इस्लामिक मुल्क होना इस्लाम नहीं, ईमान का होना ही इस्लाम है: मौलाना साद

Story by  यूनुस अल्वी | Published by  [email protected] | Date 14-02-2023
इस्लामिक मुल्क होना, इस्लाम नहीं, ईमान का होना ही इस्लाम है: मौलाना साद
इस्लामिक मुल्क होना, इस्लाम नहीं, ईमान का होना ही इस्लाम है: मौलाना साद

 

यूनुस अल्वी /नूंह ( हरियाणा )

देश में अमन चैन और भाईचारा कायम रखने की दुआ के साथ यहां तीन दिवसीय तब्लीगी जलसा समाप्त हो गया. इसके समापन पर तब्लीगी जमात के अंतरराष्ट्रीय अमीर (अध्यक्ष) मौलाना मुहम्मद साद ने मुसलमानों का आहवान करते हुए कहा,‘‘इस्लामिक मुल्क होना, इस्लाम नहीं, ईमान का होना ही इस्लाम है.’’ उन्हांेने बताया कि इस आहवान को आगे बढ़ाने के लिए तब्लीग जमात के करीब 40 हजार सदस्यों को देश के विभिन्न हिस्सों में भेजा गया है. इसके अलावा इसी प्रचार के साथ 125 जमातों के करीब 1500 लोग विदेशों में भी जल्द भेजे जाएंगे.

जलसे के आखरी दिन सोमवार को लोगों का जनसैलाब उमड़ पड़ा. करीब दो किलोमीटर की परिधि में लोग हजरत मुहम्मद साद के विचार सुनने और दुआ में शामिल होने के लिए हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, उत्तर प्रदेश से जमा हुए. इस दौरान बड़ी संख्या में लोगों ने हजरत साद के हाथ पर बैत कर उनके अनुयायी बनने का प्रण लिया.
 
लोगों को संबोधित करते हुए हजरत साद ने कहा कि मुझे मेवातियों से शिकायत है. मेवातियों ने अपनी औरतों को पर्दा करना नहीं सिखाया. उन्होंने कहा औरतों को पर्दा करना और घरों में इस्लाम सिखाइए. उन्होंने कहा जो इंसान हलाल रोजी कमाना हो, वो मालदार बनने की नियत करे. कल कयामत के दिन अल्लाह पाक उनसे नाराज होंगे. उन्होंने कहा कि इस्लामिक मुल्क होना, इस्लाम नहीं है, बल्कि ईमान का होना ही इस्लाम है
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तब्लीग जमातों को नसीहत

भारत के अलग-अलग राज्यों में 40 दिन के लिए  1500 जमातों के करीब 40 हजार लोगों को इस्लाम सीखने के लिए रवाना करते वक्त मौलाना मोहम्मद साद ने उन्हें कई नसीहतें दी. उन्होंने कहा यह जमाती हजारों लोगों की भलाई के लिए मुल्क के अलग-अलग कोने में जाएंगी. जब जमातें गांव, बस्तियों में जाएंगी तो अपनी नजरों को नीचे रखेगी. लोगों को भलाई की तरफ बुलाएंगीं. तालीम का ध्यान रखेंगी.
 
मौलाना साद ने कहा इस्लाम जानना इस्लाम नहीं है, बल्कि अमल करना इस्लाम है. तकदीर पर ईमान लाना जरूरी है. ईमान केवल दिल में रखने की चीज नहीं है. जाहिर करना भी है. मुसलमान की पहचान नबी मुहम्मद के हुलिया से होती है. अगर मुसलमान जकात देने वाला बन जाए तो दुनिया से गरीबी खत्म हो जाएगी. हर आलिम, आलिम बन जाए तो दुनिया से जहालत खत्म हो जाएगी. 
 
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उन्होंने कहा,अभी तक इस्लाम किताब में है, इसे जिंदगी में लाओ. किताब का अमल इस्लाम नहीं, बल्कि जिंदगी को इस्लाम के तरीके से गुजारना इस्लाम है. मेरी कौम, मेरा दीन, मेरी गौत, मेरा गांव, मेरा मोहल्ला का नारा देना इकराम नहीं है, बल्कि जो तुम्हे सताए उसके साथ इज्जत से पेश आने का नाम इस्लाम है.
 
सताने वालों पर एहसान करो, चूंकि हमारे नबी मुहम्मद साहब भी सताने वालों पर एहसान किया करते थे. जिस नबी की बात पर हम अल्लाह, जन्नत, दोजख, पुल सिरात, मेराज व दीन पर यकीन व ईमान रखते हो, उस नबी की सुन्नतों पर अमल क्यों नहीं करते? 
 
उन्होंने कहा,हमेशा हक का साथ दो. झूठ कभी मत बोलो. इस्लाम कबूल करने के लिए किसी को मजबूर नहीं करता. न ही इस्लाम तलवार से फैला है.उन्होंने कहा अगर सच्चे मुसलमान बनना चाहते हैं तो पैगंबर के सहाबाओं वाला काम करना होगा.