फराह उस्मानी : काम ही नई पहचान

Story by  ओनिका माहेश्वरी | Published by  [email protected] | Date 03-06-2025
Farah Usmani set out to change the image of Muslim women
Farah Usmani set out to change the image of Muslim women

 

त्तर प्रदेश की बेटी डॉ. फराह उस्मानी ने धर्म और जेंडर से जुड़ी सामाजिक रूढ़ियों को न सिर्फ तोड़ा, बल्कि उन्हें पलटकर एक नई दिशा दे दी. वे आज सिर्फ एक सफल डॉक्टर, संयुक्त राष्ट्र की वरिष्ठ अधिकारी या अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ भर नहीं हैं—वे महिलाओं के लिए उम्मीद और आत्मनिर्भरता की एक जीवंत मिसाल हैं.

डॉ. उस्मानी ‘Rising Beyond The Ceiling’ नामक एक वैश्विक पहल की संस्थापक हैं, जो भारत की मुस्लिम महिलाओं की उपलब्धियों को दुनिया के सामने लाने और उनकी पुरानी छवियों को चुनौती देने का कार्य कर रही है. उनका प्रयास है कि मुस्लिम महिलाएं केवल आंकड़ों में नहीं, बल्कि नेतृत्व, नवाचार और सशक्तिकरण की कहानियों में पहचानी जाएं.

डॉ. फराह उस्मानी, पूर्व मुख्य सचिव और उत्तर प्रदेश के मुख्य सूचना आयुक्त रह चुके सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी जावेद उस्मानी की जीवनसंगिनी हैं. उनके दो बच्चे हैं — फ़राज़ और सबा। फ़राज़ ने ड्यूक यूनिवर्सिटी से पर्यावरण नीति की पढ़ाई की, जबकि सबा ने कोलंबिया यूनिवर्सिटी, न्यूयॉर्क से इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की। इस परिवार ने हमेशा शिक्षा और सामाजिक चेतना को अपनी प्राथमिकता में रखा.


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जावेद उस्मानी की जीवनसंगिनी और सबा-फ़राज़ की माँ: लेकिन पहचान अपनी खुद की गढ़ी

डॉ. उस्मानी एक अनुभवी स्त्री रोग विशेषज्ञ हैं, जिनके पास यूनाइटेड नेशंस के साथ 25 वर्षों का कार्य अनुभव है. उन्होंने विश्वभर में 50 से अधिक देशों में कार्य किया है और 18 वर्षों तक UNFPA में नीति निर्माण, योजना, प्रोग्रामिंग और तकनीकी नेतृत्व का दायित्व निभाया है.

लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स और लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन से उन्होंने हेल्थ पॉलिसी और फाइनेंस में मास्टर्स डिग्री प्राप्त की.वर्ष 2007 में जब उन्हें न्यूयॉर्क में यूएन की पोस्टिंग मिली, तो एक और बदलाव हुआ—उनकी बेटी सबा भी न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी में दाखिला ले चुकी थीं.

नए शहर में घर की तलाश, दलालों से जद्दोजहद और ऊँचे किराए ने उन्हें वित्तीय प्रबंधन की ज़रूरत का एहसास कराया. उन्होंने खुद से कहा:"अब डरना नहीं है, अब सीखना है – पैसे को समझना है, उसे साधना है."

यही सोच उन्हें मैनहटन के बीचोंबीच अपने पहले अपार्टमेंट की मालिक बना गई — एक ऐसा निर्णय जो उस दौर में बेहद असामान्य था, खासकर महिलाओं के लिए. उन्होंने UN Federal Credit Union से कम ब्याज पर लोन लिया और 15 साल बाद आज वे लगभग ऋण-मुक्त गृहस्वामी हैं.



डॉ. उस्मानी मानती हैं कि पैसा सिर्फ ज़रूरत नहीं, बल्कि एक सशक्त साधन है। वे कहती हैं:"हमारी नानी जो गद्दों के नीचे पैसे छुपाती थीं, वो दरअसल आत्मनिर्भरता का बीज बो रही थीं."
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उनके पति ने उन्हें निवेश की समझ दी—कर-मुक्त सेविंग्स, एनआरई डिपॉजिट्स, एफडी जैसे ज़रिए. आज उनकी बेटी सबा मैनहटन में रियल एस्टेट निवेशक हैं — यह आर्थिक विरासत उन्होंने अपनी माँ से पाई है.

डॉ. उस्मानी को विश्व बैंक और ब्रिटिश काउंसिल से मेरिट फेलोशिप सहित कई अंतरराष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हैं. 2021 में उन्हें महात्मा पुरस्कार से नवाज़ा गया, जो महिलाओं, लड़कियों और अल्पसंख्यकों के लिए सामाजिक योगदान के लिए दिया गया था.

वे SAFAR (Supporting Action for Advancement and Rights) की वैश्विक उपाध्यक्ष भी हैं—यह संगठन हाशिए पर मौजूद महिलाओं और अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए कार्यरत है.

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डॉ. फराह उस्मानी की कहानी में वह सब कुछ है जो एक उपन्यास को कालजयी बनाता है — संघर्ष, साहस, शिक्षा, निवेश, परिवार और समाज की बेहतरी के लिए अडिग संकल्प। उन्होंने दिखाया कि जब महिलाएं आत्मनिर्भर होती हैं, तो सिर्फ उनका जीवन नहीं, बल्कि पूरे समाज की तस्वीर बदल जाती है.

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वे एक ऐसी आवाज़ हैं जो कहती है:"पैसे से डरिए मत, उसे साधिए – तभी आप अपने सपनों को ज़मीन पर उतार पाएंगे."आज की दुनिया में, जहाँ अधिकांश महिलाएं आज भी वित्तीय फैसलों से दूर रखी जाती हैं, डॉ. फराह उस्मानी का जीवन उस सोच को ध्वस्त करता है और नई पीढ़ी को वित्तीय आज़ादी और सामाजिक भागीदारी की राह दिखाता है.

प्रस्तुति: ओनिका माहेश्वरी