हरियाणा के मेवात की सूखी धरती पर एक व्यक्ति ने अपने संकल्प, मेहनत और निस्वार्थ सेवा से पानी की हर बूंद को जीवन का संदेश बना दिया—यह कहानी है हाजी इब्राहिम ख़ान की। आवाज द वॉयस की सहयोगी डॉ. फ़िरदोस खान ने हरियाणा से द चेंजमेकर सीरीज के लिए हाजी इब्राहिम ख़ान पर यह विस्तृत रिपोर्ट तैयार की है।
जल संरक्षण केवल पानी बचाने का अभियान नहीं है, बल्कि यह जीवन बचाने की मुहिम है। पृथ्वी पर कोई भी जीव ऐसा नहीं है जिसे पानी की आवश्यकता न हो। यही कारण है कि जल संरक्षण को जनसेवा और परमार्थ का कार्य माना जाता है। बहुत कम लोग होते हैं जिनकी ज़िन्दगी इस नेक मकसद के लिए समर्पित हो जाती है। ऐसे ही भाग्यशाली और समर्पित व्यक्तियों में से एक हैं हरियाणा के मेवात क्षेत्र के हाजी इब्राहिम ख़ान। पिछले साढ़े तीन दशकों से वे जल संरक्षण के क्षेत्र में सक्रिय हैं और अरावली जल बिरादरी मेवात के अध्यक्ष के रूप में इस कार्य को पूरी निष्ठा और लगन से निभा रहे हैं।
हाजी इब्राहिम ख़ान का जीवन और उनके प्रयास इस बात का प्रमाण हैं कि एक व्यक्ति अपनी सच्ची लगन और मेहनत से पूरे समाज की दिशा बदल सकता है। वे अपने बचपन से ही जल संकट की वास्तविकता को जानते थे। उनका जन्म 21 जनवरी 1956 को हरियाणा के नूह जिले के गांव बघोला में हुआ। बचपन में ही उन्होंने देखा कि उनके इलाके में पानी की कितनी कमी है और किस प्रकार खासकर महिलाएं पानी के लिए दूर-दराज़ से घंटों तक सफर करती थीं। इस अनुभव ने उनके मन में जल संरक्षण की अहमियत को गहराई से बिठा दिया।
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हाजी इब्राहिम को इस क्षेत्र में प्रेरणा मिली जल पुरुष के नाम से प्रसिद्ध राजेन्द्र सिंह से। उन्होंने सबसे पहले अपने नज़दीकी गांव घाटा शमशाबाद में दो पहाड़ों के बीच एक बांध बनवाया। इससे गांववासियों को पीने का पानी मिलने लगा और उनकी ज़िन्दगी पहले की तुलना में बहुत आसान हो गई। इस परियोजना को उन्होंने साल 2000 में श्री महंत तिवारी की संस्था ‘देशज प्रतिष्ठान’ और राजेन्द्र सिंह की संस्था ‘तरूण भारत संघ’ के सहयोग से शुरू किया।
इसके बाद उन्होंने अरावली पहाड़ियों की तलहटी में बसे कई गांवों – जैसे पाट खोरी, फ़िरोज़पुर झिरका, गियासान्या बास, मेवली, घाटा शमशाबाद, शाहपुर – में और पहाड़ों के शिखर पर जोहड़ और तालाब बनवाए, ताकि स्थानीय लोग और जंगली जानवर दोनों पानी की सुविधा पा सकें।
हाजी इब्राहिम का मानना है कि जल संरक्षण का कार्य केवल एक व्यक्ति की कोशिश नहीं है। इसमें स्थानीय लोगों की भागीदारी भी बेहद महत्वपूर्ण है। इसके दो बड़े कारण हैं: पहला, कार्य जल्दी और सुचारू रूप से पूरा हो जाता है, और दूसरा, लोग स्वयं जल संरक्षण के महत्व को समझने लगते हैं। उन्होंने अपने क्षेत्र में कई जल यात्राएं आयोजित की हैं, जिनमें हरियाणा, राजस्थान और मध्यप्रदेश के गांवों में घूम-घूमकर लोगों को जल संरक्षण के लिए जागरूक किया गया। इसके अलावा गंगा सद्भावना यात्रा में गोमुख से गंगासागर तक की यात्रा में भी हाजी इब्राहिम सक्रिय रूप से शामिल हुए और जनमानस को जल संरक्षण का संदेश दिया।
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वर्तमान जल संकट और बढ़ते तापमान को लेकर वे गहराई से चिंतित हैं। हाजी इब्राहिम बताते हैं,” अरावली पहाड़ियों में पेड़ों की कमी और पत्थरों की अधिकता के कारण गर्मी का प्रभाव अधिक हो रहा है। दिल्ली से मुंबई जाने वाले एक्सप्रेसवे का विस्तार भी पर्यावरणीय दबाव बढ़ा रहा है और स्थानीय तापमान को प्रभावित कर रहा है। इस स्थिति में जल संरक्षण और भी आवश्यक हो जाता है।“
हाजी इब्राहिम ने अपने प्रयासों के लिए कई राष्ट्रीय और राज्य स्तर के पुरस्कार भी प्राप्त किए हैं। केन्द्र सरकार के जल शक्ति मंत्रालय ने जनवरी 2020 में उन्हें जल प्रहरी सम्मान-2019 से नवाज़ा। इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सम्पर्क प्रमुख रामलाल, भाजपा दिल्ली प्रदेशाध्यक्ष मनोज तिवारी और जल शक्ति मंत्री राजेन्द्र शेखावत ने उन्हें सम्मानित किया। इसके अलावा, 30 मई 2025 को तरुण भारत संघ के 50 वर्ष पूरे होने पर राजस्थान के अलवर जिले के गांव भीकम पुरा में आयोजित स्वर्ण जयंती समारोह में भी उन्हें विशेष सम्मान मिला।
हाजी इब्राहिम ने जल संकट के समाधान के लिए केवल बांध और तालाब बनाना ही नहीं बल्कि सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर भी आवाज उठाई। उदाहरण के लिए, राजस्थान सरकार ने भिवाड़ी से अलवर तक शराब बनाने वाली 43 कंपनियों के लाइसेंस जारी किए थे, जिससे स्थानीय जल स्रोत अत्यधिक प्रभावित हो रहे थे।
हाजी इब्राहिम बताते हैं,” इसके खिलाफ मुखर विरोध किया और जनहित में सरकार को प्रभावी रूप से अवगत कराया। नतीजतन, 39 कंपनियों के लाइसेंस रद्द कर दिए गए।“
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जल संकट की गंभीरता को समझते हुए हाजी इब्राहिम बताते हैं, “ किसी भी क्षेत्र में जल की औसत वार्षिक उपलब्धता जल-मौसम विज्ञान और भूवैज्ञानिक परिस्थितियों पर निर्भर करती है, लेकिन जनसंख्या वृद्धि के कारण प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता लगातार घट रही है।“ वर्ष 2021 में प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता 1486 घन मीटर थी, जो वर्ष 2031 तक घटकर 1367 घन मीटर होने का अनुमान है। 1700 घन मीटर से कम जल को संकट और 1000 घन मीटर से कम जल को गंभीर कमी की स्थिति माना जाता है।
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हाजी इब्राहिम का संपूर्ण जीवन यह संदेश देता है कि जल संरक्षण केवल प्राकृतिक संसाधनों को बचाने का कार्य नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और नैतिक जिम्मेदारी भी है। उन्होंने यह सिद्ध कर दिया है कि यदि व्यक्ति निष्ठा और लगन से काम करे तो उसका प्रयास न केवल स्थानीय समाज बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए प्रेरणास्त्रोत बन सकता है। उनकी यह यात्रा आज भी जारी है और उनके नेतृत्व में मेवात और अरावली क्षेत्र के दर्जनों गांवों में जल संरचनाएं विकसित हो रही हैं, जिससे लाखों लोगों और जंगली जीवों के जीवन में स्थायी सुधार आया है।
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हाजी इब्राहिम ख़ान की कहानी हमें यह भी सिखाती है कि जब समाज के लोग एकजुट होकर प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करें तो मुश्किल लगने वाले काम भी संभव हो जाते हैं। उनके प्रयास यह दिखाते हैं कि जल संरक्षण केवल अभियान नहीं बल्कि जीवन को संजोने और समाज को बेहतर बनाने की दिशा में एक स्थायी कदम है।