इजिप्ट 4 : वक्त भी जिससे खौफ खाता है

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 23-01-2023
इजिप्ट 4 : वक्त भी जिससे खौफ खाता है
इजिप्ट 4 : वक्त भी जिससे खौफ खाता है

 

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कदीमी दौर की सभ्यताओं की थाह पाने के लिए हमें या तो खुदाई करनी पड़ती है या फिर उस वक्त के खंडहरों में जाना पड़ता है.तब जाकर कहीं उन सभ्यताओं के कुछ अवशेष हाथ लगते हैं, जिनसे हम अंदाज लगाते हैं.लेकिन मिस्र की प्राचीन सभ्यता को जानने के लिए न तो कहीं खुदाई करने की जरूरत होती है और न ही किसी खंडहर में उतरने की.

मिस्र के प्राचीन दौर की निशानियां आज भी बुलंद हैं.वक्त भी उनका बाल बांका नहीं कर सका.मिस्र में यह कहावत है कि दुनिया वक्त से डरती है लेकिन वक्त खुद गीज़ा के पिरैमिडों से डरता है.साढ़े चार हजार साल से भी पहले बने ये पिरैमिड दुनिया का पहले नंबर का अजूबा तो हैं ही, इनकी बनावट आज भी वैज्ञानिकों को दांतों तले उंगली दबाने के लिए मजबूर कर देती है.तमाम रिसर्च हुए,

कईं थ्योरी दी गईं, कईं किताबें लिखी गईं, फिल्में बनाई गईं पर अभी तक कोई ठीक से नहीं जान सका कि पठारी जमीन पर 481 फुट तक ऊंचे ये पिरैमिड आखिर बनाए कैसे गए? यहां यह बात भी याद रखने की है कि इसके बाद दुनिया में कहीं भी इतनी विशाल रचना कोई भी इंसानी सभ्यता अगले 3800 साल तक नहीं बना सकी.

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जिन पत्थरों से इन पिरैमिड को बनाया गया है उनमें से ज्यादातर का वजन ढाई से 15 टन तक है.जिस इलाके में पिरैमिड बने हैं वहां ये पत्थर नहीं पाए जाते.जाहिर है कि उन्हें दूर से लाया गया होगा.शायद नावों पर ढोकर, नील नदी के जरिये.जिसका अर्थ है कि उस समय तक विकसित किस्म की नावें उन्होंने बना ली थीं.

इन पिरैमिड में ऐसे एक दो नहीं 23 लाख से ज्यादा पत्थर लगाए गए हैं.अलग-अलग आकार के इन पत्थरों को जोड़कर एक निश्चित आकार देना उस युग की स्थापत्य इंजीनियरिंग के बारे में भी बहुत कुछ बताता है.
लेकिन इन पिरैमिड में सिर्फ विज्ञान और इंजीनियरिंग ही नहीं है.इनमें उस दौर के मिथक भी हैं, परंपराएं भी और वह जादू टोना भी जो उस युग के जीवन का एक अभिन्न हिस्सा था. 

इन पिरैमिड को देखकर इतिहासकार एक और नतीजे पर पहंुचते हैं.इस तरह की रचना कोई रातो-रात विकसित हुई सभ्यता नहीं बना सकती.विकास की इस ऊंचाई को हासिल करना तभी तक संभव था जब सदियों तक लगातार खुशहाली रही हो और उसके साथ ही शांति का एक लंबा दौर भी चला हो.यानी उस समाज को कोई बहुत बड़ी लड़ाई भी न लड़नी पड़ी हो.

यानी यह तभी हो सकता था जब वहां असीरियाई लोग नहीं पहंुचे थे, जब ईरानियों ने वहां हमला नहीं बोला था, जब ग्रीक साम्राज्य ने वहां अपनी पताका नहीं फहराई थी, या जब रोमन लोगों ने वहां कब्जा नहीं जमाया था.प्राचीन मिस्र का इतिहास युद्ध में कोई विजय हासिल करने का इतिहास नहीं बल्कि निर्माण और इनोवेशन का इतिहास है.

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इतिहास में इस दौर को तलाशते हुए हम पहंुच जाते हैं जिसे पुरानी राजसत्ता कहा जाता है.जो इसके पहले के छोटे-छोटे कबीलों से तब उभरी थी जब नारमेर राजवंश ने उत्तरी और दक्षिणी मिस्र को मिलाकर एक साम्राज्य की स्थापना की.इसी के बाद मेमफिस और एबीडाॅस नाम के दो बड़े शहर वहां उभरे.इसके बाद दो और राजवंश आए.इस तीसरे राजवंश के दौर को ही हम पिरैमिड निर्माण का युग मानते हैं.

पिरैमिड का निर्माण तीसरे राजवंश के जिस राजा के कार्यकाल में शुरू हुआ उसका नाम था जोसर.इसके पहले तक राजाओं को एक साधारण से चैकोर मकबरे में दफ्न कर दिया जाता था.जोसर को पता था कि वह मौत को नहीं टाल सकता लेकिन वह अपने लिए एक ऐसा मकबरा बनाना चाहता था जिससे वह मरकर भी अमर रहे. दुनिया की यह सबसे विशाल रचना उसकी इसी चाहत का नतीजा थी.इसके साथ ही उसने सांस्कृतिक उत्थान की ऐसी नींव भी रख दी जिसे उसके राजवंश के राजाओं ने ही नहीं उसके बाद आने वाले राजवंशों ने भी जारी रखा.

पिरैमिड सिर्फ एक रचना भर नहीं हैं उसके अंदर हमें उस दौर का सारा इतिहास भी मिल जाता है.इस रचना के बारे में एक बात कही जाती है कि मिस्र ने ये पिरैमिड नहीं बनाए, बल्कि इन पिरैमिड ने मिस्र को मिस्र बनाया। ये पिरैमिड उसकी शान भी हैं और उसकी पहचान भी. 

जारी……

( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं @herhj)