तारीख बन गया अल्लाह बख्श का रावण और भरत का किरदार

Story by  संदेश तिवारी | Published by  [email protected] | Date 11-10-2021
अल्लाह बख्श को जुनून है रामलीला
अल्लाह बख्श को जुनून है रामलीला

 

संदेश तिवारी / इटावा

मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना. ये लाइन इटावा जिला के गांव चकवा बुजुर्ग निवासी अल्लाह बख्श पर हुबहू रहती है. हिंदू-मुस्लिम साझा संस्कृति की अल्लाह बख्श के पास रहमत और रहमान दोनों है. जिला इटावा की दशहरा रामलीला में अपने अभिनय से मशहूरियत भी खूब पाई है. बीते 30 सालों से रामलीलाओं में गंगा-जमुनी संस्कृति की रामायण के भरत और रावण के किरदार से लोगों की वाहवाही बटोर रहे हैं.

इटावा की बसरेहर रामलीला अल्लाह बख्श की खास है. यहां नजदीक में ही अल्लाह बख्श का गांव भी है. यहां उनके भरत और रावण के शानदार अभिनय की आवाम दीवानी है. अल्लाह बख्श के लिए दोनों पात्र उनके दमदार अभिनय से कई सालों से यहां रिजर्व रहे हैं. भरत और रावण के किरदार में हर बार जान फूंकने के लिए प्रयासरत रहते हैं.  अल्लाह बख्श के मुताबिक अपने अभिनय में निरंतर बेहतरी लाने के लिए रामायण का पाठ उनका रियाज में बन गया है. आइए जानते हैं हिंदू-मुस्लिम भाईचारा के प्रतीक अल्लाह बख्श का अभी तक का सफर.

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रावण के किरदार में अल्लाह बख्श

रामलीला में मुस्लिम किरदार बढ़-चढ़ कर भाग लेते हैं. वे अपने अभिनय से सबके दिलों में गहरी छाप तो छोड़ते ही हैं. साथ ही वे रामलीला में अपने अभिनय के लिए दशहरा का इंतजार भी करते हैं. इटावा जिले के बसरेहर कस्बे में अर्से से आयोजित हो रही रामलीला में अल्लाह बख्श नामक शख्स अपने जीवंत अभियन के बल पर हर किसी पर अपनी छाप छोड़ रहा है. 55साल के अल्लाह बख्स के हृदय में श्रीराम का विशेष स्थान है. वह रामलीला के मंचों पर ढाई दशक से भरत तथा रावण के किरदार में अपनी जीवंत अभिनय कला से श्रद्धालुओं को मुग्ध करने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं. रमजान के दौरान नियम-संयम से रहने से उनके अंदर राम-रहीम के प्रति श्रद्धाभाव स्पष्ट नजर आता है.

जीवंत भरत की करुणा

बसरेहर क्षेत्र के ग्राम चकवा बुजुर्ग के रहने वाले अल्लाह बख्श बचपन से गांव के हनुमान राम दरबार मंदिर में हाजिरी लगाते थे. महंत रामरूपदास महाराज वहां शिव-पुराण और रामचरित मानस का पाठ करते थे. मंदिर परिसर में धार्मिक पुस्तकें रखते थे. स्कूल की पढ़ाई के साथ अल्लाह बख्श आध्यात्मिक पुस्तकों से भी ज्ञान प्राप्त करने लगे. इसके बाद ग्राम में रामलीला होने पर भरत और रावण का अभिनय करने लगे. उनकी अभिनय कला देखकर रामलीला आयोजकों ने बढ़ावा दिया, तो बसरेहर रामलीला के मंच पर अभिनय करने का मौका मिला.

मंदिरों में हैं आना-जाना

इससे अल्लाह बख्श की अभिनय कला की सराहना आसपास के रामलीला मंचों पर होने लगी. भरत की भूमिका में करुणा की गंगा बहाते हैं, तो रावण की भूमिका में राक्षसी तेवर प्रदर्शित करने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं. ऐसा नहीं कि अल्लाह बख्श को अपने समाज की नाराजगी न झेलनी पड़ी हो, लेकिन उसकी परवाह किए बगैर रामलीला के मंचों पर ही नहीं, अपितु मंदिरों में भी जाना नहीं छोड़ा.

कला जाति-धर्म नहीं देखती है

रामलीला में विभिन्न पात्रों की अदायगी करके अपनी छाप छोड़ रहे अल्लाह बख्श का कहना है कि हम हिंदुस्तानी पहले हैं. इसलिए सभी धर्मों का समान आदर करते हैं. रामलीला समिति बसरेहर के संयोजक हेमकुमार शर्मा का कहना है कि कला जाति-धर्म नहीं देखती है. आज के वक्त में धर्म विशेष के लोगों पर निशाना साधा जाता ह,ै लेकिन जो वास्तव में इसका पात्र है, उसको ऐसे लोग कैसे दूर करेंगे, यह बड़ा सवाल आज खड़ा हुआ है. जसवंतनगर क्षेत्र के मुस्लिम समाज के कई लोग केवट, मारीच, सूपर्णखा, कैकई सहित कई पात्रों का जीवंत अभिनय करके ख्याति पा चुके हैं. इन्हीं में से अल्लाह बख्श भी हैं, जो ढाई दशक से अभिनय कला से भरत तथा रावण के रूप में श्रद्धालुओं पर अपनी छाप छोड़ रहे हैं.