भाईचारे की मिसाल, दशहरे पर रावण का पुतला बनाते हैं मोहम्मद इकबाल

Story by  संदेश तिवारी | Published by  [email protected] | Date 10-10-2021
भाईचारे की मिसाल
भाईचारे की मिसाल

 

संदेश तिवारी/ कानपुर

कहते हैं मानवता का कोई धर्म नहीं होता. जरूरत पड़ने पर जो काम आ जाए वही मिसाल बनाता है. मोहम्मद इकबाल और उनका परिवार इसी की शानदार मिसाल हैं. हिंदू-मुस्लिम भाईचारे की अवधारणा को मूर्त रूप देने में इकबाल के बाप-दादा भी खूब सराहनीय और प्रशंसनीय काम करते रहे हैं.

क्राफ्ट के हुनर के ज़रिए इकबाल आज भी विजयादशमी के लिए रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले बनाते हैं. उनके दादा ने यह काम 65 साल पहले महज 200 रुपए में शुरू किया था. उस दौरान रेल बाजार दशहरा रामलीला को उनकी जरूरत हुई और आज तक तीसरी पीढ़ी भी जरूरत बनी हुई है.

कानपुर की रेल बाजार की दशहरा रामलीला में आज भी इन्हें रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले बनाने का मौका मिला हुआ है. अब इनके हुनर से इन्हें 15 हज़ार रुपए प्रति पुतला मिल रहा है. इकबाल कहते है, “यहां महज पैसा ही सब नहीं है हिंदू मुस्लिम की एकता की मिसाल है यहां का दशहरा.” कमेटी के लोग भी भाईचारे को हर वर्ष सैल्यूट करते है

15 अक्टूबर, दशहरे को लेकर शहर में जगह-जगह रामलीला का मंचन शुरू हो गया है. पिछले 65 साल से मनाई जा रही शहर के रेलबाजार रामलीला की तैयारी लगभग पूरी हो चुकी है. यहां की रामलीला की खास बात यह है कि यहां पर रावण, मेघनाथ और कुम्भकरण का पुतला एक मुस्लिम परिवार ही बनाता है. रामलीला कमेटी के पदाधिकारियों के मुताबिक यहां जब रामलीला की शुरुआत हुई तब से इसी मुस्लिम परिवार को यह काम सौंपा जा रहा है. आज इस परिवार की तीसरी पीढ़ी ये काम करती आ रही है.

मोहम्मद इकबाल (42) कहते हैं, '''मेरे बाबा क्राफ्ट का ही काम करते थे, जो कपडे़ की गुड़िया और जानवर बनाते थे. साथ ही कागज के भी कई सामान बनाकर बाजार में बेचते थे. उन्होंने अपने इस हुनर को मेरे अब्बू मो. सलीम को सिखाया. जिसे हमने और बहन ने भी सीखा. घर में सभी क्राफ्ट का काम करते है.''

वह बताते हैं, ''जब रेलबाजार में रामलीला का मंचन की शुरुआत हुई तब उस समय तत्कालीन कमेटी के सामने पुतले बनाने की समस्या खड़ी हो गई. उसी समय मेरे बाबा को ये काम करने को मिला. पहले तो कुछ लोग तैयार नहीं थे मगर जब कोई कारीगर नहीं मिला तब इनको 2 दिन में 10 फीट का रावण बनाने को बोला गया.''

इकबाल कहते हैं,'बाबा और अब्बू ने मिलकर पुतला तैयार कर दिया था, तब उनको इसके लिए 200 रुपए मिले थे. इसके बाद से यहां होने वाले रामलीला के दौरान यह काम इनको ही सौंप दिया गया, और रामलीला आने के 2 महीने पहले ही इनको रावण, मेघनाथ और कुम्भकरण के पुतले को बनाने का ऑर्डर दे दिया जाता था.''

हालांकि, 'समय के साथ रावण, मेघनाथ और कुम्भकरण के पुतले की लम्बाई बढ़ती चली गई. फिलहाल इस समय यहां के लिए 50 फीट का रावण, और 40-40 फीट के मेघनाथ और कुम्भकरण का पुतला बनाया जाता है.

वह कहते हैं, ''इस बार 10 X 50 फीट की एक लंका भी बनाई जा रही है.”

पिछले 4 महीने से इकबाल इस काम के लिए अपने परिवार सहित लगे हुए हैं. 50 फीट के एक रावण बनाने करीब 25 हजार रुपए का खर्च आता है, जबकि मेघनाथ और कुम्भकरण के पुतले को बनाने में 20- 20 हजार रुपए का खर्च आता है. जबकि लंका बनाने में करीब 15 हजार रुपए का खर्च आता है.

4 महीने पहले से यह काम शुरू हो जाता है, पहले सारा कच्चा माल इकट्ठा करते है. फिर ऑर्डर के मुताबिक इनका ढांचा तैयार किया जाता है. इसके बाद इन पर रंग-बिरंगे कागज लगाए जाते हैं, तब जाकर यह पुतला तैयार होता है.मो. इकबाल कहते हैं, ''हमें रेल बाजार रामलीला के अलावा अब कई और जगहों के रामलीला के लिए रावण, मेघनाथ और कुम्भकरण के पुतला बनाने का ऑर्डर मिला हुआ है. इस समय ये 7 रावण करीब 30 से 40 फिट के, 5 मेघनाथ और 5 कुम्भकरण के ऑर्डर भी मिले हुए हैं. जिनको ये 1-2 दिन में तैयार कर उन रामलीला कमेटियों को सौंप देंगे.”
वहीं रेल बाजार रामलीला कमेटी के महामंत्री समीर अग्रवाल कहते हैं, ''रामलीला में रावण दहन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है तो हमारे रामलीला के लिए पुतलो को तैयार करने वाले मो. इकबाल इस इलाके के सौहार्द और भाईचारे के प्रतीक हैं.”