अफगानिस्ताननामा : जब बाबर ने अफगानिस्तान के नाम को मान्यता दिलाई

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 26-10-2021
बाबर
बाबर

 

अफगानिस्ताननामा 15

 

हरजिंदर

तैमूर ने जो साम्राज्य स्थापित किया था वह उसकी मृत्यु के बाद तुरंत ही नहीं बिखरा.उसमें आधी सदी से ज्यादा का वक्त लगा.छोटे-छोटे लड़ाके कईं इलाकों में उभरे और उन्होंने अपने क्षेत्र पर कब्जा कर लिया.इन्हीं में एक उज्बेक लड़ाका था उमर शेख मिर्जा, उसने समरकंद पर कब्जा कर लिया.वह खुद चगेंज खान के वंश से था और उसकी पत्नी कुतलुग निगार खानम तैमूर के वंश से थीं.

 14 फरवरी 1483 को इसी परिवार में एक बच्चे जन्म हुआ जिसे नाम दिया गया जहीरउद्दीन मुहम्मद। बाद में वह पूरी दुनिया में बाबर के नाम से प्रसिद्ध हुआ और उसने मुगल साम्राज्य की स्थापना की.

बाबर अभी जवान भी नहीं हुआ था कि उसके पिता का निधन हो गया.जिसके बाद स्थानीय लड़ाकों ने उसे समरकंद से बाहर खदेड़ दिया.हालांकि बाबर ने हार नहीं मानी और समरकंद पर कब्जे के लिए एक के बाद एक कईं हमले किए.ज्यादातर हमलों में उसे हारना पड़ा और एकाध बार जब वह जीता भी तो भी समरकंद पर उसका कब्जा लंबे समय तक बना नहीं रह सका.

इसके बाद बाबर ने अपनी रणनीति बदल दी और समरकंद पर ध्यान देने के बजाए वह अबू दरिया को पार करके पख्तून इलाके पर कब्जे के लिए निकल पड़ा.वह जब वहां पहंुचा तो उस समय तैमूर साम्राज्य अपनी अंतिम सांसे गिन रहा था, इसलिए बाबर को यहां ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी.

बाबर ने सबसे पहला हमला बोला काबुल पर.कंधार, हेरात, खुरसान या बल्ख के मुकाबले उस समय तक काबुल कोई महत्वपूर्ण कस्बा नहीं था.बाबर तब सिर्फ 21साल का था और वह इस एक छोटे से नगर से अपने विजय अभियान की नींव ही नहीं रख रहा था बल्कि एक तरह से उसने मध्य एशिया का एक नई राजधानी, एक नई पहचान भी दे दी थी.

 उस समय बाबर ने जो क्षेत्र जीता उसे काबुलिस्तान का नाम दिया.

काबुल सामरिक और व्यापारिक नजरिये से एक महत्वपूर्ण नगर था.इस नगर ने बाबर को किस  तरह प्रभावित किया इसकी झलक हमें उनकी आत्मकथा बाबरनामा में मिलती है.जहां वे लिखते हैं.‘‘खुरसान और हिंदुस्तान के बीच दो व्यपारिक केंद्र हैं, एक कंधार है और दूसरा काबुल.

काबुल में खरगान, फरशाना, तुर्किस्तान, समरकंद, बुखारा, बल्ख, हिसार और बदकषान से कारवां आते हैं......यहां हर साल सात, आठ या दस हजार घोड़े हिंदुस्तान से आते हैं....ये अपने साथ गुलाम भी लाते हैं, कपड़े भी, खांड भी, शक्कर भी और खुश्बूदार जड़ी बूटियां भी.यहां रम, इराक और चीन का सामान भी आता है और हिंदुस्तान का तो यह अपना ही बाजार है.‘‘

हालांकि बाद में बाबर ने अपना ज्यादातर वक्त भारत में बिताया लेकिन यह माना जाता है कि आधुनिक काल के पहले के अफगानिस्तान का सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ यह बाबरनामा ही है.अफगानिस्तान के विभिन्न कबीलों जैसे यूसुफजई, गिलजई, अफरीदी वगैरह का सबसे पहला जिक्र इसी पुस्तक से मिलता है.

निश्चित तौर पर ये कबीले उसके पहले भी थे, लेकिन इसके पहले का कोई लिखित प्रमाण हमारे पास नहीं है.यानी अफगानिस्तान क्या है इसका परिचय एक तरह से दुनिया को बाबरनामा से ही मिला.

और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अफगानिस्तान को इसका नाम भी सबसे पहले बाबर के समय में ही मिला.वैसे यह माना जाता है कि अफगान शब्द कोई नया नहीं है, प्राचीन काल से ही इसका उपयोग होता रहा है.और तो और भारतीय खगोलशास्त्री वराहमिहिर ने अपने लेखन में इस शब्द का इस्तेमाल किया था.

एक कबीले के तौर पर अफगान लोगों का जिक्र अब बरूनी और इब्नेबतूता ने भी किया है.लेकिन अफगानिस्तान शब्द का सबसे पहला इस्तेमाल हमें 13 वीं सदी की पुस्तक तारीखनाम ए हेरात में मिलता है, जिसे सईफ इब्न मुहम्मद इब्न याकूब अल हेरावी ने लिखा था.  उन्होंने खोरसान और हिंदुस्तान के बीच के हिस्से को अफगानिस्तान कहा था.

लेकिन इसका पूरा ब्योरा बाद में हमें बाबरनामा में ही मिलता है.इसका भूगोल क्या है, यह कहां से कहां तक फैला है, यहां कितने कबीले हैं, कितनी जातियां और जनजातियां रहती हैं और वे कौन कौन सी भाषाएं बोलती हैं, बाबर ने इन सबका पूरे विस्तार से ब्योरा दिया है.

अफगान और अफगानिस्तान शब्द का इस्तेमाल भले ही पहले से होता रहा हो लेकिन बाबर ने इसे एक मुल्क के रूप में न सिर्फ सबसे पहले परिभाषित किया बल्कि एक तरह से पूरी दुनिया में मान्यता भी दिलवाई.

नोट: यह लेखक के अपने विचार हैं


( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )