हरजिंदर
महमूद गजनवी हालांकि उस सरजमीं का नहीं था जिसे हम आज अफगानिस्तान कहते हैं, वह तुर्क मूल का था.लेकिन उसने पहली बार इस पूरे मुल्क को इस्लाम के आधार पर जीता और एकीकृत किया.बड़े पैमाने पर धर्म परिवर्तन भी इसी दौर में शुरू हुआ.
इसके पहले तक वहां पारसियों, हिंदुओं और बौद्धों का शासन रह चुका था लेकिन इसके बाद से इन सभी धर्मों को मानने वाले सत्ता की लड़ाई से किनारे भी होते गए और संख्या में भी कम होने लग गए.लेकिन इस शासन को जिस ताकत ने मात दी वह इसी जमीन से उभरी हुई एक ताकत थी.
गोरी वंश बहुत नाटकीय ढंग से सामने आया.यह वंश हिंदु कुश पर्वत के पास एक गांव से उभरा और जल्द ही भारत तक एक बड़े भूभाग पर छा गया.जिसे हम गोरी कहते हैं उसे अंग्रेजी में घोरिड लिखा जाता है.ये लोग कौन थे इसे लेकर अभी भी कईं अटकले हैं.
एक राय यह है कि ये पारसी मूल के थे और दूसरी यह कि ये मूल रूप से ताजिक थे.कईं विद्वानों का कहना है कि यही वे लोग थे जो बाद में पख्तून कहलाए.हालांकि बहुत से लोग इससे सहमत नहीं है.लेकिन एक बात तय है कि गोरी पहले बौद्ध धर्म की महायान परंपरा को मानने वाले थे और बाद में उन्होंने धर्म परिवर्तन कर के इस्लाम स्वीकार कर लिया.
इस वंश के उभरने की जो कहानी है वह भी काफी दिलचस्प है.हिंदु कुश की तलहटी में बसे घोरिड के पूरे इलाके पर पर महमूद गजनवी ने हमला बोला और उसे अपने कब्जे में ले लिया.इस इलाके के राजा मुहम्मद इब्न सूरी को गिरफ्तार करके वह अपने साथ गजनी ले गया.
गजनी पहंुचकर इसी कैद में उनकी मृत्यु हो गई.मृत्यु कैसे हुई यह बहुत स्पष्ट नहीं है.ज्यादा जगह यही कहा गया है कि कैद में ही उन्होंने आत्महत्या कर ली. भले ही आत्महत्या ही हुई हो लेकिन मृतक के परिजन और समर्थक उसे हमेशा हत्या ही मान कर चलते हैं.और यही मुहम्मद इब्न सूरी के परिवार में भी हुआ, जो जल्द ही इंतकाम लेने के तैयारी करने लगा.
उसके बड़े बेटे मुइज़ुद्दीन मुहम्मद गोरी ने अपने भाई घियथ अद्दीन मुहम्मद को अपने साथ लिया और गजनवी साम्राज्य को एक सिरे से परास्त करना शुरू किया.मुहम्मद गोरी और उनके सिपहसालारों ने गजनी पर हमला बोला और उसे जीत लिया.
यह भी कहा जाता है कि उन्होंने उस दौर और उस क्षेत्र के सबसे भव्य शहर गजनी को जलाकर राख कर दिया था.गजनवी वंश का आखिरी राजा सुल्तान बहराम शाह वहां से भाग निकला और उसने लाहौर को अपनी राजधानी बना लिया.लेकिन थोड़े ही समय में मुहम्मद गोरी की सेना वहां भी पहुंच गई और सुल्तान को मान गिराया.
मुहम्मद गोरी यहीं रुका नहीं और हिदुस्तान के और भीतर की ओर बढ़ा.हालांकि आगे का रास्ता आसान नहीं था.आगे राजपूत राजा पृथ्वीराज चैहान का साम्राज्य था। पृथ्वीराज की सेनाओं के आगे मुहम्मद गोरी टिक नहीं सका और उसे कईं बार हार का सामना करना पड़ा, लेकिन आखिर जैसे-तैसे वह उनकी सेना को हराने में कामयाब हो गया, और उसने पृथ्वीराज को गिरफ्तार कर लिया.
मुहम्मद गोरी ने कैसे यह जीत हासिल की इसे लेकर कईं तरह की कहानियां भारत में प्रचलित हैं.इनमें सबसे प्रसिद्ध कथा का नाम है- पृथ्वीराज रासो, जिसे उस दौर में वीर रस के कवि चंद्र बरदाई ने लिखा था.
यह कथा बताती है कि मुहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज को कैद करके उनकी आंखे निकाल ली थीं. इस कहानी के अनुसार पृथ्वीराज चैहान धनुष विद्या में बहुत निपुण थे और जब नेत्रहीन पृथ्वीराज को मुहम्मद गोरी के दरबार में लाया गया तो उनसे अपनी विद्या का प्रदर्शन करने के लिए कहा गया.
कहानी के अनुसार इस दौरान वहां मौजूद चंद्र बरदाई ने कविता में जो संकेत दिए उसके आधार पर पृथ्वीराज ने सीधा सुल्तान पर तीन चलाया और उनकी वहीं मृत्यु हो गई. हालांकि ज्यादातर इतिहासकार इन सारी बातों को अतिश्योक्ति मानते हैं क्योंकि तमाम ऐतिहासिक तथ्य इसकी पुष्टि नहीं करते.
कुछ भी हो पृथ्वीराज चैहान मुहम्मद गोरी के रास्ते की सबसे बड़ी और सबसे कठिन बाधा थे, उन्हें हराने के बाद गोरी ने अपने राज का विस्तार तेजी से किया. हिंदुकुश से शुरू होने वाला यह राज वहां तक पहंुच गया जहां आज बांग्लादेश है। इस दौरान उन्होंने चालुक्य वंश के अलावा रास्ते में पड़ने वाले तमाम राज्यों को जीत लिया.
यही वह दौर है जब भारत में इस्लाम का प्रसार शुरू हुआ. अपने राज को यहां तक फैलाने के बाद उसने भारत में इसकी बागडोर कुतुबउद्दीन ऐबक को सौंप दी. जो एक गुलाम था और उनका प्रमुख सिपहसालार बन गया था.
इसके बाद मुहम्मद गोरी ने अपनी राजधानी हेरात लौटने का फैसला किया,लेकिन वे हेरात कभी नहीं पहंुच सके। रास्ते में जब वे पंजाब में थे तो एक दिन नमाज के वक्त किसी ने उनकी हत्या कर दी.
यह हत्या किसने की इस रहस्य से पर्दा कभी नहंीं उठ सका। एक तरफ यह माना जाता है कि यह एक षड़यंत्र था तो दूसरी तरफ एक धारणा यह है कि खोखर कबीले के किसी व्यक्ति ने उनकी हत्या कर दी. यह हत्या उसी इलाके में हुई थी जहां कभी पोरस का राज था. पोरस भी खोखर ही था.
मुहम्मद गोरी के कोई संतान नहीं थी और उनके भाई का पहले ही निधन हो चुका था. बड़ी लड़ाइयोें के बाद स्थापित किए गए इस साम्रज्य के बिखरने का समय आ गया था. इधर भारत में कुतुब उद्दीन ऐबक ने खुद को सुल्तान घोषित कर दिया और गुलाम वंश का शासन शुरू हुआ.
उधर बुखरिस्तान में सुल्तान की हत्या के बाद एक नए बदलाव ने दस्तक दी। कुछ ही बरस में एक और बड़े बदलाव से गुजरने वाला था।
.....जारी
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )