नई दिल्ली
शोध संस्कृति को मजबूत करने की दिशा में अपने निरंतर प्रयासों के तहत, जामिया मिल्लिया इस्लामिया के शिक्षा संकाय के शिक्षक प्रशिक्षण और गैर-औपचारिक शिक्षा विभाग (IASE) ने 31 जुलाई 2025 को एक विशेष संगोष्ठी का आयोजन किया। यह संगोष्ठी “फ्रॉम डेटा टू इनसाइट: रिफ्लेक्शंस ऑन रिसर्च प्रैक्टिस एंड पॉसिबिलिटीज़” विषय पर आयोजित की गई, जिसमें दो प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय रिसोर्स पर्सन — डॉ. बेन अल्कोट (एसोसिएट प्रोफेसर, यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन) और डॉ. ज्वालिन पटेल (पीएचडी और पोस्ट-डॉक्टरेट, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय) ने हिस्सा लिया।
कार्यक्रम का आयोजन IASE विभाग के मल्टीमीडिया हॉल में हुआ और यह जामिया के माननीय कुलपति प्रो. मज़हर आसिफ तथा रजिस्ट्रार प्रो. मोहम्मद महताब आलम रिज़वी के संरक्षण में सम्पन्न हुआ। इसमें शिक्षा संकाय की डीन प्रो. जेसी अब्राहम, विभागाध्यक्ष प्रो. फराह फारूकी समेत अनेक शिक्षकों और शोधार्थियों ने सक्रिय भागीदारी निभाई।
संगोष्ठी की शुरुआत मोहम्मद हैदर रज़ा द्वारा की गई क़िरात से हुई, जिसने वातावरण को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर दिया। इसके पश्चात प्रो. फराह फारूकी ने विश्वविद्यालय और विभाग का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया। पीएचडी समन्वयक प्रो. गुरजीत कौर ने मुख्य अतिथियों का औपचारिक स्वागत करते हुए उनका परिचय दिया। साथ ही, विभाग के छात्रों द्वारा बनाए गए पौधे और हस्तशिल्प भेंट कर डॉ. अल्कोट, डॉ. पटेल और डॉ. मुरारी झा को सम्मानित किया गया।
इस व्याख्यान सत्र में डॉ. अल्कोट और डॉ. पटेल ने शैक्षिक अनुसंधान में मिश्रित पद्धति (Mixed Methods) की जटिलताओं और उपयोगिता पर प्रकाश डाला। उन्होंने शोधकर्ताओं को मात्रात्मक और गुणात्मक आंकड़ों के बीच संतुलन बनाने की सलाह दी और बताया कि कैसे दोनों प्रकार की पद्धतियाँ एक साथ प्रयोग कर अनुसंधान को अधिक गहराई और उपयोगिता प्रदान कर सकती हैं। डॉ. पटेल ने प्रायोगिक अध्ययनों की भूमिका पर जोर दिया और कहा कि शोध तभी सार्थक होगा जब उसका प्रभाव समाज में वास्तविक रूप से दिखाई दे।
व्याख्यान के दौरान श्रोताओं की मांग पर विभिन्न शोध विधियों की ग्राफिकल प्रस्तुतियाँ भी साझा की गईं, जिससे विषय को और अधिक स्पष्टता के साथ समझाया जा सका। कार्यक्रम संवादात्मक और व्यावहारिक अनुभवों से भरपूर रहा, जिसमें रिसोर्स पर्सन और जामिया के संकाय सदस्यों ने अपने क्षेत्रीय अनुभवों को साझा कर चर्चा को और समृद्ध बनाया।
कार्यक्रम के अंत में डॉ. मुरारी झा ने भी संबोधित किया और विश्वविद्यालय से अपने लंबे जुड़ाव को साझा करते हुए शोधकर्ताओं को समाजोपयोगी शोध की दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया।
यह संगोष्ठी शोध पद्धतियों, विशेषकर मिश्रित विधाओं के उपयोग, और उनके सामाजिक प्रभाव पर केंद्रित रही। कार्यक्रम का औपचारिक समापन सुश्री तिशा गोस्वामी द्वारा धन्यवाद ज्ञापन और समूह फोटो सत्र के साथ हुआ।
इस संगोष्ठी ने शोध में नई संभावनाओं के द्वार खोले और शोधार्थियों को सशक्त बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ।