपने पैतृक गांव दिहुली में अपने पश्चिमी कपड़ों का अलाव जलाया. अक्टूबर, 1921के अंत तक, मुजफ्फरपुर जिला असहयोग आंदोलन का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया था.
औपनिवेशिक अधिकारियों ने आंदोलन को दबाने का फैसला किया. इसके लिए पुलिस ने दाउदी के घर पर छापा मारा और अजाज़ी, दाउदी और अब्दुल वदूद जैसे बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया और सलाखों के पीछे डाल दिया गया.
उन्होंने शौकत अली, बेगम मोहम्मद अली, अब्दुल मजीद दरियाबादी, आजाद सुभानी, अबुल मुहसिन मुहम्मद सज्जाद और अन्य के साथ ऑल पार्टीज कॉन्फ्रेंस और ऑल मुस्लिम पार्टीज कॉन्फ्रेंस में नेहरू रिपोर्ट पर सेंट्रल खिलाफत कमेटी का प्रतिनिधित्व किया. मोहम्मद अली जौहर के निर्देश पर उन्होंने खिलाफत समिति, कलकत्ता का कार्यभार संभाला.
उन्होंने सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में चल रहे एक विरोध मार्च में भाग लिया जिस वजह से नेताजी बोस के साथ उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. पटना में साइमन कमीशन के विरुद्ध हो रहे प्रदर्शनों का नेतृत्व अज़ीज़ी ने 1928में किया था.
1941में वे व्यक्तिगत सविनय अवज्ञा आंदोलन में शामिल हो गए और लोगों को लामबंद करना शुरू कर दिया. मुजफ्फरपुर में एक ऐसी लामबंदी के दौरान जब वह शांतिपूर्ण विरोध मार्च का नेतृत्व कर रहे थे तब स्थानीय पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया जिस वजह अजाज़ी और उनके अनुयायियों को गंभीर चोटें आईं.
8अगस्त, 1942को बॉम्बे में आयोजित कांग्रेस कार्यसमिति के अधिवेशन में उन्होंने ब्रिटिश सरकार से पूर्ण स्वतंत्रता की मांग करने वाले प्रस्ताव को पारित करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
भारत सरकार ने दिल्ली के लाल किला के आजादी के दीवाने संग्रहालय में उनकी तस्वीर को सजाया है और कैप्शन दिया है "जिन्ना के द्विराष्ट्रीय सिद्धांत का विरोध किया और इसका मुकाबला करने के लिए अखिल भारतीय जमहूर मुस्लिम लीग की स्थापना की".
मग़फूर अहमद अजाज़ी 1960में मुजफ्फरपुर में आयोजित उर्दू सम्मेलन के अध्यक्ष थे, जिसमें पहली बार एक प्रस्ताव पारित किया गया था जिसमें बिहार में उर्दू को आधिकारिक भाषा के रूप में स्वीकार करने की मांग की गई थी.
अजाज़ी की मृत्यु 26 सितंबर, 1966 को मुजफ्फरपुर में उनके अपने आवास अजाज़ी हाउस में हुआ था. उनके नमाज-ए-जनाजा में हजारों लोग शामिल हुए, जो खुद अजाजी द्वारा किए गए दान और एकत्र किए गए धन से खरीदी गई जमीन ऐतिहासिक तिलक मैदान में अदा की गई थी. यह शहर के इतिहास में एक अंतिम संस्कार के जुलूस के लिए अब तक का सबसे बड़ा जमावड़ा था जिसमे शहर के सभी वर्ग, जाति और धर्मों के लोगों ने भाग लिया. उन्हें काजी मोहम्मदपुर क़ब्रिस्तान में दफनाया गया था.