Pulwama's Parigam orchards have regained their glory, almond crop has brought life back to the village
बासित जरगर/परिगाम (पुलवामा)
कश्मीर घाटी के दक्षिणी जिले पुलवामा के परिगाम गांव में रविवार की सुबह एक खास हलचल देखी गई. गर्मियों की सुनहरी धूप में यह गांव बादाम की मीठी महक से सराबोर था. हर दिशा में बागानों से आती खट-खट की आवाज़, बच्चों की खिलखिलाहट और काम में जुटे परिवारों की बातचीत गूंज रही थी. यहां बादाम की फसल का सीजन शुरू हो चुका है एक ऐसा समय जो परंपरा, रोज़गार और सामुदायिक एकता का प्रतीक है.
परिगाम के पुराने बागों में फैले घने बादाम के पेड़ों से लंबे डंडों की मदद से पक चुके बादाम नीचे बिछाए गए कपड़ों पर गिराए जा रहे हैं. महिलाएं रंग-बिरंगे स्कार्फ और बड़े-बड़े टोप पहनकर अपने परिवारों के साथ काम में लगी हैं. इस मौसमी काम को गांव वाले सिर्फ कृषि कार्य नहीं, बल्कि एक उत्सव की तरह मानते हैं.
तीसरी पीढ़ी के बाग़बान अब्दुल अहद भट कहते हैं, "इस साल की फसल बहुत अच्छी लग रही है। सेब के मौसम से पहले हमें बादाम से जल्दी आमदनी हो जाती है, यह हमारे लिए एक अहम फसल है."
कम पानी में फलता-फूलता है परिगाम का बादाम
जहां सेब की फसल को समय और देखभाल की ज़रूरत होती है, वहीं बादाम की खेती तुलनात्मक रूप से कम देखरेख में भी अच्छी पैदावार देती है. यही कारण है कि दक्षिण कश्मीर के शुष्क इलाकों में कई किसान अभी भी बादाम को अपनी स्थायी आमदनी का साधन मानते हैं. यहां पारंपरिक तरीके अपनाए जाते हैं—पेड़ों को डंडों से हिलाकर, बादाम इकट्ठा कर धूप में सुखाया जाता है.
स्थानीय महिला जाहिदा जान बताती हैं, "हम बचपन से यह करते आ रहे हैं. ये सिर्फ खेती नहीं है, ये एक त्योहार जैसा लगता है। पूरा गांव एक साथ आता है, यही हमारी एकता की असली तस्वीर है."
व्यापारियों की पहली पसंद हैं कश्मीरी बादाम
जैसे ही फसल तैयार होती है, अलग-अलग ज़िलों से व्यापारी परिगाम पहुंचते हैं. इनमें से कई व्यापारी मौके पर ही नकद सौदे करते हैं. अनंतनाग से आए सूखे मेवों के व्यापारी फारूक अहमद डार कहते हैं, "परिगाम के बादाम स्वाद और तेल की मात्रा के लिए प्रसिद्ध हैं. भले ही बाज़ारों में बाहर से आए बादाम छाए हुए हैं, लेकिन कश्मीरी बादाम के अपने वफादार ग्राहक अब भी हैं. लोग अब स्थानीय और केमिकल-फ्री उत्पादों की ओर लौट रहे हैं."
बुनियादी सुविधाओं की कमी अब भी बनी बाधा
हालांकि किसानों में उम्मीद है, लेकिन चिंता भी कम नहीं है. अधिकांश किसानों को आज भी हाथ से छीलना, छांव में सुखाना और फिर कच्चे रूप में बेचना पड़ता है. प्रोसेसिंग, कोल्ड स्टोरेज और आधुनिक पैकेजिंग जैसी सुविधाएं नहीं हैं. गांव के एक किसान ग़ुलाम रसूल कहते हैं, "अगर हमें सरकारी सहायता से प्रोसेसिंग यूनिट और मशीनें मिलें, तो हम अपने उत्पाद को बेहतर बना सकते हैं और कमाई भी बढ़ सकती है. वर्तमान में अधिकांश किसान बिना प्रोसेसिंग के बादाम बेच देते हैं, जिससे बादाम का तेल, भुना हुआ स्नैक या आटा जैसे उत्पादों की कीमत नहीं मिल पाती.
विशेषज्ञों की सलाह: विरासत को न छोड़ें
हॉर्टिकल्चर विशेषज्ञ डॉ. शब्बीर नबी का मानना है कि बादाम की खेती घाटी के भविष्य के लिए एक मजबूत विकल्प हो सकती है। वे कहते हैं, "बादाम की फसल जलवायु-प्रतिरोधी है और सेब की तुलना में बहुत कम पानी में तैयार हो जाती है. दक्षिण कश्मीर के सूखे इलाकों के लिए यह एक स्मार्ट फसल है। अगर इसमें प्रोसेसिंग और ब्रांडिंग का निवेश हो, तो यह बहुत मुनाफ़ा दे सकती है."
हाल के वर्षों में कुछ किसानों ने सेब की ऊंची कीमतों के चलते बादाम के पेड़ उखाड़ने शुरू कर दिए हैं, लेकिन विशेषज्ञ इस प्रवृत्ति को खतरनाक मानते हैं. डॉ. नबी कहते हैं, "बादाम कश्मीर की विरासत है. यदि हम उन्हें सही से प्रचार और बाजार उपलब्ध कराएं, तो किसान इसे छोड़ने की जरूरत नहीं समझेंगे."
युवा भी निभा रहे हैं भूमिका
जैसे-जैसे दिन चढ़ता है, कॉलेज में पढ़ने वाले युवा भी छुट्टियों में घर लौटकर इस काम में हाथ बंटाते दिखते हैं. 22 वर्षीय इमरान भट बताते हैं, "मैं पढ़ाई के लिए कहीं भी रहूं, बादाम के सीजन में घर ज़रूर आता हूं। ये पेड़ हमारे परिवार का हिस्सा हैं. इन्हीं की वजह से हम यहां तक पहुंचे हैं."ट
शाम होते-होते सूरज की किरणें पेड़ों की शाखाओं से छनकर ज़मीन पर पड़ती हैं और टोकरियों में भरते बादाम और थके पर संतुष्ट चेहरों पर एक अलग चमक बिखेर देती हैं. परिगाम में बादाम सिर्फ एक फसल नहीं है यह परंपरा, रोज़गार और गांव की आत्मा है.