राजस्थान के मुसलमान सिविल सेवा की प्रतियोगी परीक्षाओं में क्यों हैं पीछे

Story by  अशफाक कायमखानी | Published by  [email protected] | Date 15-07-2021
राजस्थान के मुसलमान सिविल सेवा की प्रतियोगी परीक्षाओं में क्यों हैं पीछे
राजस्थान के मुसलमान सिविल सेवा की प्रतियोगी परीक्षाओं में क्यों हैं पीछे

 

अशफाक कायमखानी जयपुर

बिहार या दूसरे प्रदेशों की तरह राजस्थान के मुसलमान सिविल सेवा की परीक्षा में बेहतर नहीं कर पा रहे हैं. ऐसी परीक्षाओं में राजस्थानी मुसलमान का प्रदर्शन बहुत ही खराब है. धीरे-धीरे स्थिति और बिगड़ रही है.
हालांकि कुछ साल पहले तक यह स्थिति नहीं थी.
 
पहले जयपुर की नानाजी की हवेली में राजस्थान सिविल सेवा की प्रतियोगी परीक्षाओं के लायक मुस्लिम युवाओं को तैयार करने के लिए  आवासीय कोचिंग चलाई जाती थी. तब राजस्थान लोक सेवा आयोग के प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में मुस्लिम अभ्यर्थी बेहतर करते थे.
 
मगर अब ऐसा नहीं है. वर्तमान में साधन बढ़ने के अलावा आर्थिक तौर बेहतर होने के बावजूद मुस्लिम बच्चे ऐसी परीक्षाओं में अच्छा नहीं कर पा रहे हैं. राजस्थान लोकसेवा आयोग द्वारा  राजस्थान सिविल सेवा- 2018 की वैकेंसी के लिए मुख्य परीक्षा में उत्तीर्ण 2010 अभ्यर्थियों का  22-मार्च से साक्षात्कार लेना था.
 
14 अप्रैल से 1-जून तक कोरोना और लॉकडाउन की वजह से साक्षात्कार स्थगित कर दिया गया. आयोग ने 21-जून से 13-जुलाई तक इसके लिए साक्षात्कार लेकर एक दिन पहले ही परिणाम जारी किया है. इसके बाद राज्य को 1051 नए अफसर मिलेंगे.
 
परिणाम के बाद कुल 1051 अधिकारियों की जो सूची जारी की गई है, उसमें मात्र 9 मुस्लिम अभ्यर्थी ही शामिल हैं. इससे पहले इतनी बुरी स्थिति नहीं थी . जानकारी अनुसार कोटा के शादाब 171 वीं रैंक, कोटा के इटावा के वर्तमान में रक्षा मंत्रालय में सेवारत मंजूर अली दीवान को 212 वीं रैंक, फतेहपुर शेखावाटी में तहसीलदार पद पर तैनात सीकर के खेरवा गांव के इमरान खान पठान 268 वीं रैंक, रिया बडी के मोहम्मद हमीद 474 वी रैंक,अलवर के एजाज खान 374 वीं रैंक, अलवर जिले के लक्ष्मणगढ़ के अमन खान ने 512 वीं रैंक, चूरू शाहीन ने 616 वीं रैक, सरदारशहर के आकिब खान 650 वीं रैंक मिली है. कोटा की नाहीद  भी सफल अभ्यर्थियों में शामिल हैं.
rajasthan
 
 कुल मिलाकर यह कि राजस्थान सिविल सेवा के परिणामों पर मुस्लिम समुदाय के चिंतकों को निजी या सामुहिक तौर सिर जोड़कर मनन व मंथन करने का समय आ गया है. आखिर क्या वजह है कि उनके बच्चे ऐसी परीक्षाओं में पिछड़ रहे हैं ?
 
हजारों बच्चे परीक्षाओं   में भाग लेंगे तो उनमें से सेंकड़ों बच्चे सफल भी होंगे. जब सौ-पचास बच्चे ही परीक्षाओं में भाग लेंगे तो एक अंक में ही अभ्यर्थी सफल होंगे. आखिर कम संख्या में ऐसी परीक्षाओं मुस्लिम बच्चों के बैठने की वजह क्या है ?