लजीज और कुरकुरे लिज्जत पापड़ के घर-घर तक पहुंचने की कहानी

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 12-10-2021
लिज्जत पापड़ के घर-घर तक पहुंचने की कहानी
लिज्जत पापड़ के घर-घर तक पहुंचने की कहानी

 

अमित दीवान/ दिल्ली

15 मार्च, 1959 को जब बंबई (मुंबई) में रहने वाले गुजराती परिवारों की सात महिलाओं के एक समूह ने धूप में सुखाने के लिए छत पर ताज़े बेले हुए कच्चे पापड़ रखे, उन्हें शायद ही पता था कि वे एक अभूतपूर्व व्यवसाय और एक राष्ट्रीय ब्रांड की नींव रख रहे हैं.

उस शाम को, उस समूह की अगुआ जसवंतीबेन जमनादास पोपट और उनकी साथिनों ने सूखे पापड़ को चार पैकेट में पैक किया और उन्हें स्थानीय व्यापारियों को बेच दिया. उस रोज इन महिलाओं ने अपना पहला लाभ कमाया था और श्री महिला गृह उद्योग लिज्जत पापड़ का सफर शुरू हो गया. उस दिन के बाद से यह समूह भारत की स्वयं सहायता महिला सहकारी समितियों के सबसे बड़े नेटवर्क में विकसित हो गया है.

जसवंतीबेन जमनादास पोपट

गुजराती में लिज्जत का मतलब स्वादिष्ट होता है और 1962 में महिलाओं ने इसे अपने उत्पाद के ब्रांड नाम के रूप में चुना था. आज की तारीख में लिज्जत पापड़ सिर्फ एक घरेलू नाम नहीं रहा. जसवंतीबेन और उनकी टीम ने न केवल अपने लिए एक व्यवसाय बनाया, बल्कि आने वाली कई पीढ़ियों के लिए महिलाओं के लिए आजीविका के अवसर भी बनाए और उन्हें अपने परिवारों के कमाऊ सदस्य बनकर उन्हें सशक्त बनाया.

श्री महिला गृह उद्योग की अध्यक्ष स्वाति पराडकर ने आवाज-द वॉयस को बताया कि इस समूह का कारोबार 80 रुपये से शुरू हुआ था और 1962-63 तक,उनके समूह केपापड़ों की बिक्री सालाना 1.82 लाख रुपये तक पहुंच गई.

साल 2019 में इस सहकारी संस्था का कुल कारोबार 1,600 करोड़ रुपये से अधिक था; उसी वर्ष इसका निर्यात 800 करोड़ रुपये तक पहुंच गया. पराडकर कहती हैं, “शुरू में इन सात संस्थापकों का एक लक्ष्य था - अपने परिवार की आय में वृद्धि करना और अपने पतियों की वित्तीय जिम्मेदारियों को साझा करना. उन्होंने समाजसेवी छगनलाल करमसी पारेख से 80रुपये की पूंजी उधार ली थी और अपने घरों की छतों से कारोबार शुरू किया था. उनके पापड़ की मांग बढ़ रही थी और उन्होंने महसूस किया कि उन्हें इसे एक सहकारी समिति के रूप में विकसित करना चाहिए. पहले साल में इनकी बिक्री 6196 रुपए थी.”

जब उन्होंने इसे शुरू किया था तब जसवंतीबेन को इस कारोबार के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी, लेकिन जल्दी वह कारोबार के गुर सीख गईं और उनकी संस्था नफे में चलने लगी.

आज की तारीख में यह महिला केंद्रित व्यवसाय 17 राज्यों से चलता है और इसके उत्पाद 25 देशों में बेचे जाते हैं. पापड़ के अलावा, कंपनी अन्य प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों और अन्य तेजी से चलने वाले उपभोक्ता उत्पादों (एफएमसीजी) जैसे डिटर्जेंट, मसाले, साबुन आदि में हाथ आजमा रही है.

हालांकि,इस सहकारी संस्था की सबसे महत्वपूर्ण बात है यह अशिक्षित और कुशल ग्रामीण महिलाओं को रोजगार देता है और उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाता है. लिज्जत ने 45,000 से अधिक महिलाओं को आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनाया है. पाराडकर इसे उन महिलाओं की संस्था के रूप में देखती हैं जो स्वेच्छा से अपने लिए काम कर रही हैं. वह कहती हैं, "एक शाखा में किसी भी नुक्सान को शाखा बहनों द्वारा अपने वेतन को समायोजित करके वहन किया जाता है."

श्री महिला गृह उद्योग ने सदस्यों की बेटियों के लिए छगनबापा स्मृति छात्रवृत्ति भी शुरू की और अपने वालोड केंद्र में, उन्होंने महिलाओं के लिए एक शिक्षा और हॉबी सेंटर खोला है जहां वह टाइपिंग, खाना पकाने, सिलाई, बुनाई और खिलौना बनाने आदि जैसे पाठ्यक्रम प्रदान करते हैं.

वास्तव में, 1956 में शुरू हुई सात महिलाओं ने केवल एक ही कौशल के जरिए अपनी सीमाओं को ऊंचाइयों तक पहुंचाया है और यह कौशल उन्हें बहुत प्रवीणता से आता थाः खाना बनाना. और अपनी इस कला के जरिए वह देश के लगभर हर घर में खामोशी से आकर हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुकी हैं.

80 रुपए की पूंजी से शुरू हुई संस्था में पिछले छह दशकों में बहुत विविधता आई है और काफी कुछ बदला भी है. लेकिन कुछ चीजें अभी भी नहीं बदली हैं. इनमें से एक है इसमें काम करने वाली महिलाओं को मिलने वाले भुगतान का दिन. सदस्यों को काम सौंपे जाने के ठीक तीसरे दिन भोजन वितरित होते ही भुगतान कर दिया जाता है.

लेकिन इस संस्था की सबसे ज्यादा स्थिर दो बेहद अहम चीजें हैं, एक इसके पापड़ बनाने का तरीका; यह अभी भी हाथ से बेला जाता है और धूप में सुखाया जाता है. और दूसरा, इसके पापड़ का लजीज और कुरकरा जायका.