नई दिल्ली
ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका द्वारा भारतीय वस्तुओं पर 50 प्रतिशत टैरिफ (शुल्क) लगाने के बाद पिछले चार महीनों में भारत से अमेरिका को निर्यात में 37.5 प्रतिशत की भारी गिरावट दर्ज की गई है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि मई 2025 में अमेरिका को भारतीय निर्यात 8.8 अरब अमेरिकी डॉलर था, जो सितंबर 2025 में गिरकर 5.5 अरब डॉलर रह गया। यह वर्ष की अब तक की सबसे तीव्र और लगातार गिरावट मानी जा रही है।
GTRI ने कहा, "वॉशिंगटन के 50 प्रतिशत टैरिफ ने चार महीनों में अमेरिका को भारतीय निर्यात में 37.5% की गिरावट ला दी है।"
सितंबर वह पहला महीना रहा जब भारतीय वस्तुओं पर पूरा 50% टैरिफ प्रभावी हुआ। अकेले सितंबर में ही निर्यात में 20.3 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई, जो अगस्त में 6.87 अरब डॉलर था, वह घटकर 5.5 अरब डॉलर रह गया। यह 2025 की सबसे बड़ी मासिक गिरावट भी है और लगातार चौथा महीना है जब निर्यात में गिरावट आई है।
यह गिरावट मई 2025 के बाद शुरू हुई, जो निर्यात में वृद्धि का आखिरी महीना था। उस महीने निर्यात में 4.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। लेकिन उसके बाद:
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जून में 5.7% गिरकर निर्यात 8.3 अरब डॉलर पर आ गया,
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जुलाई में 3.6% गिरकर 8.0 अरब डॉलर,
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अगस्त में 13.8% गिरकर 6.9 अरब डॉलर,
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और सितंबर में यह 5.5 अरब डॉलर पर सिमट गया।
GTRI ने यह भी बताया कि मई से सितंबर के बीच भारत ने कुल 3.3 अरब डॉलर के मासिक निर्यात मूल्य का नुकसान झेला, जो इस टैरिफ नीति के भारत-अमेरिका व्यापार पर पड़े गंभीर असर को दर्शाता है।
रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका अब भारत के लिए सबसे अधिक प्रभावित निर्यात बाजार बन गया है, जहां सबसे अधिक झटका निम्नलिखित क्षेत्रों को लगा है:
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टेक्सटाइल (वस्त्र उद्योग)
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रत्न और आभूषण (जेम्स एंड ज्वेलरी)
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इंजीनियरिंग सामान
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रसायन उद्योग (केमिकल्स)
इन क्षेत्रों से निर्यात में गिरावट ने भारत की समग्र निर्यात स्थिति को प्रभावित किया है, जिससे भारत की विनिर्माण क्षमता और वैश्विक प्रतिस्पर्धा पर भी प्रश्नचिह्न लग गया है।
GTRI की रिपोर्ट में कहा गया है कि 50 प्रतिशत टैरिफ नीति के कारण भारत से अमेरिका को निर्यात में जो भारी गिरावट आई है, वह साफ तौर पर यह संकेत देती है कि अब भारत को व्यापार हितों की रक्षा के लिए नीति की पुनः समीक्षा करनी होगी।
इस गिरावट ने सरकार और उद्योगों के सामने यह चुनौती खड़ी कर दी है कि वे वैकल्पिक बाजारों की तलाश करें, निर्यात प्रोत्साहन उपायों को मजबूत करें और व्यापार वार्ताओं में अधिक आक्रामक रणनीति अपनाएं, ताकि इस नुकसान की भरपाई की जा सके।