आला हजरतः एशिया का सबसे प्रतिष्ठित आध्यात्मिक परिवार

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 16-02-2022
आला हजरतः एशिया का सबसे प्रतिष्ठित आध्यात्मिक परिवार
आला हजरतः एशिया का सबसे प्रतिष्ठित आध्यात्मिक परिवार

 

गौस सिवानी / नई दिल्ली

उपमहाद्वीप में सबसे अधिक भीड़ जिन दरगाहों पर होती है, उनमें से एक आला हजरत बरेली की दरगाह है. यह विश्व प्रसिद्ध है और दुनिया भर के जायरीन को आकर्षित करती है. इसे एक विशेष विचारधारा वाले मुसलमानों के केंद्र के रूप में देखा जाता है.

आला हजरत के 103वें उर्स के मौके पर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने चादर भेजते हुए कहा था कि हमारे परिवार और पूरी कांग्रेस पार्टी की दरगाह आला हजरत और आपके परिवार के बीच का रिश्ता ऐतिहासिक और बहुत मजबूत है. मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि यह हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए भी रहेगा.

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आला हजरत 


यह स्पष्ट है कि वर्तमान उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में दरगाह-ए-आला हजरत के मौलाना तौकीर रजा खान ने कांग्रेस पार्टी को अपना समर्थन देने की घोषणा की है. पूर्व में मौलाना तौकीर रजा खान की अपील का असर बरैली और उसके आसपास की सीटों पर हुआ था. याद रहे कि आला हजरत एक प्रसिद्ध धार्मिक विद्वान और अपने समय के दार्शनिक थे. इस हिसाब से केवल उनका ही नहीं, उनके परिवार के सभी सदस्यों का सम्मान की नजरों से देखा जाता है.

आमतौर पर इस परिवार ने खुद को धर्म तक ही सीमित रखा, लेकिन परिवार के कुछ सदस्यों ने राजनीति में भी हाथ आजमाए हैं. इसके बावजूद परिवार का सम्मान और पवित्र धार्मिक सेवाओं की बुनियाद पर बनी हुई है. आला हजरत के बाद उनके पुत्र मौलाना अहमद रजा खान और भारत के ग्रैंड मुफ्ती मुस्तफा रजा खान महत्वपूर्ण बने रहे. एक ही परिवार के मुफ्ती अख्तर रजा खान अजहरी अपने लाखों अनुयायियों और भक्तों के कारण दुनिया के 500सबसे प्रभावशाली मुसलमानों में शामिल थे.

कौन हैं आला हजरत

मौलाना अहमद रजा खान बरेलवी, एक प्रसिद्ध धार्मिक विद्वान, जिन्हें लोकप्रिय रूप से आला हजरत के नाम से जाना जाता है. उन्हें ‘इमाम‘ की उपाधि से भी याद किया जाता है.

वह एक व्यावहारिक धार्मिक विद्वान, न्यायविद, दार्शनिक, तर्कशास्त्री, रहस्यवादी, कवि और गणितज्ञ थे. उन्होंने बड़ी संख्या में फतवे लिखे, जो अब पुस्तक रूप में प्रकाशित हो चुके हैं. उन्होंने पवित्र कुरान का भी अनुवाद किया है, जो विभिन्न भाषाओं में उपलब्ध है.

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आला हजरत एक्सप्रेस और डाक टिकट


आला हजरत की सूफीवाद में गहरी रुचि थी. संतों के लिए उनके मन में बहुत सम्मान था. अपने फतवे और किताबों में उन्होंने संतों की किताबों का विस्तार से जिक्र किया है. वह सूफीवाद की कादरिया श्रृंखला से संबंधित थे. 22साल की उम्र में वह हजरत शाह अल रसूल मरहरवी के शिष्य बने. उनके उस्ताद ने उन्हें कई सूफी संप्रदायों के खिलाफत की अनुमति दी. श्रृंखला को उनके और उनके वंशजों के माध्यम से उपमहाद्वीप में व्यापक रूप से प्रसारित किया गया.

उनकी सेवाओं के सम्मान में, भारत सरकार ने उनके नाम पर ‘आला हजरत एक्सप्रेस‘ ट्रेन शुरू की.

भारत सरकार ने 31दिसंबर 1995को उनके सम्मान में एक स्मारक डाक टिकट जारी किया था. उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में एक हज हाउस है, जिसका नाम उन्हीं के नाम पर रखा गया है. बरेली हवाई अड्डे पर उनके नाम का टर्मिनल भी है.

कुलीन परिवार की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

आला हजरत अफगानिस्तान के पश्तून जनजाति से थे. मुगल काल में, जब भारत का क्षेत्र अफगानिस्तान तक फैला हुआ था, इस परिवार के सदस्य पहले लाहौर, फिर दिल्ली और बाद में बरेली आए. ऐतिहासिक तथ्य यह है कि रोहेलखंड में रोहिल्ला पठानों की बस्तियां हैं, जो जौहर काल में महत्वपूर्ण रही हैं.

पठानों ने अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे. उन्हें इस क्षेत्र में पैर रखने से रोका था.

मुगल काल में परिवार के बुजुर्ग उच्च पदों पर आसीन थे. बाद के समय में वे अकादमिक रूप से प्रतिष्ठित रहे.

आला हजरत के पिता मौलाना नकी अली खान एक पश्तून थे, जबकि उनकी मां हुसैनी खानम एक मुगल थीं. आला हजरत नवाब असफंदयार बेग लखनऊ से थे. उनकी पत्नी इरशाद बेगम ‘उस्मानी’ थीं और बरेली के एक कुलीन परिवार से ताल्लुक रखती थीं.

परिवार का वैश्विक महत्व

हजरत मौलाना अहमद रजा बरेलवी ने अपने विद्वतापूर्ण कार्यों के आधार पर अपने समय में प्रसिद्ध और प्रतिष्ठा प्राप्त की थी. बरेलवी कहते हैं, “इस विचारधारा के मदरसे, मस्जिद और धार्मिक संस्थान बड़ी संख्या में हैं. यह वर्ग स्वयं को संतों, मनीषियों, धर्मगुरुओं का अनुयायी मानता है.”

इस वर्ग की भक्ति परमात्मा और उनके वंशजों के प्रति गहरी है. इसलिए वह अपने धार्मिक और आध्यात्मिक मार्गदर्शन के लिए बरेली की ओर देखता है. इस लिए इस कुलीन परिवार का महत्व एक सदी बाद भी कम नहीं हुआ है बल्कि बढ़ा ही है.

बरेलवी आंदोलन


आला हजरत की विचारधारा के अनुयायी

पाकिस्तान, भारत, बांग्लादेश, नेपाल, अफ्रीकी देशों, लैटिन अमेरिकी देशों के साथ यूरोप और अमेरिका में भी फैले हुए हैं. बरेलवी सेक्ट की शुरुआत में ग्रामीण पृश्ठभूमि के लोग ही इसका अनुसरण करते थे, पर वर्तमान में यह शहरी और शिक्षित लोगों के बीच भी बहुत लोकप्रिय हो गया है. हाल के दिनों में जब आतंकवाद का जोर बढ़ा, तो सूफी विचारधारा वाले मुसलमानों को आम लोगों के रूप में देखा गया है. यह वर्ग खुद को सूफियों के रूप में प्रस्तुत करता है.

परिवार के महत्वपूर्ण सदस्य

आला हजरत के सबसे बड़े बेटे मुफ्ती हामिद रजा खान, दरगाह के पहले सज्जाद नशीं बने. उसके बाद दूसरे सज्जादा नशीं बने मौलाना इब्राहिम रजा खान, तीसरे मौलाना रेहान रजा खान को, चौथे मौलाना सुभान रजा खान को और इस समय मुफ्ती अहसान रजा खान कादरी दरगाह आला हजरत के सज्जादा नशीं हैं. इस सूची में मुफ्ती मुस्तफा रजा भी शामिल हैं. मुफ्ती अख्तर रजा खान अजहरी भी इसी लिस्ट में आते हैं.

दरगाह से जुड़े कुछ धार्मिक मदरसे हैं, जिन्हें आला हजरत और उनके परिवार द्वारा स्थापित किया गया है. यह आज भी चल रहे हैं. यहां से आज भी फतवे जारी किए जाते हैं. इसके लिए देश के महान मुफ्ती की टीम काम करती है.

यहां से जारी फतवे ने कई बार सरकार को झकझोर कर रख दिया . सत्तर के दशक में, जब आपातकाल और नसबंदी लागू हुई थी, तब नसबंदी के खिलाफ फतवे जारी किए गए थे. यहां से हाफिज सईद और आतंकवाद के खिलाफ भी फतवे जारी किए जा चुके हैं.

मुफ्ती हामिद रजा खान

आला हजरत के ज्येष्ठ पुत्र मौलाना अहमद रजा खान ने कुलीन परिवार की बौद्धिक और आध्यात्मिक विरासत को आगे बढ़ाया है. उन्हें ‘हुज्जत-उल-इस्लाम‘ की उपाधि से याद किया जाता है. उन्हें अपने पिता से भी तालीम मिली है. उनके अनुयायी भी बड़ी संख्या में है.

मुफ्ती मुस्तफा रजा खान कादरी

मुफ्ती मुस्तफा रजा खान कादरी आला हजरत के दो पुत्रों में सबसे छोटे हैं. उन्हें ‘भारत के ग्रैंड मुफ्ती‘ के रूप में जाना जाता है. वह अपने सेक्ट के लिए विवाद का कारण बनते रहे हैं.

उन्होंने जामिया रिजविया मंजर इस्लाम बरेली में लगभग तीस वर्षों तक पढ़ाया, जो उनके पिता द्वारा स्थापित एक संस्था थी. भारत के ग्रैंड मुफ्ती ने कुछ किताबें और फुटनोट्स लिखे. हालांकि, उनके साथ लोगों के एक बड़े वर्ग के जुड़ाव का कारण मुरीदी श्रृंखला है.

भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और अन्य देशों से उनके लाखों अनुयायी हैं. उनके शिष्यों और खलीफाओं की संख्या भी बहुत अधिक है. भारत के ग्रैंड मुफ्ती का जन्म 7जुलाई, 1893को मोहल्ला सोदागरन, बरेली में हुआ था. जबकि निधन 11नवंबर, 1981को हुआ था.

मुफ्ती अख्तर रजा खान अजहरी


स्वर्गीय मुफ्ती अख्तर रजा खान अजहरी

मुफ्ती अख्तर रजा खान अजहरी (दिवंगत) उन प्रमुख नामों में से एक हैं जिन्होंने इस कुलीन परिवार की गौरवशाली परंपराओं का पालन किया.

जॉर्डन की रॉयल इस्लामिक सोसाइटी, जो सालाना दुनिया के सबसे प्रभावशाली मुसलमानों को रैंक करती है, ने उन्हें दुनिया के 500सबसे प्रभावशाली मुसलमानों में 22वां स्थान इस परिवार को दिया है. वास्तव में, दुनिया भर में उनके लाखों अनुयायी फैले हुए हैं. उनके भक्तों का एक बड़ा वर्ग भी है.

आला हजरत देश में न्यायशास्त्र के क्षेत्र में अग्रणी विद्वानों में से एक रहे हैं. वह एक वाक्पटु और अच्छे वक्ता भी थे. उनके प्रवचन सुनने के लिए लाखों लोग धार्मिक सभाओं में इकट्ठा होते थे.

उन्हें आमतौर पर ‘ताजे शरिया‘ के रूप में जाना जाता है. उनका जन्म 2फरवरी 1943को बरेली, मोहल्ला सोदागरन में हुआ था और 20जुलाई 2018को उनका निधन हो गया. उनके अंतिम संस्कार में बड़ी संख्या में मुस्लिम शामिल हुए थे. बरेली के लोगों ने अंतिम संस्कार में इतनी भीड़ पहले कभी नहीं देखी गई थी.

मुफ्ती असजद रजा खान

मुफ्ती अख्तर रजा खान अजहरी की विरासत को उनके 51वर्षीय बेटे मुफ्ती असजद रजा खान बरेलवी आगे बढ़ा रहे हैं. वह अपने पिता द्वारा स्थापित मदरसे के प्रभारी भी हैं. उन्होंने आतंकवादी और चरमपंथी विचारधाराओं के खिलाफ भी बात की है.

इस कुलीन परिवार के सदस्यों को आमतौर पर राजनीति से दूर धार्मिक और आध्यात्मिक भूमिकाओं में देखे जाते हैं, लेकिन कभी-कभी उन्हें राजनीति भूमिका में भी देखा जाता है.

मौलाना ताहिर-उल-कादरी

मौलाना ताहिर-उल-कादरी वर्तमान युग में इसका एक उदाहरण हैं. उन्होंने अपना अर्ध-राजनीतिक संगठन इत्तेहाद-ए-मिल्लत परिषद बनाया है.

इत्तेहाद-ए-मिल्लत परिषद ने एक बार नगरपालिका चुनावों में भाग लिया था और 10सीटें जीती थीं. पार्टी के मेयर प्रत्याशी को भी 36हजार वोट मिले थे. 2009के आम चुनाव में, मौलाना तौकीर रजा खान ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का समर्थन किया था.

इस समर्थन से कांग्रेस उम्मीदवार प्रवीण सिंह अरुण ने भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार और छह बार के सांसद संतोष गांगुली को हराया. 2012के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में, उन्होंने समाजवादी पार्टी का समर्थन किया, जबकि 2014के आम चुनावों में, बहुजन समाज पार्टी का साथ दिया.

2013में समाजवादी पार्टी ने मौलाना को हथकरघा निगम का उपाध्यक्ष नियुक्त किया था. तब उन्होंने मांग की कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के नेतृत्व में राज्य में सांप्रदायिक दंगों के कारणों की जांच के लिए एक समिति बनाई जाए.

हालांकि, सितंबर 2014 में, उन्होंने मुजफ्फरनगर दंगों के बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने समाजवादी पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार पर मुस्लिम नागरिकों की रक्षा करने में विफल रहने का आरोप लगाया था. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सांप्रदायिक दंगों की जांच की उनकी मांग पूरी नहीं की गई. यूपी के मौजूदा विधानसभा चुनाव में मौलाना का समर्थन कांग्रेस पार्टी को है.