मंजीत ठाकुर/ नई दिल्ली
टोक्यो में ओलंपिक खेल शुरू होनेवाले हैं और देश के कुछ ऐसे खिलाड़ी हैं जिन पर सबकी निगाहें टिकी हैं. ओलंपिक खेलों में पदकों का टोटा खत्म करने वाले कुछ खिलाड़ी ऐसे हैं जो इस बार देश की उम्मीदों पर खरे उतर सकते हैं और इनमें से एक हैं फवाद मिर्जा. 29 साल के मिर्जा घुड़सवारी करते हैं और वह ड्रेसेज यानी घोड़े पर बैठने के करतब, शो जंपिंग यानी छलांग और क्रास कंट्री यानी खुले मैदान के रेस की श्रेणी में अपनी किस्मत आजमाएंगे.
मिर्जा का दावा इसलिए भी उम्मीदों भरा लगता है क्योंकि उन्होंने 2018 में एशियाई खेलों में दो रजत पदक जीत रखे हैं और इनमें से एक निजी पदक था और दूसरा टीम इवेंट का.
फवाद मिर्जा ने ओशियाना ग्रुप क्वालिफायर्स (दक्षिण पूर्व एशिया) की रैंकिंग में टॉप सीड हासिल करके 2019 में ओलंपिक कोटा पा लिया था. मिर्जा ने मई, 2021 में पोलैंड में दो घोड़ों के साथ सीसी144 लांग इवेंट कंपीटिशन में अपना स्थान पक्का कर लिया.
टोक्यो ओलंपिक के लिए फवाद लगातार मेहनत कर रहे हैं. इन दिनों वह जर्मनी के बर्गडॉर्फ में प्रशिक्षण ले रहे हैं. घोड़ों की सवारी करने के अलावा मिर्जा उन्हें खिलाते और नहलाते हैं और उन्हें चराने और टहलाने के लिए भी लेकर जाते हैं.
मिर्जा का परिवार बेंगलूरू में रहता है और उनके पूरे परिवार का घोड़ों के प्रति पुराना लगाव है. उनके पिता, डॉ. हसनैन मिर्जा, भारत में घोड़ों के जाने-माने चिकित्सकों में से एक हैं. फवाद मिर्जा पांच साल की उम्र में एक स्टड फार्म में घोड़े की सवारी करने लगे थे और जल्द ही वे मुकाबले में हिस्सा लेने के लिए घुड़सवारी करने लगे थे. जूनियर नेशनल चैंपियनशिप पदक ने घुड़सवारी के उनके शौक को परवान चढ़ा दिया.
कड़ी मेहनतः फवाद मिर्जा जर्मनी में रहकर टोक्यो के लिए कड़ा प्रशिक्षण ले रहे हैं
घुड़सवारी महंगा खेल है इसलिए पिछले सात साल से मिर्जा की विदेश में ट्रेनिंग का खर्च बेंगलूरू का एम्बेसी इंटरनेशनल राइडिंग स्कूल उठा रहा है. उनको पूर्व जर्मन विश्व चैंपियन और दो बार के ओलंपिक पदक विजेता सैंड्रा औफार्थ प्रशिक्षित कर रहे हैं, जो खुद भी तोक्यो में ओलंपिक में मुकाबले में हिस्सा लेंगे.
मिर्जा व्यक्तिगत आयोजन में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले पहले व्यक्ति नहीं हैं. उनसे पहले इंद्रजीत लांबा (अटलांटा 1996) और इम्तियाज अनीस (सिडनी 2000) भारत की ओर से शामिल हो चुके हैं. लेकिन मिर्जा ने जकार्ता में 2018 एशियाई खेलों में इतिहास रच दिया, जब उन्होंने दो रजत पदक जीता और इस खेल में भारत के 36 साल पुराने पदक के इंतजार को खत्म किया. इन पदकों से देश में खेल को बड़ा प्रचार मिला और मिर्जा को 2019 में अर्जुन पुरस्कार.
टोक्यो में अगर पदक मिल जाता है तो यह भारत में इस खेल के सुनहरे भविष्य और मिर्जा, दोनों के लिए एक बड़ी उपलब्धि हो सकती है.