छह साल बाद कश्मीर: क्या अनुच्छेद 370 हटाना सही साबित हुआ?

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 05-08-2025
Kashmir after six years: Was the removal of Article 370 justified?
Kashmir after six years: Was the removal of Article 370 justified?

 

मलिक असगर हाशमी

5 अगस्त 2019 को भारत सरकार ने एक ऐतिहासिक फैसला लेते हुए संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त कर जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा समाप्त कर दिया. तब से लेकर अब तक छह साल बीत चुके हैं. यह वह समय है जब पूरे देश और दुनिया की नजर जम्मू-कश्मीर पर है और लोग यह जानना चाहते हैं कि क्या यह इलाका वाकई बदला है ? क्या वहां की तस्वीर अब सामान्य भारत के अन्य हिस्सों की तरह हो गई है? क्या हिंसा और आतंकवाद में कमी आई है, और क्या विकास, निवेश और लोकतांत्रिक भागीदारी ने रफ्तार पकड़ी है ?

अनुच्छेद 370 के हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में सबसे बड़ा बदलाव लोकतांत्रिक प्रक्रिया में आम नागरिकों की भागीदारी में देखने को मिला. 2020 में हुए जिला विकास परिषद (डीडीसी) चुनावों में 70 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ.

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यह साफ संकेत था कि लोग अब लोकतांत्रिक व्यवस्था पर भरोसा कर रहे हैं. 2024 के लोकसभा चुनावों में जम्मू-कश्मीर ने पिछले 35 वर्षों में सबसे अधिक मतदान दर्ज किया, और कश्मीर घाटी में तो यह आंकड़ा 30 प्रतिशत से अधिक की बढ़ोतरी के साथ दर्ज किया गया.

परिसीमन की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है . अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद क्षेत्र में लोकतंत्र की जड़ें मज़बूत हुई हैं.सुरक्षा की दृष्टि से देखें तो पिछले छह वर्षों में आतंकवादी घटनाओं में उल्लेखनीय गिरावट आई है.

2004 से 2014 के बीच जम्मू-कश्मीर में 7,217 आतंकवादी घटनाएं दर्ज की गई थीं, जबकि 2014 से 2024 के बीच यह संख्या घटकर 2,242 रह गई. नागरिक मौतों में 81 प्रतिशत की कमी आई है और सुरक्षाबलों की हताहत संख्या भी लगभग आधी रह गई है.

पहले जहां पत्थरबाजी, बंद और अलगाववादी प्रदर्शनों की घटनाएं आम थीं, वहीं अब यह सब लगभग खत्म हो चुका है. हालांकि हाल के महीनों में जम्मू क्षेत्र में आतंकी घटनाओं में कुछ इजाफा हुआ है, जैसे कि पहलगाम में हुआ हमला जिसमें 26 बेगुनाह सैलानियों की जान गई. इसके बावजूद, सरकार की 'ज़ीरो टॉलरेंस' नीति और कड़ी सुरक्षा उपायों ने जम्मू-कश्मीर में स्थायित्व की भावना को जन्म दिया है.

विकास के मोर्चे पर भी कई सकारात्मक संकेत दिखते हैं. 2015 में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा घोषित ₹80,000 करोड़ के पैकेज में से अब तक ₹51,000 करोड़ का उपयोग किया जा चुका है.

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पिछले एक दशक में जम्मू-कश्मीर में ₹12,000 करोड़ का औद्योगिक निवेश आया है, जो कि पहले 70 वर्षों में मिले कुल ₹14,000 करोड़ के निवेश के लगभग बराबर है. हाल ही में ₹1,10,000 करोड़ के अतिरिक्त निवेश प्रस्तावों पर समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर हुए हैं, जिससे अगले कुछ वर्षों में इस क्षेत्र में और अधिक आर्थिक गतिविधियाँ देखने को मिलेंगी.

2019 में अनुच्छेद 370 के हटने के बाद केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर में निवेश को आकर्षित करने के लिए नई औद्योगिक नीति की घोषणा की, जिससे अब तक सैकड़ों कंपनियों ने यहां निवेश किया है.

पर्यटन के क्षेत्र में भी रिकॉर्ड बढ़ोतरी देखने को मिली है. 2023 में जम्मू-कश्मीर ने 2.11 करोड़ से अधिक पर्यटकों का स्वागत किया, जो कि अब तक का सर्वाधिक आंकड़ा है.

श्रीनगर को 2024 में यूनेस्को ने 'वर्ल्ड क्राफ्ट सिटी' का दर्जा दिया है. श्रीनगर एयरपोर्ट से उड़ानों की संख्या 2019 में जहां 35 थी, वहीं 2024 में यह 125 तक पहुंच गई है. इको-टूरिज्म, हेरिटेज होमस्टे, और अनुभव आधारित पर्यटन को बढ़ावा मिला है जिससे स्थानीय लोगों की आजीविका को मजबूती मिली है.

एक समय था जब आतंकवाद के डर से पर्यटक कश्मीर आने से कतराते थे, लेकिन अब डल झील और गुलमर्ग जैसे पर्यटन स्थलों पर चहल-पहल फिर से लौट आई है.

बुनियादी ढांचे के विकास की बात करें तो इसमें भी काफी तेजी आई है. चिनाब नदी पर बना 359 मीटर ऊंचा रेल पुल अब विश्व का सबसे ऊंचा रेल पुल बन चुका है, जो एफिल टॉवर से भी ऊंचा है.

जोजिला टनल, जोड-मोर्ह टनल और बनिहाल-काजीगुंड रोड टनल जैसे प्रोजेक्ट्स से कनेक्टिविटी बेहतर हो रही है. उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेल लिंक अब पूरी तरह चालू है. डिजिटल कनेक्टिविटी के क्षेत्र में भारतनेट परियोजना के तहत अब तक 9,789 फाइबर-टू-होम कनेक्शन पूरे किए गए हैं जिससे दूर-दराज़ के क्षेत्रों में भी डिजिटल सेवाएं पहुंच रही हैं.

शिक्षा और रोज़गार के क्षेत्र में भी बदलाव स्पष्ट है. IIT जम्मू, AIIMS अवंतीपोरा (2025 तक चालू होने की उम्मीद) और मेडिकल कॉलेज रियासी जैसे उच्च शिक्षा संस्थानों ने युवाओं को बेहतर अवसर प्रदान किए हैं.

यूपीएससी परीक्षा में उत्तीर्ण होने वाले कश्मीरी युवाओं की संख्या में वृद्धि हुई है और स्टार्टअप इकोसिस्टम को बढ़ावा मिला है, जिसमें कई महिलाएं भी शामिल हैं। जॉब फेयर और उद्यमिता योजनाओं से स्थानीय रोज़गार के नए रास्ते खुले हैं.

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सांस्कृतिक रूप से भी जम्मू-कश्मीर में उल्लेखनीय बदलाव आया है. तीन दशकों के बाद पहली बार, कश्मीर में सिनेमा हॉल खुले हैं और लोग अब अपने परिवार के साथ फिल्में देखने जा सकते हैं.

मुहर्रम के जुलूस अब बिना किसी सुरक्षा खतरे के शांतिपूर्वक निकलते हैं और ऐतिहासिक लाल चौक पर जन्माष्टमी जैसे त्योहार मनाए जा रहे हैं. यह बदलाव केवल सांस्कृतिक गतिविधियों का पुनरुत्थान नहीं, बल्कि क्षेत्र में धार्मिक सहिष्णुता और सामाजिक सौहार्द की पुनर्स्थापना का प्रतीक है.

इन सबके बीच, जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने के निर्णय को लेकर राजनीतिक बहस अब भी जारी है। क्षेत्र के अधिकांश क्षेत्रीय दल इस फैसले की आलोचना करते रहे हैं, जबकि भारतीय जनता पार्टी इसे 'एक भारत, श्रेष्ठ भारत' की दिशा में सबसे बड़ा कदम मानती है और हर वर्ष 5 अगस्त को इस दिन को उत्सव की तरह मनाती है.

इस बीच, केंद्र सरकार का जोर समावेशी विकास, सामाजिक न्याय और दीर्घकालिक स्थिरता पर बना हुआ है.आज, जम्मू-कश्मीर एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है जहाँ से पीछे लौटना संभव नहीं. सुरक्षा, स्थायित्व, विकास, निवेश और लोकतंत्र की दिशा में किए गए प्रयासों ने एक नई उम्मीद जगाई है.

ज़रूर, चुनौतियाँ अभी बाकी हैं, खासकर आतंकवाद का पूर्ण खात्मा और राजनीतिक स्थायित्व की बहाली. लेकिन अब घाटी में सुबह की पहली किरणें दिखने लगी हैं। अनुच्छेद 370 के हटने के छह साल बाद जम्मू-कश्मीर अब केवल एक संवेदनशील सीमावर्ती क्षेत्र नहीं, बल्कि भारत के विकासशील भविष्य का एक मजबूत स्तंभ बनता जा रहा है.