हरजिंदर
जब नादिर शाह की मौत हुई तो सिर्फ अहमद शाह अब्दाली ही अपने इलाके पर राज करने के लिए स्वतंत्र नहीं हुआ बल्कि नादिर की फौज का एक और बड़ा सिपहसालार इस मौके का फायदा उठाने जा रहा था.वह था उज्बेक सेनापति हाजी बी मिंग.नादिर की मौत के बाद अब्दाली और मिंग दोनों ने समझौता किया कि वे एक दूसरे के इलाके में हमला नहीं करेंगे.दोनों ने इसे अंत तक निभाया भी.
यह भी कहा जाता है कि अब्दाली ने अपने अंतिम समय अपने बेटे से कहा था कि वह उज्बेकिस्तान पर हमला न करें क्योंकि वह मधुमक्खियों का ऐसा एक छत्ता है जिसमें शहद तो बिलकुल नहीं है लेकिन बाकी सारे खतरे मौजूद हैं.
समझौते के बाद अब्दाली कंधार पर कब्जे के लिए बढ़ गया जबकि मिंग बल्ख जा पंहुचा.इस समझौते का अब्दाली को एक फायदा यह तो मिला ही कि उज्बेकिस्तान को लेकर वह आश्वस्त हो गया कि अब उस ओर से कोई खतरा नहीं है.अब सबसे पहले उसे पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा करना था और फिर उसके बाद आगे बढ़ना था.
अब्दाली ने सबसे पहले अपनी सेना का आकार काफी तेजी से बढ़ाया.उसने अपने नौ सिपहसालारों की एक परिषद बनाई जिसमें सात सिपहसालार वही थे जो कभी नादिर शाह की फौज में इसी पद पर थे.
पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा कर लेने के बाद अब्दाली की नजर अब भारत पर थी.भारत पर हमला करना उसके लिए मजबूरी भी थी, क्योंकि लगातार युद्ध लड़ रहे अफगानिस्तान के संसाधन खत्म हो गए थे.
वह चाहता था कि वह भारत से अधिक से अधिक लूटपाट कर ढेर सारा धन ला सके.इसके लिए राजाओं, राजपरिवारों और व्यापारियों को ही नहीं आम लोगों को भी लूटा गया.
लगातार कई साल तक यह लूटपाट इतनी अधिक हुई कि पंजाब में इसे लेकर एक कहावत ही बन गई थी- ‘खादा-पीता लाहे दा, बाकी अहमद शाहे दा‘.यानी आप जो भी खा पी लेते हैं वह आपके शरीर को पुष्ट करता है और जो बाकी बचता है उसे तो अहमद शाह वैसे भी लूट ले जाता है.उस दौर में यही सोच बन गई थी कि जो भी कमाओ उसे खा पी कर उड़ा दो क्योंकि जो बचत होगी वह तो लूट ही ली जाएगी.
लेकिन उस समय भारत में जो हालात थे उसमें अहमद शाह अब्दाली की फौज के लिए न तो लूटना ही आसान रह गया था और न ही उस लूट को अपने साथ ले जाना.मुगल साम्राज्य कमजोर हो गया था और मराठा सेनाओं की बढ़ती ताकत ने उसे दिल्ली तक ही सीमित कर दिया था.लेकिन पंजाब में अभी भी मुगल फौज काफी बड़ी थी और ताकतवर भी.
फिर पंजाब में सिख एक बड़ी ताकत के रूप में खड़े हो गए थे.सिख सेना कईं मिसलों में बंटी हुई थी और ये सब मिसल छापामार युद्ध के माहिर थे.अहमद शाह अब्दाली ने भारत में एक के बाद एक लगातार आठ हमले किए.इन हमलों में इन हमलों में उसकी सेना जो रुपया-पैसा, सोना चांदी वगैरह यहां से लूट कर ले जाती, रास्ते में सिख सैनिक उसमें से एक बड़ा हिस्सा उनसे लूट लेते.
अब्दाली ने पंजाब में घुसने से पहले कश्मीर पर कब्जा किया लेकिन जब उसने सिंधु नदी को पार करके पंजाब पर हमला बोला तो उसकी नजर सीधे दिल्ली पर थी.दिल्ली के रास्ते में उसके लिए कितनी नई बाधाएं खड़ी हो गई हैं उसे इसकी खबर भी नहीं थी.
पहला हमला करते समय वह आश्वस्त था कि वह मुगल फौज को जल्द ही मात दे लेगा.लेकिन हुआ कुछ और.मुगल सैनिक किसी तरह से उसके हथियारों के जखीरे में आग लगाने में कामयाब हो गए.ऐसी हालत में जीतना तो दूर बड़ी लड़ाई लड़ना भी संभव नहीं था.
बाजी हाथ से निकलते देख अब्दाली ने मुगल सिपहसालार मीर मन्नू से समझौता कर लिया और उसे इस इलाके का गवर्नर बना दिया.इसके बाद अब्दाली ने अपनी फौज को लौटने का आदेश दिया.लेकिन लौटना भी कहां आसान था.लौटते हुए ये फौजी जिस इलाके में थे वहां फुल्कियां मिस्ल के लोग सक्रिय थे.छरत सिंह के नेतृत्व में इसके सैनिकों ने अफगान फौजों को लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ी.
यानी इस हमले में अब्दाली को दो कड़वे घूंट पीने पड़े। एक तो उसे उस मुगल फौज से शिकस्त मिली जिसे बहुत कमजोर समझा जा रहा था.और इसके बाद सिख सैनिकों ने रही सही कसर पूरी कर दी.
अब्दाली बदला लेने के लिए फिर हमले की तैयारी करने लगा.
नोट: यह लेखक केअपने विचार हैं ( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )