शम्स आलम

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 25-07-2025
Shams Alam:
Shams Alam: "Lost legs, not courage"

 

ब डॉक्टरों को शम्स आलम की रीढ़ की हड्डी में ट्यूमर का पता चला, तो उन्होंने उन्हें भरोसा दिलाया कि वह कुछ ही हफ़्तों में फिर से दौड़ने लगेंगे. लेकिन वह दिन कभी नहीं आया. यहां प्रस्तुत है अर्सला  खान  की शम्स आलम पर एक विस्तृत रिपोर्ट.  

पैराप्लेजिया के कारण उनके शरीर का निचला हिस्सा सुन्न हो गया था - एक जीवन बदल देने वाला क्षण. फिर भी, निराशा के आगे झुकने के बजाय, शम्स आलम ने दृढ़ता को चुना. अपने दृढ़ संकल्प और तैराकी के प्रति अटूट प्रेम के बल पर, उन्होंने अपने देश को गौरवान्वित किया.

आज, शम्स आलम एक पैरा-तैराक के रूप में प्रतिष्ठित हैं, जिन्होंने न केवल बिहार में, बल्कि पूरे देश और अंतर्राष्ट्रीय मंच पर एक अमिट छाप छोड़ी है. उन्होंने अप्रत्याशित चुनौतियों और विजयों से भरे जीवन में कई रिकॉर्ड तोड़े और बाधाओं को तोड़ा है.
17 जुलाई, 1986 को बिहार के मधुबनी के राठोस गाँव में जन्मे शम्स आलम मोहम्मद नासिर के पुत्र हैं. 
 
कम उम्र से ही उन्हें पानी की ओर आकर्षित किया गया था. तैराकी के प्रति उनके जुनून को उनकी माँ शकीला खातून ने पोषित किया, जिन्होंने हमेशा उन्हें अपनी रुचियों को आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया. बाद में, परिवार ने एक अहम फैसला लिया: बेहतर अवसरों की तलाश में उन्हें मुंबई भेज दिया जाए.
 
मुंबई में, शम्स ने एक सरकारी स्कूल में दाखिला लिया और पढ़ाई के साथ-साथ मार्शल आर्ट का अभ्यास शुरू किया. वह तेज़ी से आगे बढ़े, कई पदक जीते और खुद को एशियाई खेलों के लिए एक गंभीर दावेदार के रूप में स्थापित किया. 
 
तैराकी और मार्शल आर्ट दो ऐसे जुनून बन गए जिन्होंने उन्हें अनुशासन और उद्देश्य दोनों दिए. फिर, एक नियमित प्रशिक्षण सत्र के दौरान, उन्हें अपनी पीठ में तेज़ दर्द महसूस हुआ—ऐसा दर्द जो कम नहीं हो रहा था. चिकित्सकीय परामर्श के बाद, पता चला कि उनकी रीढ़ की हड्डी में एक ट्यूमर विकसित हो गया है, और सर्जरी ज़रूरी थी.
 
आवाज़ - द वॉयस से बात करते हुए, शम्स ने याद किया, "मेरी माँ मेरा सहारा बनीं." उस मुश्किल समय में, उनकी बुज़ुर्ग माँ ने उन्हें एक ऐसी बात कही जो हमेशा उनके साथ रही: "बेटा, जब एक दरवाज़ा बंद होता है, तो अल्लाह दस खिड़कियाँ खोल देता है." उनकी बातों ने उन्हें ताकत दी, और अपनी परिस्थितियों पर शोक मनाने के बजाय, उन्होंने अपनी ऊर्जा तैराकी में लगा दी.
 
शम्स को एशियाई खेलों में भाग लेने का अपना सपना छोड़ना पड़ा और इसके बजाय अस्पताल के बिस्तर पर ही सर्जरी की तैयारी करनी पड़ी. ऑपरेशन तो पूरा हो गया, लेकिन उसके शरीर के निचले हिस्से में लकवा बना रहा. डॉक्टरों को उम्मीद थी और उन्होंने कहा था कि वह दो-तीन हफ़्तों में चलने-फिरने लगेगा—लेकिन वह कभी ठीक नहीं हुआ. इसके बाद दूसरी सर्जरी हुई, लेकिन इससे उसके लकवाग्रस्त होने की स्थायी पुष्टि हो गई.
 
इसे अपनी पहचान बनाने देने के बजाय, शम्स ने ऐसी वापसी की जिसकी कल्पना कम ही लोग कर सकते थे. 2017 में, उन्होंने खुले समुद्र में केवल 4 घंटे और 4 मिनट में 8 किलोमीटर तैरकर विश्व रिकॉर्ड बनाया - खुले पानी में किसी पैराप्लेजिक द्वारा तैरी गई अब तक की सबसे लंबी दूरी. 
 
20 से 24 नवंबर, 2019 तक, उन्होंने पोलैंड में पोलिश ओपन स्विमिंग चैंपियनशिप में छह स्पर्धाओं में भाग लिया. वहाँ, उन्होंने 50 मीटर बटरफ्लाई और 100 मीटर ब्रेस्टस्ट्रोक दोनों में जीत हासिल की, राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाए और पैरा तैराकी में शीर्ष खिलाड़ियों के बीच अपनी जगह पक्की की.
 
उनकी उपलब्धियों और प्रेरणादायक यात्रा को मान्यता देते हुए, बिहार चुनाव आयोग ने उन्हें अपना ब्रांड एंबेसडर नियुक्त किया. शम्स अपने करियर में बदलाव लाने वाली भूमिका के लिए अपने कोच राजा राम घाघ को श्रेय देते हैं.
 
बिहार राज्य सरकार के खेल विभाग ने उन्हें बिहार टास्क फोर्स में भी नियुक्त किया. 2018 में, उन्हें बिहार खेल रत्न पुरस्कार और उसके बाद 2019 में कर्ण अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिला. शम्स कहते हैं, "अपनी विकलांगता के बाद से, मेरे जीवन में बहुत कुछ बदल गया है. विकलांग लोगों के प्रति मेरा नज़रिया बदल गया है."
 
अपने अनुभवों से प्रेरित होकर, उन्होंने मुंबई में "पेयर सपोर्ट एसोसिएशन" की स्थापना की - जो अब एक पंजीकृत संगठन है जो विकलांग व्यक्तियों को खेलों में अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए एक मंच प्रदान करता है.
 
शम्स आलम की जीवन कहानी विपरीत परिस्थितियों, आशा और उपलब्धि का एक सशक्त वृत्तांत है. बिहार के एक छोटे से गाँव से आए तैराक, वे पैरा खेलों में एक राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में उभरे हैं. अपनी अटूट प्रतिबद्धता के माध्यम से, उन्होंने न केवल व्यक्तिगत महानता हासिल की है, बल्कि भारत में पैरा-एथलीटों का सम्मान भी बढ़ाया है.
 
 
उनका सफ़र इस बात का प्रमाण है कि शारीरिक सीमाएँ सपनों के रास्ते में रोड़ा नहीं बन सकतीं. अनुशासन और साहस से मज़बूत शम्स की प्रतिभा हमें याद दिलाती है कि हर बाधा को अवसर में बदला जा सकता है.
 
शम्स आलम और मोहित जैसे एथलीटों के प्रेरक प्रदर्शन ने बिहार में पैरा खेलों को पहचान की एक नई लहर दी है. उनकी सफलता की कहानियाँ इस बात को उजागर करती हैं कि प्रतिभा प्रचुर मात्रा में है—बस उसे सही सहयोग और प्रदर्शन की ज़रूरत है.
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चेन्नई के एक कार्यक्रम में संगीतकार एआर रहमान के साथ शम्स आलम

गोवा में आयोजित 24वीं राष्ट्रीय पैरा तैराकी चैंपियनशिप में, शम्स ने एक बार फिर बिहार और भारत को गौरवान्वित किया. स्वर्ण, रजत और कांस्य पदक जीतकर उन्होंने देश के एक प्रमुख पैरा-एथलीट के रूप में अपनी स्थिति को और पुख्ता किया.
 
 
संघर्ष, दृढ़ता और विजय से भरी उनकी यात्रा हमें सिखाती है कि विश्वास, कड़ी मेहनत और साहस से कोई भी सपना साकार किया जा सकता है. शम्स आलम ने सिर्फ़ धारा के विपरीत तैरकर ही नहीं, बल्कि उसे अपने पक्ष में मोड़कर भी दिखाया.